आज ऐसा दौर आ चुका है जहां ज्यादातर युवा वर्ग अध्यात्म की ओर आकर्षित होने लगा है, लेकिन उनमें से अधिकतर को ये भी नहीं पता होता कि अध्यात्म है क्या ? अध्यात्मिक होने के सहीं मायने क्या हैं ? मुझे लगता है कि इन प्रश्नों के उत्तर जाने बिनां कोई आध्यात्मिक हो भी कैसे सकता है ? अध्यात्म अपने आप में एक ऐसा रहस्य है जिसे जानना, पहचानना और समझना, इतना आसान नहीं। मेरा मानना है कि अध्यात्म एक ऐसी दिव्य अनुभूति है अगर उसका कुछ अंश भी आपमें आ जाए तो उसके जैसा दिव्य अनुभव या नशा कहीं और से मिल ही नहीं सकता। इस बारे में अगले लेख में चर्चा करेंगे फिलहाल हम कुण्डलिनी जागरण के शुरुआती लक्षणों पर बात करने जा रहे हैं।
इस बारे में सदियों से बहुत से विद्वानों, ऋषि-मुनियों, आध्यात्मिक संतों के अलग-अलग मत हैं और उनका अनुभव भी अलग-अलग हैं। इस बारे में कई योग व ध्यान करने वाले योगार्थियों ने अपने अनुभव सांझे करते हुए बताया कि कुण्डलिनी शक्ति जागरण का प्रथम पड़ाव और शुरुआती लक्षण ये हैं कि इंसान ईश्वर की सत्ता को पहचानने लगता है। भौहों के बीच आज्ञा-चक्र में ध्यान लगाने पर पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देने लग जाता है, इसके बाद धीरे-धीरे पीला और गोल-गोल घूमती परीधी नज़र आने लग जाती है। पूर्वाभास होने लग जाता है। उनके अंदर दूसरों के लिए भावनाएं अच्छी होने लग जाती हैं। किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रहता। ऐसे आध्यात्मिक व्यक्ति के पास बैठने से दूसरे व्यक्ति के विकार भी शांत होने शुरु हो जाते हैं। ध्यान, योग व ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ने लग जाती है। उस व्यक्ति के चेहरे की आभा और चमक बढ़ने लग जाती है। माथे का तेज बढ़ जाता है। शरीर पर लावण्यता आने लगती है। चेहरे के भाव शांत व सधे हुए नज़र आते हैं। मन में शांति और प्रसन्नता, दृष्टि में दूसरों के प्रति करुणा के भाव नज़र आने लगते हैं। विचारों में सात्विकता, आदरता व महानता नज़र आती है। ऐसे व्यक्ति को कोई बीमारी नहीं होती। अगर पहले से हो तो ठीक होने लग जाती है। इस बारे में कई योगियों का ये भी कहना है कि कईयों की कुण्डलिनी जागृत ध्यान लगाने के दौरान होने लगती है और कई ऐसे दिव्य लोग भी होतें हैं जिनके अंदर कुण्डलिनी अपने आप जागृत होने लग जाती है जिसके बारे में वो भी समझ नहीं पाते कि अचानक से उनके अंदर बदलाव कैसे होने लग गए हैं। खैर, कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने का अभ्यास अगर आप साधक नहीं हैं तो आप बिल्कुल न करें क्योंकि कई ऐसे लोग भी पाए गए हैं जिन्होंने कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने की कोशिश की लेकिन बाद में वो पागल तक हो गए। इसलिए सिर्फ ध्यान करें न कि किसी शक्ति को प्राप्त करने के लिए इस रास्तें जाएं ध्यान से आत्म शक्ति व मनोबल को प्रबल करना ज्यादा अच्छा है इसके द्वारा भी दिव्य व सात्विक गुण अपने आप हमारे अंदर आने लग जाते हैं।
इस विषय पर चर्चा सिर्फ आपकी सामान्य जानकारी के लिए है।
मनुस्मृति लखोत्रा
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