आजकल कितना आम हो गया है न, हर किसी के मुंह से सुनना कि मैं मेडिटेशन करता हूं या करती हूं, या आपने अगर स्वस्थ रहना है तो मेडिटेशन किया कीजिए, लेकिन असल में मेडिटेशन या ध्यान है क्या पहले ये जान लेना ज्यादा ज़रूरी है।
ध्यान लगाना यानि अपनी ज्ञानेंद्रियों को केंद्रित करना। जी हां, ध्यान या मेडिटेशन करने से कोई भी व्यक्ति अगर अपनी ज्ञानेंद्रियों को वास्तव में कंट्रोल कर लेता है तो वह अपने मन का भटकाव दूर करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। ध्यान करने से हमारे अंदर सात्विक गुणों का वास होता है व नकारात्मकता हमसे कोसों दूर भागती है। इससे हमारे अंदर करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता, क्षमा जैसे गुण और भी बलवान हो जाते हैं। हम सकारात्मक हो जाते हैं और अगर कोई भी व्यक्ति सकारात्मक सोच वाला हो जाए तो उसके सभी कष्ट अपने आप ही दूर होते चले जाएंगे। क्योंकि हमारी ज़िंदगी में कष्ट या दुख इतने नहीं होते, जितने हमने खुद बनाकर रखे हैं, वो कैसे ? दरअसल, अगर हम अपनी ज्ञानेंद्रियों पर काबू पा लेते हैं तो न तो हम चिंता करेंगे, न ही हमें दुख होगा, न ही हम किसी से कोई बदले या द्वेष की भावना रखेंगे, और न ही हम बेकार बैठे सोचते ही रहेंगे जो हमारे जीवन में हो रहा है वो तो होगा ही लेकिन उसे सहन करने और उस घड़ी में से निडर होकर निकलने का बल हमें ध्यान से प्राप्त होता है, असल में आधे से ज्यादा रोग हम चिंता करने से ही पालते हैं।
ध्यान का प्रयोग आदिकाल से ही किया जाता आ रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव भी देवी सती के जाने के बाद लंबे समय तक ध्यानमुद्रा में चले गए थे। ताकि देवी सती के जाने से वो क्रोध, दुख, मोह व सारे सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा सकें। कई वर्षों तक ध्यानमुद्रा में रहने के बाद उन्हें सही ज्ञान की प्राप्ति हुई व संसार को चलाने के लिए उन्होंने फिर से देवी पार्वती के साथ नए जीवन की शुरुआत की।
ध्यान लगाना असल में कोई तकनीक नहीं है बल्कि कुछ समय के लिए अपनी सोच पर विराम लगाना है या विचारों से मुक्त होना है इस दौरान ध्यान केवल एक तरफ केन्द्रित होता है।
ध्यान को लेकर लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियां भी रहती हैं। कई लोगों का मानना है कि केवल साधु या संत ही ध्यान लगा सकते हैं आम लोगों को इस ओर नहीं पड़ना चाहिए, या कई लोगों का मानना है कि ध्यान लगाने वाला व्यक्ति सामान्य जीवन नहीं जी सकता या शादीशुदा ज़िंदगी में उन्हें कोई इंट्रस्ट नहीं रहता। ऐसा बिल्कुल नहीं है, बल्कि ध्यान आपके मानसिक विकारों को दूर करता है। आप सयंमित जीवन जीते हैं। अपने पति या पत्नि के लिए वफादार रहते हैं। आप चाहे किसी भी धर्म के हों आपकी आस्था अगर आपके धर्म के प्रति है, आपकी आस्था यदि अध्यात्म के प्रति है तो यक़ीन मानिए आप दूसरों से ज्यादा गुणीं हैं।
अगली चर्चा में जानेंगे, ध्यान कैसे करें ?
मनुस्मृति लखोत्रा