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धर्म एवं आस्थाः प्रयागराज में मनाया जाने वाला कुंभ इतना विशेष क्यों ? जानिए कुंभ मेले की क्या है पैराणिक कथा ?

धर्म एवं आस्थाः आपने कुंभ के मेले में बिछड़ने की कहानियां तो बहुत सुनी होंगी, फिल्मों में भी अक्सर कुंभ के मेले में बिछड़े कई किरदारों को देखा होगा। हम उसी कुंभ की बात करने जा रहे हैं। असल में कुंभ मेले में करोड़ों तीर्थयात्री हिस्सा लेते हैं, इतनी भीड़ में ज़ाहिर सी बात है कई लोग अपनों से बिछड़ भी जाते होंगे, और बिछड़कर मिल भी जाते हैं तो इसलिए आपने कुंभ के मेले में बिछड़ने की कई कहानियां सुनी होंगी लेकिन कुंभ मेले को हिंन्दूओं की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा मानी जाती है इसलिए इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन भी कहा जाता है। कहा जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में तीन बार डुबकी लगाकर समस्त पाप धुल जाते हैं व मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ का आयोजन केवल इन चार धार्मिक शहरों में किया जाता है। ये शहर हैं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।

कुंभ स्नान की शुरुआत कब हुई ?

इसके पीछे का इतिहास समुद्र मंथन से शुरू होता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन के दौरान अनगिनत मूल्यवान वस्तुओं की उत्पत्ति हुई। अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र के पुत्र ‘जयंत’ अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गए।

देवताओं व राक्षसों में 12 दिन तक चला युद्ध
जयंत के अमृत लेकर उड़ जाने के बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया, और काफी मेहनत के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। देवता और राक्षस दोनों उस कुंभ पाने के लिए आगे बढ़े। इसे पाने के लिए 12 दिन तक देवता और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था। कहते हैं युद्ध के दौरान गलती से कलश में से अमृत की चार बूंदें धरती पर गिरी। पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन तो चौथी बूंद नासिक की ओर जा गिरी। यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थलों पर मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में पूरे बारह दिन तक युद्ध हुआ था, लेकिन पृथ्वी लोक में स्वर्ग लोक का एक दिन एक साल के बराबर माना जाता है। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं क्योंकि साधारण शक्तियों वाला मनुष्य इस मेले को नहीं मना सकता।

प्रयाग कुंभ ही क्यों अधिक है महत्वपूर्ण 
प्रयाग कुंभ मेला दूसरे कुंभ मेले की तुलना में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह एक ऐसा स्थान है जहां प्रतीक सूर्य का उदय होता है व प्रकाश की ओर ले जाता है और जिस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन होता है उसे ब्रह्माण्ड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले ब्रम्हाजी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था। इस यज्ञ के प्रतीक स्वरुप के तौर पर दश्वमेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर अभी भी यहां मौजूद हैं। इनके कारण भी कुम्भ मेले का विशेष महत्व माना जाता है।