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धर्म एवं आस्थाः तुलसीदास पैदा होते ही इतने अदभुत क्यों थे ? पढ़ें उनके बारे में प्रचलित कुछ जनश्रुतियां

सनातन धर्म का इतिहास इतना महान, प्राचीन एवं विशाल है जिसके समंदर में जितनी बार गोता लगाया जाए उतनी ही बार बेशकीमती हीरे, ज्वाहरात, माणिक रूपी अदभुत कथाओं से अपने आपको ओत-प्रोत पाएंगे। इसमें से जितना जानने की कोशिश की जाए उतना ही कम लगता है व अधिक जानने की जिज्ञासा रोज़ाना एक नया प्रश्न लेकर खड़ी हो जाती है। आइए आज हम बात करें स्वामी तुलसीदास जी के बारे में प्रचलित कुछ जनश्रुतियों पर, जो अत्यंत रोचक तो हैं ही लेकिन उसमें प्रेरणा व भक्ति रस भी कूट-कूट कर समाया हुआ है। तुलसीदास जी का जीवन आसान कभी नहीं था उन्हें कदम-कदम पर ठोकरें मिली लेकिन जब उन्हें ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्होंने कालजयी ग्रंथ लिखकर अदभुत इतिहास रचा। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है।

स्वामी तुलसीदास जी को श्री राम व राम स्वरूप बेहद प्रिय था। उनकी छवि तुलसीदास की आंखों में इस कदर बसी थी कि रामकाव्य उसका एक उच्चतम उदाहरण है। एक जनश्रुति के अनुसार स्वामी तुलसीदास जी जब पैदा हुए थे तो इतने अदभुत थे कि उन्हें देखकर उनकी माता-पिता भी घबरा गए थे। तुलसीदास जी अपनी मां की कोख में 12 महीने तक रहे इसलिए वो इतने हष्ट-पुष्ट थे कि जब पैदा हुए थे तो उनके मुख में पूरे 32 दांत थे, वे रोए नहीं थे, बल्कि उनके मुख से पहला शब्द राम निकला था। इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया था। दूसरी अद्भुत बात ये थी कि जब वो पैदा हुए थे तो वे चार महीने के बालक जितने बड़े दिखाई देते थे। उनके जन्म के दूसरे ही दिन उनकी मां का निधन हो गया जिस कारण उनके पिता ने उन्हें चुनियां नाम की एक दासी को सौंप दिया था। तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्मा राम व माता का नाम हुलसी था, और उनकी पत्नी का नाम रत्नावली व पुत्र का नाम तारक था।

तुलसीदास जी के जीवन के बारे में काफी रोचक कथाएं मिलती हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपनी पत्नी से बेहद प्यार था। वो उसके आकर्षण में इस कदर पागल थे कि उन्हें उसके सिवा कुछ और सूझता ही नहीं था। उनकी ऐसी हरकतों की वजह से वो नाराज़ होकर अपने मायके चली गई, लेकिन तुलसीदास जी भी उसी रात अपनी पत्नी के मायके पहुंच गए। जब वो उसके घर जा रहे थे तो रास्ते में एक नदी को पार करके जाना पड़ता था। उस रात मौसम काफी खराब होने की वजह से नदी पार करने के लिए कोई नाव भी नहीं थी। लेकिन उन्होंने नदीं में बह रही एक लाश का सहारा लेकर ही नदी पार कर ली। रात ज्यादा होने की वजह से घर में सबको सोता हुआ समझ कर उन्होंने घर का दरवाज़ा खटखटाना अच्छा न समझा और घर के बाहर सांप को रस्सी लटकी हुई समझ कर उसी पर लटक कर वो ऊपर अपनी पत्नी के कमरे में पहुंच गए। जैसे ही उनकी पत्नी ने इतनी रात को इतने खराब मौसम में उन्हें वहां देखा तो वो चौंक गई, इस पर तुलसीदास जी ने सारी आपबीती कह डाली, लेकिन उनकी पत्नी ने उनपर नाराज़ होते हुए बोली कि-

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !

नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?

