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धर्म एवं ज्योतिषः कुण्डली में अष्टम भाव से जान सकते हैं अपनी आयु, मृत्यु व जीवन के छुपे हुए रहस्य !

जिन्हें ज्योतिष का थोड़ा बहुत भी ज्ञान है वे कुण्डली के अष्टम भाव से अच्छी चरह परिचित होंगे जिन्हें नहीं है उनको हम अष्टम भाव के कुछ विशेष व रहस्यमय पहलुओं से परिचित कराने जा रहे हैं।

कुण्डली में अष्टम भाव का महत्व किसी भी व्यकित के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस भाव से आयु व मृत्यु कैसे होगी जैसी जीवन की घटनाओं के बारे में विचार किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अष्टम भाव त्रिक (6,8,12) भावों में सर्वाधिक अशुभ माना जाता है।

कोई ग्रह अष्टम भाव का स्वामी होने पर अशुभ भावेश हो जाता है। अष्टम भाव से आयु की अंतिम सीमा, मृत्यु कैसे होगी, मृत्यु के समान कष्ट आदि घटनाओं पर विचार किया जाता है अथवा इसे रंध्र या छिद्र भी कहा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां जो कुछ भी प्रवेश करता है वह रहस्यमय हो जाता है और जो चीज़ रहस्यमय होती है वह परेशानी व चिंता का कारण बनती है। वैसे यदि अष्टम भाव में कोई ग्रह नहीं हो तो अच्छा रहता है नहीं तो कोई भी शुभ या अशुभ ग्रह यदि इस भाव में बैठ जाए तो वह अशुभ फल देता ही है। अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है और यदि व्यक्ति की कुंडली के अष्टम भाव में शनि बैठा हो तो वे दीर्घायु देता है।

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आयु व मृत्यु के अलावा अष्टम भाव द्वारा वसीयत से लाभ, कमाई, गुप्त धन-संपत्ति, अपयश, गंभीर व दीर्घकालीन रोग, चिंता संकट, दुर्गति, अविष्कार, स्त्री का सौभाग्य, स्त्री का धन व दहेज, गुप्त विज्ञान व परालौकिक ज्ञान, गुप्त सम्बंध, खोज, किसी विषय में अनुसंधान, समुद्री यात्राएं, गूढ़ विज्ञान, तंत्र-मंत्र-ज्योतिष व कुण्डलिनी जागरण आदि के बारे में देखा जा सकता है। आकस्मिक घटने वाली गंभीर दुर्घटनाओं का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है।

लेकिन दूसरी तरफ अष्टम भाव के कुछ विशेष लाभ भी हैं खासतौर पर स्त्रियों के लिए। इसलिए किसी भी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव का खास महत्व होता है। क्योंकि इस भाव द्वारा उस स्त्री को विवाहोपरांत प्राप्त होने वाले सुखों के बारे में पता लगाया जा सकता है। इस भाव से एक विवाहिक स्त्री के सौभाग्य यानि उसके पति की आयु कितनी होगी तथा वैवाहिक जीवन की अवधि कितनी लंबी होगी, इनपर विचार किया जाता है। इसीलिए इस भाव को मांगल्य स्थान भी कहा जाता। इसके अतिरिक्त आध्यात्मिक क्षेत्र में सक्रिय, परालौकिक विज्ञान, तंत्र-मत्र-योग आदि विद्धाओं से संबंधित व्यक्तियों के लिए भी अष्टम भाव किसी वरदान से कम नहीं है। क्योंकि बलवान अष्टम भाव व अष्टमेश की कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में महारत हासिल नहीं कर सकता। यही कारण है कि जो लोग सत्य के मार्ग पर चलकर अध्यात्मिक व संत प्रवृति वाले होते हैं उनकी कुंडली में अष्टम भाव, अष्टमेश तथा शनि काफी बली स्थिती में होते हैं। इस भाव का कारक ग्रह शनि है, लोग शनि से डरते हैं जबकि शनि ग्रह वास्तविक रूप में एक सच्चा सन्यासी व तपस्वीं ग्रह है, जो लोग अपने बुरे वक्त में भी अच्छे कर्म करते हैं उन्हें शनि की कृपा मिलती है और ऐसे लोग अचानक से रंक से राजा के समान यश प्राप्त करने वाले भी देखे गए हैं। रहस्य, सन्यास, त्याग, तपस्या, धैर्य, योग-ध्यान व मानव सेवा आदि विषय बिना शनि की कृपा के मनुष्य को प्राप्त हो ही नहीं सकते। इसके अतिरिक्त जो लोग खोज व अनुसंधान के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उनके लिए भी अष्टम भाव किसी खजाने से कम नहीं। दरअसल, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कोई भी भाव व ग्रह बुरा नहीं होता बल्कि हरेक भाव व ग्रह की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं। कोई भी भाव व ग्रह मनुष्य के पूर्व कर्मों या इस जन्म के अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार ही उसे अच्छा या बुरा फल देते हैं।

मनुस्मृति लखोत्रा

 

( इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है, जिसे मात्र सामान्य जनरूची को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है। )