You are currently viewing स्वामी तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली के कुछ अंश

स्वामी तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली के कुछ अंश

  1. आज सुदिन सुभ घरी सुहाई
    राग आसावरी

    आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई |
    रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई ||
    अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार-जोग-समुदाई |
    हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई ||
    बरषहिं बिबुध-निकर कुसुमावलि, नभ दुन्दुभी बजाई |
    कौसल्यादि मातु मन हरषित, यह सुख बरनि न जाई ||
    सुनि दसरथ सुत-जनम लिये सब गुरुजन बिप्र बोलाई |
    बेद-बिहित करि क्रिया परम सुचि, आनँद उर न समाई ||
    सदन बेद-धुनि करत मधुर मुनि, बहु बिधि बाज बधाई |
    पुरबासिन्ह प्रिय-नाथ-हेतु निज-निज सम्पदा लुटाई ||
    मनि-तोरन, बहु केतुपताकनि, पुरी रुचिर करि छाई |
    मागध-सूत द्वार बन्दीजन जहँ तहँ करत बड़ाई ||
    सहज सिङ्गार किये बनिता चलीं मङ्गल बिपुल बनाई |
    गावहिं देहिं असीस मुदित, चिर जिवौ तनय सुखदाई ||
    बीथिन्ह कुङ्कम-कीच, अरगजा अगर अबीर उड़ाई |
    नाचहिं पुर-नर-नारि प्रेम भरि देहदसा बिसराई ||
    अमित धेनु-गज-तुरग-बसन-मनि, जातरुप अधिकाई |
    देत भूप अनुरुप जाहि जोइ, सकल सिद्धि गृह आई ||
    सुखी भए सुर-सन्त-भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई |
    सबै सुमन बिकसत रबि निकसत, कुमुद-बिपिन बिलखाई ||
    जो सुखसिन्धु-सकृत-सीकर तें सिव-बिरञ्चि-प्रभुताई |
    सोइ सुख अवध उमँगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहौं गाई ||
    जे रघुबीर-चरन-चिन्तक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई |
    अबिरल अमल अनुप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई ||

  2. सहेली सुनु सोहिलो रे राग जैतश्री 

सहेली सुनु सोहिलो रे |

सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज |
पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ||
चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु |
नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मङ्गल-मोद-निधान ||
ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमङ्गल-मूल|
सुर दुन्दुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ||
भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान |
जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ||
सीञ्चि सुगन्ध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार |
दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मङ्गलचार ||
सुनि सानन्द उठे दसस्यन्दन सकल समाज समेत |
लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ||
जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान |
तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मङ्गल, मुद, कल्यान ||
आनँद महँ आनन्द अवध, आनन्द बधावन होइ |
उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ||
सजि आरती बिचित्र थारकर जूथ-जूथ बरनारि |
गावत चलीं बधावन लै लै निज-निज कुल अनुहारि ||
असही दुसही मरहु मनहि मन, बैरिन बढ़हु बिषाद |
नृपसुत चारि चारु चिरजीवहु सङ्कर-गौरि-प्रसाद ||
लै लै ढोव प्रजा प्रमुदित चले भाँति-भाँति भरि भार |
करहिं गान करि आन रायकी, नाचहिं राजदुवार ||
गज, रथ, बाजि, बाहिनी, बाहन सबनि सँवारे साज|
जनु रतिपति ऋतुपति कोसलपुर बिहरत सहित समाज ||
घण्टा-घण्टि, पखाउज-आउज, झाँझ, बेनु डफ-तार |
नूपुर धुनि, मञ्जीर मनोहर, कर कङ्कन-झनकार ||
नृत्य करहिं नट-नटी, नारि-नर अपने-अपने रङ्ग |
मनहुँ मदन-रति बिबिध बेष धरि नटत सुदेस सुढङ्ग ||
उघटहिं छन्द-प्रबन्ध, गीत-पद, राग-तान-बन्धान |
सुनि किन्नर गन्धरब सराहत, बिथके हैं, बिबुध-बिमान ||
कुङ्कुम-अगर-अरगजा छिरकहिं, भरहिं गुलाल-अबीर |
नभ प्रसून झरि, पुरी कोलाहल, भै मन भावति भीर ||
बड़ी बयस बिधि भयो दाहिनो सुर-गुर-आसिरबाद |
दसरथ-सुकृत-सुधासागर सब उमगे हैं तजि मरजाद ||
बाह्मण बेद, बन्दि बिरदावलि, जय-धुनि, मङ्गल-गान |
निकसत पैठत लोग परसपर बोलत लगि लगि कान ||
बारहिं मुकुता-रतन राजमहिषि पुर-सुमुखि समान |
बगरे नगर निछावरि मनिगन जनु जुवारि-जव-धान ||
कीन्हि बेदबिधि लोकरीति नृप, मन्दिर परम हुलास |
कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा, रहस-बिबस रनिवास ||
रानिन दिए बसन-मनि-भूषन, राजा सहन-भँडार |
मागध-सूत-भाट-नट-जाचक जहँ तहँ करहिं कबार ||
बिप्रबधू सनमानि सुआसिनि, जन-पुरजन पहिराइ |
सनमाने अवनीस, असीसत ईस-रमेस मनाइ ||
अष्टसिद्धि, नवनिद्धि, भूति सब भूपति भवन कमाहिं |
समौ-समाज राज दसरथको लोकप सकल सिहाहिं ||
को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह |
सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ||
सिव-बिरञ्चि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग |
तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ||

 

