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धनुषकोडी रामसेतु प्रारम्भिक स्थान

Religion & Astrology: कहते हैं श्री हनुमान चिरंजीवी हैं और धरती पर ही विराजमान हैं, लेकिन वो रहते कहां हैं ? जानिए

आज के आधुनिक युग में जहां व्यस्तता और भाग-दौड़ इतनी बढ़ गई है वहां कुछ रहस्यमयी व अदभुत बातों पर यक़ीन करना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है, लेकिन जहां धर्म, आस्था या अंध-विश्वास की बात आ जाती है वहां लोग आंखें बंद करके विश्वास कर लेते हैं और जब विश्वास मजबूत हो जाते हैं तो वहीं से मान्यताओं, रीति-रिवाज़ एवं परंपराओं का जन्म होता है, लेकिन कई ऐसे रहस्यमयी राज़ और मानयताएं जो हमारी आस्था पर तो टिकी होती ही हैं लेकिन वो काफी हद तक वैज्ञानिक नज़रिए से सही भी पायी गईं हैं।

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काफी वर्षों पहले जब वैज्ञानिक आधार पर रामायण काल के बारे में शोध नहीं हुए थे या हमारे पास श्री रामचंद्र के बारे में पौराणिक ग्रंथों के अलावा कोई और साक्ष्य उपलब्ध नहीं थे तब तक धार्मिक और वैज्ञानिक तौर पर दो या तीन धारणाओं वालें विद्वानों में काफी लंबे समय तक ये मतभेद रहा कि श्री राम जैसे कोई महापुरुष थे ही नहीं।

जहां एक तरफ वैज्ञानिक पक्ष के विद्वान उनके होने के प्रमाण मांग रहें थे, तो दूसरी तरफ धार्मिक पक्ष के विद्वान स्वामी वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के आधार पर श्री राम और रामायण काल के सत्य होने की गवाही दे रहे थे।

ऐसे समय में राम सेतु बांध के साक्ष्य मिलना और ठीक वहां वैसे पत्थरों का मिलना जो पानी पर तैरते थे व जिनका जिक्र वाल्मीकि रामायण में किया गया था वो भी अपने बीते कल की गवाही भर रहे थे।

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दूसरा, रामायण काल के अयोध्या नगरी व श्री-लंका से खुदाई के दौरान मिलने वाले कई साक्ष्य, खगोल वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई कई उस वक्त की कई खगोलिय घटनाओं का मिलान जब महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में उपस्थित साक्ष्यों के साथ किया गया तो वो घटनाएं रामायण कालखंड, श्री राम का जन्म व उस वक्त नक्षत्रों के हिसाब से घटित हुई घटनाओं के साथ तालमेल खाती नज़र आईं, तब शोधकर्ताओं को हैरान कर देने वाले कई तथ्य मिले जो एक दम सही थे। जिससे उनके पास श्री राम और रामायण काल की घटनाओं के होने को मानने के अलावा कोई ओर रास्ता ही न बचा।

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आज विज्ञान भी इस बात का साक्षी है कि श्री राम जैसे युग बदलने वाले महापुरुष का इस धरती पर जन्म हुआ और उनके भक्त श्री हनुमान भी उस वक्त उपस्थित थे। जिन्हें चिरंजीवी कहा जाता है और माना जाता है कि वो आज भी इसी दुनियां में विराजमान हैं।

शास्त्रों के अनुसार –  अश्वत्थामा बलिर व्यास: हनुमंथर: विभीषण: कृबा परशुराम च सप्तैतेय चिरंजीविन।।

यानि इस मंत्र के मुताबिक 7 ऐसे चिरंजीवी महापुरूष हैं, जो सदा के लिए अमर हैं और वह धरती पर रहते है। जो व्यक्ति इन्हें सच्चे मन से याद करता है, उसके भाग्य और आयु में वृद्धि होती है।

अब सवाल ये उठता है कि हनुमान जी रहते कहां है ?

”यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि।

वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक॥”

अर्थात: कलियुग में जहां-जहां भगवान श्रीराम की कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। सीताजी के वचनों के अनुसार – अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ॥

हिन्दू धर्म के महान ग्रंथ श्रीमद् भागवत के अनुसार हनुमान जी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। इस पर्वत से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है। कहते हैं यह वही पर्वत है जहां अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। यहां आने पर भीम की हनुमानजी से मुलाकात भी हुई थी, ये मुलाकात भी काफी विचित्र थी।

वनवास काल के दौरान एक बार द्रौपदी ने भीम को सहस्रदल कमल लाने के लिए निवेदन किया, अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए भीम सहस्त्रदल कमल लेने चल पड़े। जैसे ही जंगल में वे काफी आगे पहुंचे उन्हें गंधमादन पर्वत की चोटी पर एक विशाल केले का वन मिला जिसमें वे घुस गए।

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कहा जाता है कि इसी वन में श्री हनुमानजी रहते थे। वन के पास पहुंचने के लिए भीम पेड़ों की शाखाओं को इधर-उधर हिलाते हुए जा रहे थे, जिससे हनुमानजी को उनके आने का पता चल गया था। जिस मार्ग पर भीम बढ़ रहे थे वहां स्वर्ग था इसीलिए हनुमान जी ने सोचा कि आगे स्वर्ग के मार्ग में जाना भीम के लिए हानिकारक होगा। भीम को आगे बढ़ने के लिए रोकने के लिए हनुमान जी उनके रास्ते में लेट गए। रास्ते में एक बड़े से वानर को लेटा हुआ देखकर भीम ने आग्रह किया कि वह रास्ते से हट जाएं लेकिन हनुमान जी बोले, “तुम आगे क्यों जाना चाहते हो? यहां से आगे यह पर्वत मनुष्यों के लिए अगम्य है। वापस लौट जाओ। भीम को रोक पाना आसान नहीं था इसलिए वह क्रोधित हुए और बोले, तुम्हें क्या, “तुम मेरे रास्ते से हट जाओ” हनुमानजी बोले, “मैं एक रोगी पशु हूं उठ नहीं सकता, तुम मुझे लांघकर आगे निकल जाओ।“

लेकिन भीम किसी को लांघकर उसका अपमान नहीं करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने फिर हनुमान जी से रास्ते से हट जाने का आग्रह किया, तब हनुमानजी बोले, “तो तुम मेरी पूंछ पकड़कर हटा दो और निकल जाओ।“ भीम ने हनुमान जी की पूंछ पकड़कर पीछे हटाने की कोशिश की लेकिन वे उनकी पूंछ हिला तक न सके, भीम को जल्द ही समझ में आ गया कि यह कोई साधारण पशु नहीं हैं। उन्होंने हनुमान जी से क्षमा मांगी और उनका परिचय पूछा। तब हनुमान जी ने अपना परिचय दिया और वरदान दिया कि महाभारत युद्ध के समय मैं तुम लोगों की सहायता करूंगा। इस तरह से उन्होंने भीम का अहंकार तोड़ा था

हनुमान जी की कई और भी ऐसी कथाएं जो हमारे धर्मग्रंथों में उल्लेखित हैं जो गंधमादन पर्वत के साथ जुड़ी हुई हैं इससे ही अनुमान लगाया जाता है कि श्री हनुमान का निवास स्थान गंधमादन पर्वत पर है।

कहते हैं कि ये पर्वतश्रृंखला बेहद विशालकाय है जिसपर जाना असंभव है। इसके शिखर पर किसी वाहन द्वारा भी नहीं पहुंचा जा सकता। यह पर्वत पर्वतों में श्रेष्ठ है। इस पर ऋषि कश्यप ने भी तपस्या की थी। इस वन क्षेत्र में देवता, ऋषि, सिद्ध पुरुष, अप्सराएं, किन्नर, गंधर्व, चारण, विद्याधर आदि रहते हैं और निर्भिक होकर विचरण भी करते हैं।

विभिन्न स्त्रोतों व अखबारों से मिली जानकारी के अनुसार “वर्तमान में यह पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है जिसके दक्षिण में केदार पर्वत है। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। गंधमादन के नाम से दक्षिणी भारत में रामेश्वरम के पास भी एक पर्वत स्थित है। यह वह पर्वत है जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी।

पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत स्थित है। लेकिन वर्तमान समय के मुताबिक यहां पहुंचने के लिए तीन रास्ते बने हैं। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। इनमें से कोई भी रास्ता छोटा नहीं है।”

 

मनुस्मृति लखोत्रा

 

Note- (इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसे मात्र सामान्य जनरूचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)