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Poetry Breakfast: इक कुड़ी जिदा नाम महोब्बत गुम हैः शिव कुमार बटालवी

आईए आज उस दशक की बात करें जब कविताएं आत्मा की गहराईयों से लिखी जाती थी। कविता का एक–एक लफ्ज़ शायर के लिए किसी इबारत से कम नहीं होता था। पांच आब यानि पांच पानियों का वो राज्य जिसे पंजाब कहते है, बिरहा के इस शायर का जन्म इसी राज्य में हुआ। पंजाबी (गुरमुखी) में शायरी लिख कर उन्होंने एक नया इतिहास रचा जबकि उस वक्त शायरी सिर्फ शाहमुखी में लिखी जाती थी। शिव कुमार की शायरी से निकली दिल के दर्द की एक–एक बूंद नदी बन कर ऐसे बही के अपने साथ प्यार का फसाना लिखने वाले और तड़पते दिलों की आवाज़ साथ ले चली। इतनी खूबसूरत शायरी जिसका कतरा-कतरा मानों शिव कुमार बटालवी ने अपने लहु से लिखा था जो उन्हें अमर कर गया।

हो जावो नी कोई मोढ़ लयावो, नी मेरे नाल गया अज लड़के
ओ अल्ला करे जे आवे सोहणा, देवां जान कदमा विच धर के

पंजाब और पाकिस्तान का ऐसा कौन सा मशहूर गायक नहीं है जिसने शिव के गीतों को अपनी आवाज़ नहीं दी। उनके लिखे हुए गीत – अज्ज दिन चढ्या, इक कुड़ी जिद्दा नाम मुहब्बत, मधानियां, लट्ठे दी चादर, इक तेरी अंख काशनी आदि आज भी लोगों की जुबां पर आप सुन सकते हैं, सिर्फ यही नहीं बॉलीवुड भी इनकी शायरी से अछूता न रहा, कुछ समय पहले आई एक फिल्म में आभिनेत्री आलिया भट्ट को भी आपने उनका एक गीत गाते सुना होगा….

इक कुड़ी जिदा नाम महोब्बत, गुम है….

इनके गीतों को नुसरत फतेह अली खान, महेंद्र कपूर, जगजीत सिंह, नेहा भसीन, गुरुदास मान, आबिदा, हंस राज हंस आदि गायकों ने गाया भी और खूब वाहवाही भी लूटी।

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पंजाब और पाकिस्तान से जुड़ा ऐसा कोई गायक कोई कलाकार नहीं जिसने शिव के गीतों को अपनी आवाज़ न दी हो.

आज शिव हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब भी कोई गायक उनका लिखा कोई गीत लेकर सामने आ जाता है न, शिव फिर से अपनी याद ताज़ा करा देते हैं, मानों वो कह रहें हो मैं यहीं हूं…मैं यहीं हूं…मैं यही हूं…

हो छल्ला बेरी ओये बूरे, वे वतन माही दा दूरे
वे जाणा पहले पूरे, वे गल सुण छलया, चोरा
वे काहदा लाया ही झोरा
शिव की शायरी गाढ़े प्यार की रंगत में रंगी नज़र तो आती ही हैं लेकिन विरह, प्यार की तड़प, उदासी, संवेदनशीलता और कविताओं में शिकायत भरी बेचैनी भी नज़र आती है। अपने आखिरी दिनों में उन्होंने शराब को ही अपना एकमात्र सहारा बना लिया था और कब वो बिरहा के सुल्तान बन गए पता ही नहीं चला।

BBC द्वारा ली गई उनकी इंटरव्यूह देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर Click करें।

https://www.youtube.com/watch?v=nXGCNJPrFEA

उन्होंने BBC को दी अपनी एक इंटरव्यूह में कहा था कि जीवन एक धीमी आत्महत्या है, हम सब एक धीमी मौत मर रहे हैं और ऐसे मरना एक बुद्धिजीवी के जीवन की अंतिम नियति है।

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7 मई 1973 के दिन सिर्फ 36 साल की उम्र में वो हम सबको अलविदा कह गए।

मुझको तेरा शबाब ले बैठा,
रंग गोरा, गुलाब ले बैठा.

कितनी पी ली, कितनी बाकी है,
मुझको यही हिसाब ले बैठा.

अच्छा होता सवाल न करता,
मुझको तेरा जवाब ले बैठा.

फुर्सत जब भी मिली है कामों से,
तेरे मुख की किताब ले बैठा.

मुझे जब भी तुम हो याद आए,
दिन दहाड़े शराब ले बैठा.