You are currently viewing Way to Spirituality: आपका स्वभाव किस गुण से ज्यादा प्रभावित है, सतोगुण सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?

Way to Spirituality: आपका स्वभाव किस गुण से ज्यादा प्रभावित है, सतोगुण सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?

हमारे अंदर तीन तरह के गुण पाए जाते हैं सतोगुण, तमोगुण एवं रजोगुण। इनमें से किसी एक गुण की भी अधिकता या कमी हमारे स्वभाव और जीवन पर गहरा असर डालते हैं। जिस कारण प्रत्येक व्यक्ति का आचरण एवं व्यवहार एक-दूसरे से अलग होता है। प्रकृति में भी ये गुण पाए जाते हैं। आप भाव समझने के लिए रंगों का उदाहरण ही ले लीजिए, जैसे तीन मुख्य रंग लाल, नीला और पीला मिलकर विभिन्न रंगों को उत्पन्न करते हैं, ठीक उसी प्रकार गुणों के विभिन्न मिश्रण से व्यक्तित्व का निर्माण होता हैं। जैसे तीन रंगों को मिलाने पर जिस रंग की ज्यादा अधिकता होगी उसी रंग का असर, रंग व प्रभाव ज्यादा दिखाई देगा और ये तीनों रंग भी अलग-अलग स्वभाव का प्रतीक हैं, ठीक वैसे ही इंसान में पाए जाने वाले तीन गुण भी यदि कम या ज्यादा होगें तो उस व्यक्ति का स्वभाव भी वैसा ही होगा। जब तक हम इन गुणों की प्रकृति और प्रभाव से अनभिज्ञ रहते हैं, तब तक हम अपने स्वभाव और अपने नेचर की प्रकृति भी नहीं समझ पाते लेकिन जैसे ही हमें अपने गुणों के प्रभाव के बारे में समझ आ जाती है वैसे ही हम अपने गुणों के सम्मिश्रण को नियंत्रित भी कर सकते हैं।

श्री भगवद्गीता हमें संसार में सत्व गुणों पर चलने की राह दिखाती है जिसके द्वारा हम सांसारिकता से ऊपर उठकर ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। भगवद्गीता मानव के व्यक्तित्व का विश्लेषण संपूर्णता से करती है और हमें हमारी कमजोरियों व शक्तियों से अवगत कराती है। प्रत्येक मानव जड़ और चेतन से मिलकर बना है। इसमें चेतन ही सारभूत है। जड़ तीन गुणों जैसे सत्व, रज और तम से मिलकर बनता है। यही गुण व्यक्ति के विचारों,  भावनाओं और कर्मों के बारे में बताते हैं। इन गुणों की वजह से ही हमारा स्वभाव और व्यवहार तय होता है। ये गुण हमारे अंदर जैनेटिक कोड की तरह होते हैं। ये सब गुण मिलकर हमें इस संसार से जोड़कर रखते हैं।

जानिए सत्व, रज एवं तम गुण क्या हैं ?

तम का शाब्दिक अर्थ होता है अंधकार, अतः तमोगुण एक प्रकार की अकर्मण्यता और उदासीनता की स्थिति उत्पन्न करते हैं जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से होती है। इस अवस्था में श्रेष्ठ गुण छिप जाते हैं और ये गुण प्रकट ही नहीं हो पाते।

रजो गुण निराशा और तनाव की वह स्थिति है जिसकी उत्पत्ति लालच, तृष्णा व कामेच्छा से होती है।

सत्व गुण मन की वह शांत अवस्था है जहां व्यक्ति अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन करता है। इस अवस्था में मानव मस्तिष्क शांत व विचारशील होता है। यह अवस्था अनथक प्रयास की नैसर्गिक वृत्ति व उत्कृष्टता का प्रतीक है।

सतोगुण को पाने की इच्छाहरेक में रहती है ताकि वह अपने कार्य क्षेत्र में श्रेष्ठतम प्रदर्शन कर सके लेकिन यह बात कोई भी नहीं जानता कि इस अवस्था प्राप्त कैसे किया जाए।

gunas-02

श्रीमद्भगवद्गीता का 14वां अध्याय तीन गुणों के बारे में बताता है। इसमें सत्व, रज और तम इन तीन गुणों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है तथा साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह गुण किस प्रकार व्यक्ति को सांसारिकता से जोड़ते हैं।

जब सत्व गुण की अधिकता होती है तो आपका प्रदर्शन श्रेष्ठतम होता है। जब रजो गुण की अधिकता होती है तो लालच, अशांति और तृष्णा दोष से आपका प्रदर्शन निचले स्तर तक गिर जाता है और जब तमो गुण की प्रधानता हो जाए तो भ्रम, लापरवाही व अकर्मण्यता के कारण आपकी पराजय हो जाती है। आप चाहे कितने ही योग्य क्यों न हों लेकिन रजो गुण और तमो गुण का बाहुल्य असफलता ही देता है। इसलिए यह अत्यावश्यक हो जाता है कि आप अपने सतोगुण को बढ़ाएं और रजोगुण का त्याग करें तथा तमोगुण का दृढ़तापूर्वक उन्मूलन कर दें।

इन्हीं गुणों की मात्रा से यह भी बताया जा सकता है कि मृत्यु के पश्चात् आप किस प्रकार के वातावरण में प्रवेश करेंगे। यहां समझने योग्य बात है कि सात्विक गुणों वाली आत्मा एक आध्यात्मिक परिवार में जन्म लेती है जहां मानसिक शांति और पवित्रता वाले वातावरण में सत्वगुण खूब पनपता एवं खिलता है। शुद्ध सत्वगुण व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर कर देता है। राजसिक गुण वाले लोग ऐसे परिवार में जन्म लेते हैं जहां लोग जीवन में भौतिक प्राप्तियों व राजसुख भोगने में तत्पर रहते हैं। ऐसा व्यक्ति सांसारिकता में और अधिक लिप्त हो जाता है। तामसिक व्यक्ति सुस्त और मूर्ख व्यक्तियों के परिवार में पैदा होता है। केवल सात्विक पुरुष प्रगति कर पाता है। राजसिक व्यक्ति एक संकीर्ण समूह के अंदर आगे बढ़ता है जबकि तामसिक व्यक्ति का निरंतर पतन होता जाता है। मानव जीवन का उद्देश्य इन तीनों गुणों से परे गुणातीत होकर जीवन, मृत्यु, क्षय, सड़न और दुःख के चक्र से मुक्त होना है।

इसलिए हमेशा ये प्रयास करें कि अपने अंदर सत्वगुण को बढ़ाएं। रजो गुण व इच्छाओं को नियंत्रित रखें तथा तमोगुण का दृढ़तापूर्वक उन्मूलन करें और फिर देखें कि जीवन में क्या अंतर आता है। भगवद् गीता के 14वें अध्याय के अंतिम भाग में उस व्यक्ति के गुणों के बारे में चर्चा कि व्यक्ति किस प्रकार सतोगुणी बनता है। जब आप अपने आस-पास इन गुणों का प्रभाव देखते हैं लेकिन स्वयं इनसे प्रभावित नहीं होते तो फिर आप सच में इन गुणों से ऊपर उठकर परम ज्ञान व शांति की श्रेष्ठतम अवस्था में पहुंच चुके हैं। आप इसी पथ पर अग्रसर हों तथा अपने एवं समाज को समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करें।

 

मनुस्मृति लखोत्रा