आज तक आपने वृंदावन और निधिवन के रहस्य के बारे में बहुत बार पढ़ा या सुना होगा। जिनके रहस्यों के बारे में जानने की जिज्ञासा हर बार मन में एक नया प्रश्न खड़ा कर देती है कि आस्था के नाम पर मात्र ये एक भ्रम है या सच में इसके पीछे छिपा है कोई रहस्य।
ये विषय इतना जटिल और रहस्यमयी है कि इसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि इस दुनियां में भगवान श्री कृष्ण और राधा के करोड़ों भक्त हैं जिनकी उनपर अटूट आस्था और विश्वास है, लेकिन निधिवन के साथ जुड़े कुछ तथ्य, मान्यताएं और रहस्य हमें सच में सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या मेरे आराध्य श्री कृष्ण यहां आज भी यहां आते हैं ? ये सोच कर आपके कदम शायद वृंदावन के दर्शन करने खुद-ब-खुद कई बार खिंचे चले गए होंगे और अगर अब तक नहीं भी जा पाए हैं तो इस बारे में सुनना या चर्चा करना तो बेहद प्रिय व आश्चर्यचकित कर देने वाला होता होगा, तो चलिए एक बार फिर से वृंदावन के निधिवन के बारे में जाना जाए।
वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर से कुछ ही दूरी पर यमुना के तट पर बसा है निधिवन। सदियों से ये स्थान रहस्मयी बना हुआ है। यहां के पूजारी, गाईड व स्थानिय लोगों का कहना है कि यहां रात को श्री कृष्ण और राधा का मिलन होता है और ऐसा माना जाता है कि ये वही वन है जहां भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला की थी। इस स्थान पर मौजूद वृक्षों को देखकर भी ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे यहां के पूजारी व स्थानिय लोगों कहना हैं, क्योंकि इन वृक्षों की आकृति ही कुछ अजीब ढंग की है उन्हें देख ऐसा लगता है मानों मनुष्य नृत्य की मुद्रा में स्टैचू बनकर खड़े हो। सिर्फ यहीं नहीं लगभग दो ढाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की एक खास बात ये भी है कि किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं है, इनकी टहनियां नीचे की ओर झुकी हुई व आपस में गुथी हुई हैं जिन्हें डंडों की सहायता से सहारा भी दिया गया है। मान्यता है कि यह वृक्ष गोपियां हैं जो रात के समय मनुष्य रूप लेकर श्री कृष्ण के साथ रास का आनंद लेती हैं। मान्यता है श्री कृष्ण और राधा आज भी आर्धरात्रि के बाद इन गोपियों के साथ मिलकर रास रचाते हैं। रास के बाद इसी परिसर में बना मंदिर जिसे रंग महल कहते हैं वहां विश्राम करते हैं। यहां आज भी रोज़ाना भगवान की सेज सजाई जाती है, श्री राधा के लिए श्रृंगार का सामान रखा जाता है और माखन-मिश्री का प्रसाद भी रखा जाता है। मान्यता है कि रात के समय श्री राधा यहां आकर अपना श्रृंगार करती हैं और भगवान श्री कृष्ण राधा के साथ सेज पर विश्राम करते हैं। अगले दिन श्रृंगार सामग्री और सिंदूर को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट दिया जाता है। अगर आपको अभी भी यकीन नहीं हो रहा तो कुछ और तथ्य हम आपके सामने पेश करेंगे।
वृंदावन में निधिवन को बहुत ही पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान का दर्जा प्राप्त है। इसके साथ करोड़ों भक्तों की आस्था भी जुड़ी हुई है। इस वन की एक और रहस्यमयी बात ये है कि शाम के ढलते ही कोई भी व्यक्ति, पुजारी अगर इस वन में हो वो बाहर आ जाते हैं विशेष बात ये है कि जानवर, दिनभर यहां खेलते कूदते बंदर और पक्षी तक उस वन से अपने आप बाहर निकलना शुरु हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे वो किसी के आदेश का पालन कर रहे हों। जब सारा निधिवन खाली हो जाता है तो परिसर के मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई भी रात को इस परिसर के अंदर रुक जाता है या तो वह इस संसार से मुक्ति पा लेता है या फिर गूंगा, अंधा, बहरा या पागल हो जाता है।
हैरान कर देनी वाली एक और बात ये है कि इस निधिवन में 16000 वृक्ष जो आपस में गुथे हुए हैं मान्यता ये है कि ये श्री कृष्ण की 16000 रानियां हैं जो रात को वृक्षों से रानियां बन जाती हैं और उनके साथ रास रचाती हैं। रास के बाद श्री कृष्ण और राधा रंग महल में विश्राम करने चले जाते हैं। श्री कृष्ण और राधा के लिए लगाया गया शयन जिसे सुबह 5.30 बजे जैसे ही मंदिर के द्वार खुलते हैं, देखने पर ऐसा लगता है मानों यहां रात को कोई सोया था, यानि उसपर सिलवटें पड़ी हुई होती हैं। श्रृंगार का समाना बिखरा व इस्तेमाल किया हुआ होता है। दातुन गीली मिलती है।
लेकिन दूसरी तरफ इन सब रहस्यमयी बातों को खारिज करते हुए कई विद्वान मंदिर के पूजारी और मंदिर के गाईड की बातों को एक दम गलत बताते हुए दूसरे कई पक्ष पेश करते हैं। उनका मानना है कि निधिवन का परिसर बहुत छोटा है और इसके चारों ओर 10 फुट ऊंची दीवारें हैं जहां 16000 वृक्ष हो ही नहीं सकते बल्कि 1600 वृक्ष भी मुश्किल से हो सकते हैं। निधिवन की परिसर के चारों ओर ऊंची दीवार साथ ऊंचे-ऊंचे रिहायशी घर भी बने हुए हैं। अगर यहां के पूजारियों और गाइड का ये कहना है कि यहां रात को रुकने वाला या तो दुनियां से ही चला जाता हैं या गूंगा या पागल हो जाता है तो फिर जो स्थान इतना रहस्यमयी और दहशत वाला हो उसके आसपास रिहायश कैसे हो सकती है ? और भी कई जाने-माने वास्तु विशेषज्ञों ने कई बातों को नकारते हुए वास्तु के हिसाब से कई तर्क दिये हैं जिनपर खोज अभी भी जारी है।
बाकि भक्तों की अपनी आस्था और विश्वास पर भी निर्भर करता हैं कि वो अपने प्रभू को किस रूप में देखना चाहते हैं अगर उन्हें वहां जाकर श्री कृष्ण रास रचाते प्रतीत होते हैं तो ज़रूर श्री कृष्ण आपको उसी रूप में दिखाई देंगे अगर आप इन सब मान्यताओं को मात्र एक भ्रम मानेंगे तो ये भ्रम भी हो सकता है। यहां सोचने वाली बात ये हैं कि आपका नज़रिया अपने ईष्ट को लेकर क्या है ? वो तो हर जगह व्याप्त है। अगर आप चाहें तो आप उन्हें अपनी आंखे बंद करते भी किसी भी रूप में देख सकते हैं।