अष्टमी का दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी कि महागौरी के पूजन का दिन है। सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करके घर को शुद्ध किया जाता है फिर स्वयं स्नान करके अपनी शुद्धि की जाती है। फिर कन्या पूजन के लिए बड़े ही पवित्र मन से हलवा पूरी व चने का प्रसाद बनाया जाता है। इसके बाद महागौरी की पूजा करके घर में नौ कन्याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित किया जाता है।
कंजकों का पूजन- सबसे पहले उनके पैर धोएं व उन्हें रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं। फिर उनके हाथ में मौली बांधें और घी के दीपक से मां की आरती के साथ उनकी भी पूजा करें और माता के जयकारे लगाएं। सभी कन्याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्हें हलवा, पूरी और चने का भोग देकर साथ ही उन्हें भेंट और उपहार दें व उनके पैर छूकर उनसे आर्शीवाद लिया जाता है।
बता दें कि कन्या पूजन के लिए दो साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित किया जाता है और बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने हर शक्ति पीठ में माता की सेवा के
लिए बटुक भैरव को तैनात किया हुआ है। कहा जाता है कि अगर किसी शक्ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं।