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धर्म एवं आस्थाः चंद्रग्रहण की क्या है पौराणिक कथा, जिससे बंधी है धार्मिक आस्था !

धर्म एवं आस्था डैस्कः ब्रह्मांड किसे आकर्षित नहीं करता ? जब सूर्य, चंद्रमा की बात होती है तो ढेरों आस्थाएं, विश्वास हमारे सामने आकर खड़े हो जाते हैं, शायद इसलिए भी क्योंकि इन्हें हम साक्षात देख सकते हैं। कई बार ऐसा भी होता है जब कोई भी हमें साक्षात दिखाई देता है तो हमारा विश्वास और जिज्ञासा भी उसके लिए ज्यादा हो जाती है। चंद्र ग्रहण के बारे में भी हमारे कई तरह के विश्वास और आस्थाएं हैं। वैसे तो ये पूरी तरह से एक खगोलिय घटना है लेकिन धार्मिक दृष्टि से इसे कई तरह से देखा जाता है। चंद्रग्रहण के दिन देवी-देवताओं की पूजा करना वर्जित होता है। यहां तक कि मंदिरों के द्वार तक बंद कर दिए जाते हैं। चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है।

ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। चंद्र मन का कारक माना जाता है। जिस भाव में चंद्रमा होता है उसी के अनुसार जातक की चंद्र राशि बनती है व चंद्र की दशा के अनुसार ही जातक की कुंडली बनाई जाती है। प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पूर्णिमा सब तिथियां चंद्रमा पर निर्भर करती हैं। चंद्रमा की चढ़ती और उतरती कलाओं से ही तिथियों का मास के कृष्ण और शुक्ल पक्षों का निर्धारण होता है।

पौराणिक ग्रंथो में चंद्रग्रहण की विभिन्न कथाएं मिलती हैं।

चंद्रग्रहण की पौराणिक कथा व धार्मिक मान्यता : पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।

विज्ञान क्या कहता है ?

लेकिन विज्ञान के मुताबिक ये एक खगोलीय घटना होती है जिसके अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच आ जाए व चंद्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाए और तब सूर्य की किरणें चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती और ऐसी स्थिती में चंद्र ग्रहण होता है।