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Way to Spirituality: श्री कृष्ण के कर्मयोग के सिद्धांत क्या है, क्या आपने कभी उनके सिद्धांतों पर चलकर देखा है ?

“कर्म करो फल की चिंता मत करो”, काम ही मेरी पूजा है, इस तरह के बहुत से प्रेरणादायक वाक्य बचपन से लेकर आज तक आपने अपने टीचर्स, बॉस और घर के बड़े-बुजुर्गों से कई बार सुने होंगे।

आज बड़े-बड़े Corporate houses, MNCs,  Schools, Colleges, Institutions में व competitive examinations  की तैयारी करते वक्त भी हमें ये ही सिखाया जाता है कि “Do your work only, don’t think about results”.

लेकिन क्या सही मायनों में हम ऐसी कोट्स को फोलो करते हैं, मेरे ख्याल से नहीं। हम लोग कोई भी काम करने से पहले उसके रिजल्ट के लिए ज्यादा टेंशन में रहते हैं। जिस वजह से हम अपने तय किए गए टारगेट्स व काम को पूरी शिद्दत के साथ नहीं कर पाते। इससे मुझे क्या फायदा होगा ? जब हम हमेशा फायदे या नुकसान के बारे में सोचकर किसी काम को करने या न करने के बारे में सोचते रहेंगे तो INITIATE यानि शुरुआत करने में हिचकिचाहट या कोई भी नया कदम हम उठा ही नहीं पायेंगे। कई बार हमें किसी बिजनेस या ऑफिस में ही कई ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम पड़ जाता है जहां सच में हमें पता है कि कोई फायदा होने वाला नहीं है, यहां मैं कहना चाहुंगी कि अपनी सोच और बुद्धि को अस्थिर न रखें, बल्कि बड़ा सोचें, खुला सोचें, अच्छा सोचे, हमेशा रिजल्ट की चिंता किए बिना नईं चुनौतियों को स्वीकार करें। अगर आप ऐसा सोचें कि रोज़ाना जिन प्रोजेक्ट्स पर मैं काम करता हूं वो मेरी रूटीन का एक हिस्सा हैं लेकिन अगर किसी और के बहाने आपको कुछ नया करने को मिल रहा है तो ये आपके लिए एक तो डेली रूटीन से थोड़ा चेंज होगा और साथ ही किसी दूसरे के प्रोजेक्ट पर किया गया काम आज नहीं तो कल आपके भी काम आ ही जाएगा। क्योंकि ज्यादा से ज्यादा चुनौतियों पर खरे उतरना भी हर किसी के बस की बात नहीं होती इससे आप बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी बन जायेंगे। क्योंकि जब तक आप तपेंगे नहीं तो खरा सोना कैसे बनेंगे ? अगर हम इन्हीं विचारों को श्री मद्भागवत गीता के साथ जोड़कर देखें तो पता चलता है कि कर्म का सिद्धांत भगवान श्री कृष्ण ने हज़ारों सालों पहले ही दे दिया था। अगर हर युवा उनके सिद्धातों पर चलकर अपना लक्ष्य तय करे तो मुझे नहीं लगता आपके रास्ते में कोई रुकावट भी आएंगी। आप बड़ी सोच रखने वाले, बुद्धि और विविक के रास्तें चलकर ऊर्जावान व्यक्तित्व के मालिक बन सकते हैं।

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भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यही कहा है –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन। मां कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थात कर्म करना तो तुम्हारा अधिकार है, लेकिन उसके फल पर कभी नहीं। कर्म को फल की इच्छा से कभी मत करो, तथा तेरा कर्म ना करने में भी कोई आसक्ति न हो॥

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – सांसारिक नजरिए से युद्ध की तरह संघर्ष से भरे जीवन में हर इंसान के सामने ऐसी बुरी स्थितियां भी आती है, जब मानसिक दशा अर्जुन की तरह हो जाती है। इंसान कई मौकों पर हथियार डाल कर्म से परे भी हो जाता है।

ऐसी ही स्थिति में कर्मयोग, औषधि का काम कर ऊर्जावान बनाता है। यह सिखाता है कि कर्म करो और फल की आसक्ति को छोड़ो। किंतु इस संबंध में तीन अलग-अलग स्वभाव के इंसान जिनको रज, तम और सत् गुणी माना जाता है तीन तर्क देते हैं या यू कहें कि 3 तरह की सोच उजागर करते हैं।

– तमोगुणी का विचार होता है जब फल या नतीजे छोडऩा ही है तो कर्म क्यों करें?

–  रजोगुणी सोचता है काम कर उससे मिलने वाले फल का लाभ व हक मेरा हो।

–  जबकि सतोगुणी सोचता है कि काम करें किंतु फल या नतीजों पर अपना अधिकार न समझें।

इन तीन विचारों में सत्वगुणी का नजरिया ही कर्म योग माना जाता है। क्योंकि ऐसे इंसान की सोच होती है कि वह ऐसा काम करें, जिसमें स्वार्थ पूर्ति या उनके नतीजों के लाभ पाने की आसक्ति या भाव न हो। यही नहीं इसी सोच में तमोगुणी के काम से बचने और रजोगुणी के फल पर अधिकार की सोच दूर रहती है। यही स्थिति निष्काम कर्म के लिये प्रेरित करती है, जिससे इंसान हर स्थिति में सुख और सफलता प्राप्त करता चला जाता है।

इस कर्मयोग में निश्चय रखने वाली और समाधान देने वाली बुद्धि एक ही है। जिनके विचार अस्थिर होते हैं वे विवेकहीन होते हैं और कई तरह के भेद और शंकाएं पैदा करने वाले होते हैं। अगर बुद्धि में बिखराव है और मन भी भटका हुआ है तो छोटी-छोटी बातें भी तकलीफ दे जाती हैं और आत्मविश्वास में कमी होती हैं। मतलब साफ है कि हम कुछ पाने के लिए ही कर्म कर रहें हैं अतः कुछ पाने की इच्छा से किया गया काम हमेशा सकाम कर्म कहलाता है। जो बुद्धि केवल फल की इच्छा में लगी होती है वो विवेक को खा जाती है। क्योंकि सकाम कर्म हम इच्छा, भावुकता और अहंकार वश करते हैं। जिससे मन में कई तरह की शंकाएं पैदा हो जाती हैं व मन अस्थिर हो जाता है।

इसलिए ऐसी भावनाओं से मनुष्य को छुटकारा पाने के लिए श्री कृष्ण कर्मयोग के रास्ते जाने की सलाह देते हैं। कर्मयोग एक ऐसा रास्ता है जहां बुद्धि सही गलत के फर्क को समझने लगती है और उसे उस काम से मोह नहीं रहता। इस संतुलन को विवेक के द्वारा बनाया जा सकता है क्योंकि विवेक हमारे अंदर एक तराजू की तरह काम करता हैं जो सही और गलत में अंतर समझाता है। यही विवेक हमें कर्मयोग के रास्ते लेकर जाता है।

मनुस्मृति लखोत्रा