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चिंता नहीं आत्म-चिंतन कीजिए ?

वो कहते हैं न कि चिंता चिता समान ! पुराने ज़मानें से बनी कहावतें ऐसे ही नहीं चली आ रही उनके पीछे ज़रूर कोई न कोई कारण था। चिंता करना तो जैसे हमारी ज़िंदगी का एक सबसे आवश्यक अंग ही बन गया है। हाल ये है कि हम हर छोटी बात को लेकर ही बैठ जाते हैं। लेकिन ये आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि चिंता इंसान को अंदर ही अंदर दीमक की तरह खा जाती है। इससे अच्छा है कि क्यों न हम चिंता के कारण को जानें और उसका हल निकालें।

अब सोशल साइट्स पर ही देख लीजिए हम लोग सिर्फ एक भेड़चाल की तरह ही चले जा रहे हैं। अगर किसी के चरित्र को उछालना हो तो हम इनका सहारा लेते हैं या किसी के ऊपर अपनी भड़ास निकालनी हो तो भी इनका ही सहारा लेते हैं और इंतज़ार करते हैं कि कितने लाइक्स आए, जबकि उनके सदगुणों या अच्छे कार्यों पर हम चर्चा भी नहीं करना चाहते क्योंकि ज्यादा लाईक्स हमें दूसरों की निंदा करने पर ही मिलते हैं यानिकी हमारी स्वाभाविक मनोवृति ही यही बन चुकी है कि अगर आप दूसरों के चरित्र के बारे में कुछ गलत न भी कहना चाहते हों लेकिन फिर भी फैंडलिस्ट में शामिल परिचर्चा करने के कुछ शौकीन लोग आपको उस चर्चा का हिस्सा बना ही लेते हैं।

तो सवाल ये उठता है कि हमने अपने लिए क्या सोचा? हमने अपने लिए किससे चर्चा की? और अगर अपने बारे में किसी से चर्चा की तो क्या उस व्यक्ति ने आपका सही मार्ग-दर्शन किया ?

वास्तव में हम खुद अपने लिए क्या कर रहे हैं! सिर्फ दो वक्त की रोटी कमाने के लिए ही प्रयत्नशील हैं? इसके अलावा हमारा लक्ष्य क्या है ? क्या कभी ये जानने की कोशिश की हमने? हम अपने बचपन से ही इतने साल अपनी ऐजुकेशन पूरी करने में लगाते हैं, उसके बाद अच्छी नौकरी पाने की जद्दोजहद में हम दिन-रात एक कर देते हैं जिसमें हम कभी सफल हो भी जाते हैं और नहीं भी। उस वक्त कमी कहां रह गई या अब उस कमी को पूरा करना है इस पर कब सोचने का वक्त निकालते हैं हम ? कहीं तब तो नहीं जब उम्र ही गुज़र चुकी होगी !

या फिर सब कुछ जीवन में पा भी लिया हो लेकिन फिर भी एक अजीब सी भटकन बाकी रह गई है, आखिर हम सबको पता है कि ये जीवन क्षण-भंगूर है। हम सभी ऐसे मुसाफिर हैं जो पैदा होने से मरते दम तक सफर ही किए जा रहें हैं, जिसका जब स्टेशन आता है वो शरीर रूपी जीवन को त्याग कर अपने स्टेशन पर उतर जाता है और अगली ट्रेन में चढ़ने की तैयारी करता है। फिर भी उसे मुक्ति नहीं मिलती क्योंकि जब कर्म या इच्छाएं शेष रह जाती हैं तो फिर इंसान अपने कर्मों के भुगतान के लिए दोबारा जन्म लेता है। इसलिए जब तक हम सब मुसाफिर जीवन रूपी ट्रेन में सफर कर रहें हैं कृपया सद्गुणों पर ही ध्यान दें। ये हमेशा याद रखें कि आपका हरेक पल बहुमुल्य है जो कभी वापिस नहीं लौटेगा। सावधान रहिए, सतर्क रहिए, कर्मशील बनें लेकिन अच्छा बोलें, अच्छा सोचें ताकि हम अपने किसी भी लक्ष्य को पाने से वचिंत न रह जाएं, चाहे वो लक्ष्य अपने सपनों को पाने का हो या जीवन रूपी सच को समझने का हो। अपने अंतर्मन से विचार करें कि कहीं हम गलत दिशा में तो नहीं जा रहे? क्या हम अपने माता-पिता, भाई-बंधुओं के साथ सही व्यवहार कर रहे हैं ? जैसे अगर सीढ़ी चढ़ते हुए हमारा पांव फिसल जाए तो हम नीचे की ओर ही लुढकेंगे ऐसे ही जीवन में भटक जाने पर वापसी नहीं हो सकती।

जो मनुष्य नित्य अपने सद्गुणों से आत्म-चिंतन, आत्मशोधन करता है उसे ही आत्म-शांति व आत्म सिद्धी की प्राप्ति होती है। विषयों में फंसा व्यक्ति यदि चिंतन करता भी है तो आत्म बोध नहीं कर पाता। इसलिए उन्नति अगर पानी है तो आत्म-चिंतन सबसे ज्यादा ज़रूरी है। आत्म-चिंतन एक ऐसा हथियार है जो न केवल आपको व्यर्थ की चर्चाओं से दूर रखने में मददगार साबित होगा, बल्कि आपकी प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। ये हम सब जानते हैं कि हमारे अंदर अच्छाई व बुराई दोनों हैं। बेहतर यही होगा कि हम दूसरों की अच्छाईयों को समझें और उन्हें आत्मसात करने का प्रयास करें। स्मरण रहे कि तरक्की के लिए आत्म-मंथन करना तथा अपनी खामियों को दूर करना परमआवश्यक है।