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किसी भी पूजा या हवन में “ओम शांति” का उच्चारण तीन बार ही क्यों ?

ऐसा माना जाता है कि हमारे पूर्वजों ने जब भी किसी सोच को मान्यता दी उसके पीछे कोई न कोई साइंटिफिक कारण अवश्य था। जिन्हें आज भी हम सही मानकर उनका पालन करते हैं। इसलिए हिंदू धर्म में जितनी भी मान्यताएं हैं उनके पीछे कोई न कोई राज़ ज़रूर छिपा है। क्या कभी सोचा है आपने कि जब भी कोई पूजा या हवन आदि किए जाते हैं तब पंडित मंत्रोंच्चारन के अंत में तीन बार ऊं शांति का उच्चारण क्यों करते हैं ?

इसके पीछे पहली मान्यता तो ये है कि जिस बात को तीन बार सच्चे मन से दोहराया जाए वो हमेशा सच होती है, यानि “त्रिवरम् सत्यमं”।

वैसे भी आपने ध्यान दिया होगा कि जब भी हम अपने घर में कोई शुभ कार्य, हवन या यज्ञ करवाते हैं तब हम ईश्वर से ये प्रार्थना ज़रूर करते हैं कि हे ईश्वर हमारा उक्त कार्य ठीक-ठाक संपूर्ण हो जाए उसमें किसी तरह की कोई भी बाधा उत्पन्न न हो। इसलिए कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करते समय पंडित तीन बार शांति का उच्चारण करते हैं ताकि हमारी ओर से उस विशेष कार्य के उत्तरदायित्व को निभाते वक़्त तीन तरीके की बाधाएं उत्पन्न न हो। अतः तीन बार शांति का उच्चारण किया जाता हैं।

पहली बार उच्च स्वर में दैवीय शक्ति को संबोधित किया जाता है। दूसरी बार कुछ धीमे स्वर में अपने आस-पास के वातावरण और व्यक्तियों को संबोधित किया जाता है और तीसरी बार बिलकुल धीमे स्वर में अपने आपको संबोधित किया जाता है।

ऐसा करने से तीन प्रकार से उत्पन्न बाधाओं में शांति मिलती है।

पहले स्वर में दैवीय आपदा जैसे बाढ़, भूकंप, तूफान आदि की शांति के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे माना जाता है कि शांति मिलती है।

दूसरे स्वर में भौतिक समस्याओं जैसे दुर्घटना, अपराध, मानवीय संपर्क आदि बाधाओं के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे माना जाता है कि शांति मिलती है।
तीसरे स्वर में आध्यात्मिक बाधाएं- ऐसी बाधाओं में क्रोध, निराशा, भय आदि के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे शांति मिलती है।

यही कारण है कि पंडित मंत्रोच्चारण के अंत में तीन बार ऊं शांति का उच्चारण करते हैं।

ध्यान दें- आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे अन्य स्त्रोतों से लिया गया है।