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अपने लक्ष्य को कैसे निर्धारित करें और उन्हें कैसे प्राप्त करें?

सब के जीवन में कोई न कोई लक्ष्य ज़रूर होता है। जिसे पाने के लिए हरेक अपने-अपने नज़रिये व तरीके से प्रयास करते हैं और इसे पाने के बाद जो सुख की अनुभूति होती है वो सर्वोपरि है। लेकिन लक्ष्य को पाना इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि सिर्फ सोच लेना ही काफी नहीं है कि मुझे डॉक्टर या इंजीनियर बनना है उसके लिए आपने क्या और कितने प्रयास किए ? इस पर निर्भर करता है। सिर्फ इतना ही नहीं अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार इनका पीछा करना पड़ता है। आईए शुरुआत करते हैं अगली कड़ी की, जिसमें आपको कुछ महत्वपूर्ण फैसले करने हैं।

आपको क्या अच्छा लगता है ? सोचें- सबसे पहले आप अपने मन का विश्लेषण कर लें कि आपको कौन सा प्रोफेशन अच्छा लगता है ? इसका जवाब आपके अंदर ही हैं। क्योंकि सबसे पहले प्ररेणा हमें अंदर से ही मिलती है फिर हम उसे और मजबूत करने के लिए बाहर भी टटोलते हैं। चार-पांच तरह के प्रोफेशनस में जाने के बारे में न सोचें क्योंकि कई बार हम अपने दोस्तों के बेहकावे में आकर या दूसरों के कहे अनुसार सही निर्णय नहीं ले पाते। भेड़ चाल की तरह चलने लग जाते हैं और बाद में आकर हमें समझ आता है कि अरे, मुझे ये नहीं मुझे तो वो करना था। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। अपने लक्ष्य, सिर्फ़ अपने लिए ही बनाएं। एक शोध के अनुसार, जब आप के लक्ष्य व्यक्तिगत रूप से सार्थक होते हैं, तो आपकी इन्हें प्राप्त करने की संभावना भी बढ़ जाती है।

  • अपने अंतर्मन से प्रेरणा पाने के बाद अपने आप से दूसरा प्रश्न ये पूछें कि “जो मैं लक्ष्य पाना चाहता हूं उससे मैं किस-किस का लाभ कर पाऊंगा ? उससे कौन-कौन खुश होगा ? क्या मैं उससे अपने सपनों और जिज्ञासाओं को शांत कर पाऊंगा ? क्या उससे मैं अपना, अपने परिवार का, अपने समाज या अपने देश का कोई भला कर पाऊंगा ? यक़ीन मानिए ये सवाल जब आप अपने आप से पूछेंगे तो एक प्यारी स्माईल के साथ वो हां आपमें इतनी उर्जा भर देगी कि आपके होसले के आगे सारी परिस्थितियां आपका साथ देने में जुट जाएंगी।
  • आपके सामने ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिन्होंने अपने हौसले, सच्ची लग्न व मेहनत से पूरी दुनियां में अपने देश का नाम रोशन किया है। यहां ए.पी.जे.अब्बदुल कलाम का नाम बिल्कुल सटीक बैठता है। जैसा कि आप जानतें हैं कि डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने अपने ज्ञान व मेहनत के दम पर अपने देश का नाम पूरी दुनियां में रोशन किया। जिन्होंने अपने जीवन में देश के सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (डीआरडीओ और इसरो) में भी कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1998 के पोखरण द्वितीय परमाणु परिक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ भी जुड़े थे। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। वर्ष 2002 में  कलाम भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षण, लेखन, और सार्वजनिक सेवा में लौट आए। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया लेकिन अगर उनके प्रारंभिक जीवन की ओर नज़र दौड़ाई जाए तो अब्बुल पकिर जैनुलअबिदीन अब्दुल कलाम एक मुसलमान परिवार के थे। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहणी थीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे। उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की।

आपने अपने बचपन से अब तक कितनी बार डॉ. कलाम के जीवन के बारे में पढ़ा और सुना होगा लेकिन यहां उनके बारे में चर्चा करनी ज़रूरी थी ताकि एक बार फिर से आपको याद दिलाया जाए कि फलां क्लास में, फलां विषय के, फलां लेसन को जब आपने पहली बार पढ़ा था तब आपने जाना था कि डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कौन हैं और उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था लेकिन उन्होंने अपनी तक़दीर आप लिखी। अपने हालातों को ही बदल डाला सिर्फ अपनी मेहनत और अपने एक ही लक्ष्य पर डटे रहने का वजह से। ऐसी ही कई बड़ी शख्सियतों ने खेल, विज्ञान, साहित्य या कला के क्षेत्र में लक्ष्य पाए हैं, और ऐसा सिर्फ अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण के फलस्वरूप ही हो पाया है। इसलिए आप भी अपनी तक़दीर खुद लिखें, दूसरों पर निर्भर न रहें।