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Happiness is Free: आखिरी समय कहीं ये पछतावें आपमें न रह जाएं !

जब किसी इंसान का बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही कुछ जिम्मेदारियां उसके सिर पर पड़ जाती हैं और कुछ जिम्मेदारियां ऐसी होती हैं जिन्हें वो अंतिम सांस तक भी उठाता रहता है। जैसे पारिवारिक जिम्मेदारियां, सामाजिक जिंम्मेदारियां, देश के प्रति जिम्मेदारियां और कुछ जिम्मेदारियां ऐसी होती हैं जो हमारी अपने आप के लिए भी होती हैं। लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हम लोग सारी ज़िंदगी जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते एक दिन अपने अंतिम समय के नज़दीक आ जाते हैं और तब हमें लगता है कि अरे मैने अपने लिए तो कभी सोचा ही नहीं या फिर काश मैं अपनी ज़िंदगी को खुल कर जी पाता, मैने कभी अपने लिए वक्त निकाला ही नहीं।

क्या आप जानते हैं कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु का समय नजदीक आता है तो उसे क्या पछतावे रह जाते हैं ? अपने आखिरी समय में उसके पास करने के लिए बहुत से अधूरे काम होते हैं लेकिन तब समय नहीं होता सिर्फ पछतावा ही होता है।

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ब्रोनी वेयर एक ऑस्ट्रेलियाई नर्स जिन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष हॉस्पिटल के एक ऐसे हिस्से में काम करने में बिताए जहां उन मरीज़ों को रखा जाता था जो किसी भयानक लाइलाज बिमारी या कैंसर के अंतिम चरण में अपनी ज़िंदगी की आखिरी सांसे गिन रहे थे। इस यूनिट का नाम था “पैलिएटिव केयर यूनिट”। ब्रोनी ऐसे मरीज़ों की काउंसलिंग किया करती थी ताकि अंतिम समय में दर्द, बिमारी और मौत के तनाव को कम किया जा सके और मरीज अपनी मौत के अंतिम क्षणों में आध्यात्मिकता और शांतिपूर्वक जा सके।

ब्रोनी ने मरते हुए मरीजों के अंतिम क्षणों के आविर्भावों (epiphanies) को अपने एक ब्लॉग में लिखना शुरू किया और पाया कि अंतिम वक्त लोग अक्सर तरह-तरह के पछतावे के साथ अपने शरीर को त्यागते हैं। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि लगभग हर तरह के लोगों के अंतिम समय मे वह उनके साथ रही है। उनका ब्लॉग इतना प्रसिद्ध हुआ कि उन्होंने बाद में 5 सबसे बड़े पछतावों पर एक पुस्तक लिखी। ये पुस्तक इतनी बिकी कि उस साल की बेस्टसेलर पुस्तकों में से एक रही।

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Bronnie Ware ने बहुत ही सुंदर तरीके से लिखा है कि लोग अंत समय में जीवन के मत्वपूर्ण पहलुओं और मकसद को गहराई से समझते हैं और फिर अपनी तमाम उम्र इन सब से अनजान रहने पर पछतावा भी करते हैं।

अगर हम इन पहलुओं को आज ही समझ जाएं तो अपने जीवन को सही तरीक़े से जीना सीख सकते हैं। ब्रोनी वेयर के अनुसार आइये जानते हैं कि 5 ऐसे कौन से पचतावें है जो इंसान मरते वक्त करता है।

1) काश मुझमे इतनी हिम्मत होती कि मैं वो जीवन जी पाता जो मैं जीना चाहता था न कि वो जीवन जो दूसरे लोग मुझसे उम्मीद करते थे।

