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वो अदभुत पर्वत

बर्फीली चादर ओढ़े अटल खड़ा है,
वो अदभुत पर्वत !
विराट शिवलिंग शोभाएमान है,
जिसके शिखर पर ।
उसी से प्रतिध्वनित होती ॐ की ध्वनि,
अपनी ओर सम्मोहित करती,
सारी सृष्टि को बांध रही है ।
लेकिन तुम लोभ-मोह से परे,
अकेले ही खड़े हो,
ऐ दिव्य पर्वत !
कहीं तुम वही कैलाश तो नहीं ?
जहां बसते हैं शिव-पार्वती !
जिनसे चलती सृष्टि सारी
सुना है…
जब कोई तुम्हारे नज़दीक जाता
अपनी मति-भ्रमित है पाता
न छिपने वाली आलौकिक शक्ति
सूर्योदय पर स्वास्तिक बनाती
वहीं से दिखती झील न्यारी
जिसे मानसरोवर जानें दुनियां सारी
वहां मिलती है पापों से मुक्ति
जब-जब आलौकिक झील पिघलती
मृदंग की आवाज है गूंजती
दूसरी ओर राक्षस झील सजी है
जो चंद्रमा सी विशाल बनी है
कर्णाली,सिंध, ब्रह्मपुत्र और सतलज
वहीं से है चार नदियों का उद्गम
ऐसे रहस्यमय स्थान पर,
बसते हैं भोले शंकर ।

 

मनुस्मृति लखोत्रा

This Post Has One Comment

  1. Dipti Saddar

    Beautiful expression and well explained

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