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Happiness is Free: क्या सहनशक्ति व सदगुण ही रिश्तों में मजबूती का आधार हैं !

कल हमने आपके साथ “धैर्य व सहनशीलता के अभाव से बिखरते शादी के पवित्र बंधन” पर बात की थी और आप से हमने जवाब भी मांगा था कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए आपके विचार क्या हैं ? आज उसकी अगली कड़ी पर हम चर्चा करेंगे।

रिश्तों में दरार कब आती है? जब हम गलती करते भी हैं और मानते भी नहीं कि “हां यहां मैं गलत हूं, माफ कर दीजिए आगे से ऐसा नहीं करूंगा या करूंगी”। ऐसा आप कैसे तय कर लेते हैं कि हर बात पर सिर्फ आप ही सहीं हैं, हर रिश्ता बनाना तो आसान है लेकिन उसे बरकरार रखना और भी मुश्किल होता है, असल में रिश्ते इतने नाजुक होते हैं कि इसे प्यार से फलने-फूलने देना चाहिए।जिसमें एक-दूसरे की इज्जत, सेवा, सम्मान, परिवार से अपनापन, सहनशक्ति जैसे कीमती पहिए उस रिश्ते की गाड़ी को खींचते हैं। गौर कीजिए अगर पहिए ही नहीं होंगे तो आपका रिश्ता जिंदगी की दौड़ में जीतेगा कैसे ? वो तो इगो प्रॉब्लम में पहले ही धराशायी हो जाएगा।

चलिए एक दूसरी अहम बात पर गौर करते हैं कि आखिर हम अपनेअंदर सदगुणों की कामना क्यों करते हैं? शायद इसीलिए न, सदगुण हमें अच्छा बनना सिखाते हैं, सहीऔर गलत में फर्क सिखाते हैं, छोटे-बड़ों में फर्क करना व सहनशक्ति सिखाते हैं।दूसरों का आदर व सम्मान करना सिखाते हैं। कहते हैं गुणी व्यक्ति अपने अच्छे गुणोंसे दुश्मन को भी सज्जन बना लेता हैं। ऐसा करने से दूसरों से प्यार, इज्जत व सम्मान उसे अपने आप ही मिल जाता है।

दरअसल हमारे अंदर सहनशक्ति की कमी इतनी ज्यादा हो चुकी है कि हम अपनी गलती पर भी ये मानने को तैयार ही नहीं है कि यहां मैं गलत हूं, मुझे माफी मांग लेनी चाहिए। कहते है झुकने वाला पेड़ ही फलदार होता है और जो झुकता नहीं है एक दिन सभी उससे किनारा कर लेते हैं, और आपने ये भी सुना होगा कि जिसने सहना सीख लिया उसे जीना आ गया। अब चाहे आपमें कितने भी गुण क्यों न हों लेकिन अगर सहनशक्ति नहीं है तो सद्गुण महत्वहीन हो जाते हैं।

आजकल देखने में आता है कि छोटे-छोटे बच्चों में भी सहनशीलता नहीं है उनके व्यवहार में इतनी उग्रता देखने को मिलने लगी है कि स्कूल में अपने दोस्तों के साथ मार-पीट करना, घर पर मां-बाप पर हाथ उठाना, बहन-भाईयों के साथ झगड़ना आदि। अब यहां सवाल फिर यही उठता है कि गलती किसकी ? गलती भी हमारी ही है क्योंकि जब आप अपने बच्चों के आगे लड़ेंगे तो बच्चे भी आपसे ही सीखेंगे। अगर आप सदगुणी हैं तो आपके बच्चों को भी अच्छे संस्कार आपसे ही मिलेंगे।  

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दोषपूर्ण सोच के कारण ही सदगुणों की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता। हमें डर लगना ही बंद हो जाता है कि हम दूसरों के साथ बुरा व्यवहार कर भी रहे हैं और मान भी नहीं रहे हैं। इन्हीं कारणों की वजह से घरों में कलह, तोड़फोड़, गाली-गलोच, तलाक, बदले की भावना, आत्महत्या जैसी सोच को बढ़ावा मिल रहा है, समस्या ही यही है कि हमारी दूसरों से उम्मीदें तो बहुत है, हम कहना भी बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन सुनना नहीं चाहते, दूसरे की उम्मीदें हम पूरी नहीं करना चाहते।

बाहरी चकाचौंध को देखकर हम अपनी सीधी-साधी ज़िंदगी से बहुत कुछ मांगने लग जाते हैं और ये भूल जाते हैं कि ये सिर्फ चकाचौंध है वो भीथोड़ी देर की, असली जिंदगी तो परिस्थितियों में अपने आप को ढालने का नाम है।सहनशीलता के बिना एक खूबसूरत, शांत और आनंदमयी जिंदगी की कामना भी कैसे की जा सकती है। उतार-चढ़ाव सबकी ज़िंदगी में आते जाते रहते हैं लेकिन ऐसी परिस्थिति में सहनशक्ति से ही आपके बुरे दिन कट सकते हैं। लेकिन ये भी याद रखें कि सहनशील होना जितना जरूरी है उतना जरूरी ये भी है कि दूसरे का व्यवहार तब तक ही सहन करें जब तकवो अपनी मर्यादाएं नहीं लांघता लेकिन अपनी अगर मर्यादा को पार करने के बाद भी वो आप पर अत्याचार कर रहा है तो सच और सहनशक्ति आपके सबसे बड़े मजबूत हथियार हैं उनका इस्तेमाल करें और अपनी लड़ाई लड़ें।

अतः हम यही कह सकते हैं कि सदगुण और सहनशक्ति ही मजबूत रिश्तों का आधार है अगर ये क्षमताएं आप अपने अंदर बढ़ा लें तो यकीन मानिए लाइन इतनी बुरी भी नहीं।

इस विषय पर आपके क्या विचार हैं कृपया हमारे साथ ज़रूर सांझा करें।

मनुस्मृति लखोत्रा