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Happiness is Free: “आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू, जो भी है बस यही इक पल है”…

हौसलों की सीढ़ीं पर सपने बुनने से भला कौन आपको मना कर सकता है लेकिन हर एक दिन भी एक target achieve करने के बराबर ही होता हैं। सुबह जब आप ऑफिस के लिए अपने घर से निकलते हैं न, दीमाग में न जाने उस दिन के कितने targets, emails के replies  सोचते हुए, न जाने कितने ही new challenges लिए ऑफिस पहुंचते हैं, और ऑफिस में बॉस की expectations, आपके आसपास बिखरा तनाव शाम होते-होते एक सूनामी जितना भयावह रूप ले लेता है। जिसमें आप तू-तू, मैं, मैं के हिचकोले खाते हुए फिर शाम को थके हारे घर पहुंच जाते हैं। घर जाने ही फैमिली की expectations भरी निगाहें आपको ऐसे देखती है मानों आपने न जाने उनके कितने ही सपनों का कत्ल कर दिया हो।

एक बार तो ऐसा लगता है मानों हमारे अंदर का उमंगों से भरपूर, आशावादी, उर्जावान व्यक्ति कहां चला गया, जो अचानक मेरे गिरने पर मुझे संभाला करता था कि उठो अभी तो तुम्हें बहुत आगे जाना है।

अभी दो दिन पहले एक खबर अखबार की सुर्खियां बनी हुई थी कि फिल्म बॉर्डर के रियल हीरो, ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी, जिनका बॉर्डर फिल्म में किरदार एक्टर सन्नी देयोल ने निभाया था, नहीं रहे। ये फिल्म 1971 की भारत-पाक की जंग पर आधारित थी।

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हम आपको एक बार फिर से उनके बारे में यहां बताना चाहते हैं कि रियल लाइफ के सुपर हीरो और 1971 की जंग में महावीर चक्र विजेता कुलदीप सिंह को 1971 की लड़ाई में पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन को लीड करने की जिम्मेदारी दी गई थी। एक अखबार में छपे एक आर्टिकल के अनुसार मेजर चांदपुरी के पास सिर्फ 120 सैनिकों का ट्रूप था तो वहीं दूसरी तरफ सामने थे पाक की 51वीं इंफ्रेंटी ब्रिगेड के 2,000 से 3,000 सैनिक। जिसके साथ 22वीं आर्म्ड रेजीमेंट की भी मदद मिल रही थी। पांच दिसंबर 1971 की सुबह दुश्मन ने भारतीय सेना पर हमला बोल दिया। हालात मुश्किल थे और फिर भी मेजर चांदपुरी ने इन हालातों का सामना किया। पूरी रात वो 120 सैनिकों की कंपनी के साथ दुश्मनों का मुकाबला करते रहे।

चांदपुरी अपने सैनिकों में रिइंफोर्समेंट आने तक जोश भरते रहे ताकि वह दुश्मन का मुकाबला कर सकें। एक बंकर से दूसरे बंकर तक जाकर वह अपने सैनिकों को उत्साहित करते रहे। उस समय एयरफोर्स के पास जो एयरक्राफ्ट्स थे वह रात में लड़ाई नहीं कर सकते थे। सुबह तक मेजर चांदपुरी और उनकी कंपनी बहादुरों की तरह दुश्मन से लड़ती रही। सुबह जब एयरफोर्स पहुंची तो उसकी मदद सेना को मिली। लड़ाई के बाद मेजर चांदपुरी को महावीर चक्र से पुरस्कृत किया गया। इस पूरी स्टोरी को पढ़कर आपको बार्डर फिल्म की याद जरूर आ रही होगी।  download

ब्रिगेडियर चांदपुरी का उदाहरण देना यहां एकदम सटीक बैठता था, उनके जैसे हौसले की जरूरत सिर्फ लड़ाई में ही नहीं बल्कि हमें अपनी ज़िंदगी के हरेक दिन पड़ती है। हमारे सामने रोज़ाना कितने ही targets, new challenges, expectations, frustrations होती हैं। मेजर चांदपुरी जैसी हिम्मत, सोच, समझ की ही हमें हर पल ज़रूरत हैं, ज़रा एकबार सोचिए जो हमारे परिवार के सदस्य हमारे ऊपर निर्भर हैं आप उनके ऊपर एक पेड़ की तरह हैं, अगर आप भी ब्रिगेडियर चांदपुरी जैसा साहस, समझ, उत्साह और साथ ही प्यार व स्नेह को भी अपने अंदर बनाए रखेंगे तो यक़ीनन चाहे कितने भी तूफान आपकी ज़िंदगी में आ जाएं आप उनका डटकर मुकाबला कर पाएंगे। क्योंकि कल क्या होने वाला है वो हम नहीं जान सकते, जो गुज़र गया वो भी हमारे बस में नहीं था, जो हमारे हाथ में हैं वो यही एक पल है, जिसमें हमें जीना हैं।

जाते-जाते यहां मैं एक गीत दोहराना चाहुंगी, इस गीत की लाईनों में इतनी गहराई है कि सच में सोचने पर मजबूर कर देती हैं किः-

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“आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू,

जो भी है…बस यही एक पल हैं….

अन्जाने सायों का, राहों में घेरा है

अनदेखी बाहों ने, हम सबको घेरा है..

ये पल उजाला है, बारी अंधेरा है..

ये पल गवाना न, ये पल ही तेरा है..

जीने वाले सोच ले, यही वक्त है कर ले,

पूरी आरज़ू…

Aage bhi jaane na Tu from WAQT-5.mpg (1965)

https://www.youtube.com/watch?v=9ookSneuHOA&start_radio=1&list=RD9ookSneuHOA&t=270&pbjreload=10