हम लोगों में न, एक सबसे ज्यादा जो आदत देखने में पाई गई है वो ये कि किसी भी बात को अपने दिल में दबाकर रखने की। हम लोग ज्यादातर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। उन्हें अपने अंदर ही अंदर कहीं तहखानों में दफ्न करके रख लेतें हैं और उसमें नईं बातें जोड़ते रहते हैं, जिसका अंजाम ये होता हैं कि एक दिन हमारे अंदर का सारा तूफान एक लावे की तरह बाहर आ जाता है और अपनी चपेट में सबको ले डूबता है। कई बार तो इस लावे की चपेट में कितने ही प्यार करने वाले रिश्ते बिखर जाते हैं।
प्यार और माफ कर देना एक ऐसी दवा है जो हर तरह के ट्रीटमेंट से सबसे ऊपर है। जहां एक तरफ प्यार का इज़हार कर देना किसी की ज़िंदगी में खुशियां ला सकता है, जीने की एक नई राह दे सकता है, तो वहीं किसी को उसके किए पर माफ कर देना आपके व्यक्तित्व को बड़ा बना देता है। क्योकि ज़िंदगी कभी रुकती नहीं, निरंतर अपनी चाल में चली ही जा रही हैं, और न ही हमें पता है कि हमारे पास कितने साल, कितने घंटे, कितने मिनट और हैं, ताकि हम अपने अधूरे काम समय पर पूरे कर लें…किसी रूठे हुए को फिर से मना लें।
ईश्वर की यही नियती तो यहां काम कर गई कि कोई भी अपनी ज़िंदगी के कुल सालों को पहले से नहीं जान सकता। इसलिए जो भी पेंडिंग वर्क्स हैं उन्हें अभी पूरा करना हैं, रूठे हुओं को अभी मनाना है, किसी से प्यार करते हैं तो इज़हार भी अभी करना है, अपने अधूरे सपनों को अभी पूरा करना है, क्योंकि क्या पता कि कल हो न हों…और क्या पता किसी के लिए स्नेह, प्यार, त्याग, समर्पण को जताने का मौका ही न मिले…तो फिर अपनी भावनाओं, प्यार और समर्पण को क्यों झूठी इगो के पुलिंदे पर बाध कर रखा जाए। इगो ने आज तक किसी को कुछ नहीं दिया है, हां आत्मसम्मान हमेशा ऊंचा रखें न कि इगो….. क्यों न किसी को स्पेशन फील कराया जाए, कि हां तुम वही हो जिसे मैं कह सकूं “जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे…जो तुमको….।