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चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं, ‘बचपन वाली दिवाली’ : गुलज़ार

दिपावली के शुभ अवसर पर क्यों न गुलज़ार साहब की दिवाली पर लिखी एक कविता सुनी जाए ?

 

बचपन वाली दिवाली: गुलज़ार

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं

चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं

अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं

दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं

चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं

सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं

सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

बिजली की झालर छत से लटकाते हैं

कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं

टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं

दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है

मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है

दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं

बार-बार बस गिनते जाते है

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है

छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं

मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं

प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

माँ से खील में से धान बिनवाते हैं

खांड के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है

अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है

भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं

कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं

घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं

बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….

 

बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं

वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं

सामान से नहीं ,समय देकर सम्मान जताते हैं

उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं

चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….