भाव- जितनी प्रीति आपको इस मास-अस्थि से बने शरीर से है अगर इतनी ही प्रीति प्रभू राम से की होती तो आज आप भव सागर से पार हो गए होते?

पत्नि के ऐसे वचन सुनकर उनके अंदर वैराग्य जाग गया और वो अपना सब कुछ त्याग कर भगवान की खोज में निकल पड़े। चौदह वर्षों तक कई तीर्थ यात्राएं की लेकिन उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं हुआ। जो उनके कमंडल में यात्राओं के दौरान इकट्ठा किया हुआ जल था उन्होंने उसे एक सूखे पेड़ की जड़ में बहा दिया। उस पेड़ पर एक आत्मा रहती थी। उस जल के प्रभाव से उस आत्मा को मुक्ति मिल गई। उसने प्रसन्न होकर तुलसीदास को वर मांगने के लिए कहा, इस पर तुलसीदास ने श्री राम के दर्शनों की लालसा दिखाई तो उसने श्री राम से मिलने का एक रास्ता दिखाया, आत्मा ने कहा कि तुम फलां जगह बने हनुमान मंदिर में जाओं वहां रोजाना रामायण का पाठ होता है। जिसे सुनने स्वयं हनुमान जी वहां आते हैं वो रामायण का पाठ शुरु से लेकर अंत तक सुनकर ही जाते हैं लेकिन उन्हें कोई नहीं जान पाता कि वे हनुमान जी हैं, क्योंकि वो वहां एक कोढ़ी रूप में बैठे होते हैं। तुम कथा खत्म होते ही उनके पैर पकड़ कर मदद मांगना वे तुम्हारी मदद अवश्य करेंगे।

तुलसीदास जी ने वैसा ही किया अगले दिन वह हनुमान जी के मंदिर जाकर रामायण का पाठ सुनने लगे। इतने में उन्हें बड़ी ही श्रद्धा के साथ पाठ सुनते एक कोढ़ी दिखाई दिए। तुलसीदास जी समझ गए कि ये हनुमान जी ही हैं, जैसे ही कथा समाप्त हुई तुरंत ही तुलसीदास जी ने जाकर उनके पैर पकड़ लिए और उनकी स्तुति करने लगे। तब हनुमान जी ने उनसे प्रसन्न होकर अपने दर्शन दिए और उन्हें वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए कि जल्द ही उनकी भेंट श्री राम से होगी।

कहा जाता है कि एक दिन जब चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास श्री राम के तिलक के लिए चन्दन कूट रहे थे तब स्वयं श्री राम ने उन्हें दर्शन दिए तथा अपने हाथों से अपना और तुलसीदास का तिलक किया। श्री राम के दर्शन कर तुलसीदास जी धन्य हो गए।

प्रभू के आशीर्वाद से तुलसीदास जी को ज्ञान की प्रप्ति हुई। जिसके बाद उन्होंने रामायण समेत 12 पुस्तकें लिखी। पुस्तकों पर भी कई जनश्रुतियां प्रचलित है कि एक बार तुलसीदास नदी के किनारे स्नान करने गए तो कुछ चोरों ने उनकी लिखी सभी पुस्तकें चुरा ली। परन्तु वे चोर तुलसीदास के आश्रम से अभी कुछ ही दूरी पर ही गए होंगे तभी उन्होंने देखा कि एक सांवले रंग का व्यक्ति हाथ में धनुष बाण पकड़े उनका पीछा कर रहा है। उन चोरों ने डर से सभी पुस्तकें तुलसीदास को वापस कर दी और उन्हें ये वाक्या सुनाया भी। लेकिन एक अन्य जनश्रूति के मुताबिक चोर तुलसीदास के आश्रम के बाहर उनकी पुस्तकें चुराने पहुंचे उन्होंने देखा कि दो व्यक्ति एक सांवले रंग का और एक गौरे रंग का धनुष लिए आश्रम के बाहर इधर से उधर पहरा दे रहे हैं और चोर उन्हें देख डर कर भाग गए।

मनुस्मृति लखोत्रा