यह मरीज़ों में सबसे बड़ा पछतावा होता है। यह पछतावा सबमें सामान्य भr पाया गया। जब लोग अपने अंतिम समय में होते हैं तो वो ये जान पाते हैं कि दूसरों के मुताबिक जीते-जीते कितने ही ऐसे काम या सपनें थे जिन्हें वो पूरा न कर सके और फिर ये महसूस करते हैं कि उनके पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय, स्वास्थ्य और साधन थे मगर कुछ गलत और अनचाहे विकल्पों को चुनने के कारण ये सब हासिल नहीं कर सके। मरीज़ इस बात का पछतावा करते है कि क्यों जीवन भर कोई भी काम करने या निर्णय लेने से पहले ये सोचते रहे कि “लोग क्या सोचेंगे”, काश मुझमे इतना आत्मविश्वास होता कि मैं अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेता न कि दूसरों के लिए निर्णय के हिसाब से अपना जीवन जीता।

2) काश मैंने अपने बच्चों और परिवार के साथ ज्यादा समय बिताया होता और इतनी मेहनत न की होती :

ब्रोनी वेयर लिखती है कि यह बात हर एक पुरुष व्यक्ति ने कही है कि भागती-दौड़ती दुनिया के साथ बने रहने के लिए उन्होंने बहुत ज्यादा मेहनत की और अपने काम मे हद से ज्यादा व्यस्त रहे इस बीच अपने बच्चों और परिवार को अच्छा समय नहीं दे पाए।

3) काश मुझमे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत होती:

बहुत से लोग सिर्फ इसलिए अपनी भावनाएं दबा लेते हैं ताकि वो दूसरों को खुश देख सकें। इसलिए वो अपनी भावनाओं का गला घोटते रहे और चुनौतियों से भरा जीवन जीते रहे। जिस वजह से उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार पोजिशन नहीं मिली जिस बात का असंतुष्टि और नाराजगी से भर जाते हैं और इसी से संबंधित बीमारियों का शिकार भी हो जाते हैं।

4) काश मैं अपने दोस्तों से दोस्ती कायम रखता:

ब्रोनी लिखती हैं कि अक्सर लोग तब तक पुराने दोस्तों के महत्व को महसूस नहीं कर पाते हैं जब तक वो अपने अंतिम दिनों में न पहुंच जाएं। बहुत से लोग अपने जीवन मे उलझे रहते हैं और फिर अपने पुराने रिश्तों को समय और अहमियत न देने पाने के कारण बहुत दूर होते चले जाते हैं। सभी लोग अपने अंतिम दिनों में अपने दोस्तों को बहुत ज्यादा याद करते हैं।

5) काश मैं अपने आप को खुश रख पाताः

आश्चर्यजनक रूप से यह भी सभी लोगों के अंतिम समय का एक अहम पछतावा होता है। बहुत से लोग अंतिम समय तक ये नहीं समझ पाते हैं कि “खुशी” या खुश रहना एक चुनाव  होता है। जो कभी बाहर से नहीं मिल सकता, हम खुद अपने आप को खुश रख सकते हैं।

ब्रोनी लिखती है कि खुश रहने का विकल्प हमेशा ही लोगों के पास होता है मगर अपनी ही मानसिकता की गुलामी करने की आदत लोगों को जकड़े रहती है। लोग ये सोचकर बहुत पछतातें है कि वो अपने जीवन मे खुश नहीं रह सके और इसका कारण केवल वो स्वयं ही थे।

आइए, ब्रोनी वेयर की पुस्तक से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आप से ये प्रण लेते हैं कि हम अपनी ज़िम्मेदारियों के आगे अपनी खुशियों का गला नहीं घोटेंगे। आपको जो कुछ भी अच्छा लगता है वो आज ही करें, कल किसने देखा हैं, अपने लिए, अपनों के लिए जो कुछ भी करना चाहते हैं वो कीजिए, ज़िंदगी खुल कर जिएं। हमेशा अच्छा सोचें, अच्छा करें, दूसरों का भी जहां तक हो सके भला करें ताकि आपके अंतिम समय में आपको कोई पछतावा न हो और न ही मौत से डर लगे क्योंकि तब शायद हो सकता है आपके सिर से ज़िम्मेदारियां भी खत्म हो जाएं लेकिन तब आपके पास समय बहुत कम होगा।

मनुस्मृति लखोत्रा