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Happiness is Free : गलती होने पर भी, गलती न मानना कितना सही ?

अक्सर देखा गया है कि हमारे में से ज्यादातर लोग,  जिनसे अगर कोई गलती हो भी जाए तो मानने को तैयार ही नहीं होते है  कि हां मुझसे गलती हुई है, जबकि अपनी गलती को औरों पर थोपना हमें ज्यादा अच्छा लगता है। देखा जाए तो ये एक सामान्य सी बात है, गलतियां सबसे होती हैं, घर पर ही देख लीजिए कई बार आपसे, आपकी पत्नी या बच्चे छोटी-छोटी बातों पर गलतियां करते और छुपाते हैं लेकिन उनकी गलतियों पर हमें नादान शरारतें लगती हैं और हमें उन पर और भी प्यार आता है। लेकिन ऑफिस या बिजनेस में की गई गलती का कई बार हमें भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। असल में हमें और हमारी अंतरआत्मा को पता होता है कि हम कहां गलत हैं ? बस बात ज़ुबान पर आकर ही अटक जाती है ये मानने के लिए कि गलती मुझसे हुई है। जब हम कोई गलती करने जा रहे होतें हैं तो हमारी अंतरआत्मा उस वक्त भी हमारे आगे दो रास्ते रखती है एक सही और एक गलत…और हमें निर्णय लेने में भी मदद करती है लेकिन फिर भी कई बार हम सही निर्णय ले नहीं पाते और गलती कर बैठते हैं, छोटी-मोटी गलतियां हो जाएं तो कोई बात नहीं अक्सर जब कोई बड़ी गलती कर बैठते हैं जिसके परिणाम बुरे भी हो सकते हैं।

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गलतियों को दोहराना तो मूर्खता होती है इससे बेहतर है कि हर गलती से एक नया सबक सीखें। अपने स्वभाव को सहज बनाए रखें, और सोच को सकारात्मक। रोज़ाना घर और ऑफिस में सामंजस्य बैठाना कोई आम बात नहीं, लेकिन आप इतना सब तो संभाल ही रहे हैं। ऐसे में नकारात्मकता से दूर रहने की कोशिश करें। हमेशा सही के लिए जुझारू होकर लड़ें, अगर आप सही हैं, जल्दबाज़ी में कोई गलती हो भी जाती है तो उसे स्वीकार करते हुए दोबारा सही काम करके दिखाएं। ऐसे में आपके बॉस पर नैगेटिव नहीं बल्कि आपका पॉजिटिव प्रभाव पड़ेगा। कहते हैं कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले लोग ज्यादा सफल होते हैं। जिनमें गलती स्वीकार करने के साथ ही दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व का भाव होता है, उन्हें दूसरे लोग आसानी से अपना नेता स्वीकार कर लेते हैं। जो लोग अपनी गलतियों से सबक नहीं लेते उनकी जिंदगी पुराने ढर्रे पर ही चलती रहती है। यह जान लेना भी जरूरी है कि हमने गलती कहां की है? कई बार समय रहते हमें अपनी गलती का पता नहीं चलता हैं। जब हमें अपनी गलती का पता चल जाता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और तब हमारे हाथ कुछ नहीं लगता। ऐसा भी होता है कि हमें अपनी गलती का अहसास हो जाता है, लेकिन जानबूझकर हम अपनी गलती को स्वीकार नहीं करते। हम अपनी गलती को दूसरों पर थोपने की पूरी कोशिश करते हैं। यह अच्छी तरह जानते हुए भी किसी और ने यह गलती नहीं की है, गलतियों का यह चक्रव्यूह ही हमें सफलता से दूर ले जाता है। क्योंकि एक गलती को छूपाने के लिए हम और न जानें कितनी गलतियां और झूठ बोल बैठते हैं, इसलिए गलती के अहसास के साथ-साथ गलती को स्वीकार करना भी उतना ही जरूरी है। गलती स्वीकार न कर हम लोगों को दंभी होने का परिचय देते हैं।

दरअसल जब हम अपनी गलती स्वीकार करते हैं तो इसका अर्थ होता है कि हम अपनी इगो को साइड रखकर जाने-अनजाने में किए गए गलत काम को स्वयं भी गलत मान रहे हैं। इससे जहां एक ओर हमारा मानसिक दबाव कम होता है वहीं दूसरी ओर लोगों की नज़रों में हम सम्मान के पात्र भी बनते हैं। वहीं गलती को स्वीकार करने पर दोबारा गलती होने की आशंका भी कम हो जाती है।

मनुस्मृति लखोत्रा