  1. दुलार

    सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लिये
    राग बिलावल
    सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लिये |
    बार-बार बिधुबदन बिलोकति लोचन चारु चकोर किये ||
    कबहुँ पौढ़ि पयपान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये |
    बालकेलि गावति हलरावति, पुलकति प्रेम-पियूष पिये ||
    बिधि-महेस, मुनि-सुर सिहात सब, देखत अंबुद ओट दिये |            

तुलसिदास ऐसो सुख रघुपति पै काहू तो पायो न बिये ||

4. पालने रघुपति झुलावै
राग कान्हरा

पालने रघुपति झुलावै |
लै लै नाम सप्रेम सरस स्वर कौसल्या कल कीरति गावै ||
केकिकण्ठ दुति स्यामबरन बपु, बाल-बिभूषन बिरचि बनाए |
अलकैं कुटिल, ललित लटकनभ्रू, नील नलिन दोउ नयन सुहाए ||
सिसु-सुभाय सोहत जब कर गहि बदन निकट पदपल्लव लाए |
मनहुँ सुभग जुग भुजग जलज भरि लेत सुधा ससि सों सचु पाए ||
उपर अनूप बिलोकि खेलौना किलकत पुनि-पुनि पानि पसारत |
मनहुँ उभय अंभोज अरुन सों बिधु-भय बिनय करत अति आरत ||
तुलसिदास बहु बास बिबस अलि गुञ्जत, सुछबि न जाति बखानी |
मनहुँ सकल श्रुति ऋचा मधुप ह्वै बिसद सुजस बरनत बर बानी ||
पालने रघुपति झुलावै |
लै लै नाम सप्रेम सरस स्वर कौसल्या कल कीरति गावै ||
केकिकण्ठ दुति स्यामबरन बपु, बाल-बिभूषन बिरचि बनाए |
अलकैं कुटिल, ललित लटकनभ्रू, नील नलिन दोउ नयन सुहाए ||
सिसु-सुभाय सोहत जब कर गहि बदन निकट पदपल्लव लाए |
मनहुँ सुभग जुग भुजग जलज भरि लेत सुधा ससि सों सचु पाए ||
उपर अनूप बिलोकि खेलौना किलकत पुनि-पुनि पानि पसारत |
मनहुँ उभय अंभोज अरुन सों बिधु-भय बिनय करत अति आरत ||
तुलसिदास बहु बास बिबस अलि गुञ्जत, सुछबि न जाति बखानी |
मनहुँ सकल श्रुति ऋचा मधुप ह्वै बिसद सुजस बरनत बर बानी ||

5.   झूलत राम पालने सोहै
राग बिलावल

झूलत राम पालने सोहैं | भूरि-भाग जननीजन जोहैं ||
तन मृदु मञ्जुल मेचकताई | झलकति बाल बिभूषन झाँई ||
अधर-पानि-पद लोहित लोने | सर-सिङ्गार-भव सारस सोने ||
किलकत निरखि बिलोल खेलौना | मनहुँ बिनोद लरत छबि छौना ||
रञ्जित-अंजन कञ्ज-बिलोचन | भ्राजत भाल तिलक गोरोचन ||
लस मसिबिन्दु बदन-बिधु नीको | चितवत चितचकोर तुलसीको ||
छोटी छोटी गोड़ियाँ अँगुरियाँ छबीलीं छोटी
राग ललित
छोटी छोटी गोड़ियाँ अँगुरियाँ छबीलीं छोटी
नख-जोति मोती मानो कमल-दलनिपर |
ललित आँगन खेलैं, ठुमुकु ठुमुकु चलैं,
झुँझुनु झुँझुनु पाँय पैजनी मृदु मुखर ||
किङ्किनी कलित कटि हाटक जटित मनि,
मञ्जु कर-कञ्जनि पहुँचियाँ रुचिरतर |
पियरी झीनी झँगुली साँवरे सरीर खुली,
बालक दामिनि ओढ़ी मानो बारे बारिधर ||
उर बघनहा, कण्ठ कठुला, झँडूले केश,
मेढ़ी लटकन मसिबिन्दु मुनि-मन-हर |
अंजन-रञ्जित नैन, चित चोरै चितवनि,
मुख-सोभापर वारौं अमित असमसर ||
चुटकी बजावती नचावती कौसल्या माता,
बालकेलि गावती मल्हावती सुप्रेम-भर |
किलकि किलकि हँसैं, द्वै-द्वै दँतुरियाँ लसैं,
तुलसीके मन बसैं तोतरे बचन बर ||

सादर सुमुखि बिलोकि राम-सिसुरूप, अनूप भूप लिये कनियाँ |
सुदंर स्याम सरोज बरन तनु, नखसिख सुभग सकल सुखदनियाँ ||
अरुन चरन नखजोति जगमगति, रुनझुनु करति पाँय पैञ्जनियाँ |
कनक-रतन-मनि जटित रटति कटि किङ्किनि
कलित पीतपट-तनियाँ ||
पहुँची करनि, पदिक हरिनख उर, कठुला कण्ठ, मञ्जु गजमनियाँ |
रुचिर चिबुक, रद, अधर मनोहर, ललित
नासिका लसति नथुनियाँ ||
बिकट भ्रुकुटि, सुखमानिधि आनन, कल
कपोल, काननि नगफनियाँ |
भाल तिलक मसिबिन्दु बिराजत, सोहति सीस लाल चौतनियाँ ||
मनमोहनी तोतरी बोलनि, मुनि-मन-हरनि हँसनि किलकनियाँ |
बाल सुभाय बिलोल बिलोचन, चोरति चितहि चारु चितवनियाँ ||
सुनि कुलबधू झरोखनि झाँकति रामचन्द्र-छबि चन्दबदनियाँ |
तुलसीदास प्रभु देखि मगन भईं प्रेमबिबस कछु सुधि न अपनियाँ ||