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Happiness is Free: काश ! वो ऐसे न होते…!

“Happiness is Free” के साथ जुड़ने के लिए आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया…आप में से बहुत से प्यारे मित्र हमसे जुड़ने के लिए अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं,  “theworldofspiritual.com” के इस मंच पर आपका स्वागत है…आप भी अपने कुछ विचार हमारे साथ शेयर कर सकते हैं ताकि हम उन दोस्तों के लिए काम कर सकें जो डिप्रेशन व अवसाद से घिरे हुए हैं, मुश्किलें किसकी ज़िंदगी में नहीं आती…लेकिन उस दौरान हार कर बैठ जाना कहां तक सही है।

उनके लिए मैं ये कहना चाहूंगी कि सबसे पहले तो आपको अफसोस और काश से बाहर आना होगा क्योंकि अगर हम अपने अतीत के पन्नें उकेरते रहेंगे तो वे हमें कतरा-कतरा करके खोखला बनाने का काम करते रहेंगे।

काश! वो ऐसे न होते…उसने मुझे प्यार में धोखा क्यों दिया? काश…मेरे साथ ऐसा न हुआ होता, मैने वो नौकरी न छोड़ी होती, वो मेरी ज़िंदगी में न आया होता, काश ! मैने वो बिजनेस न छोड़ा होता, काश ! मैने पढ़ाई कर ली होती…फलां..फलां…फलां…के उदाहरण देते हुए हम हमेशा पश्चाताप करते रहते हैं। जबकि हम ये अच्छी तरह से जानते हैं के ज़िंदगी में रीप्ले नाम की कोई चीज़ नहीं होती। जो चल रहा है…जो लाइव है सिर्फ वही होता है..अब फैसला आपको करना है कि आपने ज़िंदगी की पिच पर रनआउट होने बाद सबक लेकर दोबारा जीतने के लिए तैयार रहना है या बीती ज़िंदगी की फिल्म का सीन रीप्ले करके देखते रहना है और अफसोस करते रहना है कि उफ ये मैने क्या कर दिया…काश ऐसा न किया होता….

मेरे एक मित्र हैं। उनकी हर बात घूम फिरकर काश! पर आकर ही रुक जाती है। वर्तमान में उन्हें कुछ अच्छा दिखाई ही नहीं देता। वह अक्‍सर अतीत से चिपके और भविष्‍य से डरे रहते हैं। इस ‘काश!’ नाम की बीमारी का असर ये हुआ कि वो हर अच्छे मौके से भी डरने लगे कि मैं ये कैसे कर पाऊंगा काश वो पुराने वाली नौकरी फिर मिल जाती। जिस वजह से उन्होंने कितने ही अच्छे मौके गवां दिए। अक्सर आपने भी अपने आस-पास कई ऐसे लोग देखे होंगे यहां तक कि हमारे घर में ही महिलाओं और नौकरी से रिटायर्ड हो चुके दादाजी या पिताजी में आपको ये चीज़ देखने को मिल जाएगी, क्योंकि इस तरह के लोग अक्सर इस तरह के अवसाद के ज़्यादा शिकार होते हैं जो अपनी  रुटीन के अलावा या सेवानिर्वित होने के बाद अपने आपको किसी काम में व्यस्त नहीं रखते। अगर आपके घर में भी ऐसे सदस्य हैं तो कृपया उन्हें इन चीज़ों से बाहर निकालें, उन्हें अच्छी किताबें लाकर दीजिए या उनकी रुटीन में कुछ बदलाव लाएं ताकि उनको भी चेंज मिले।

अगर आपके घर का माहौल अच्छा है लेकिन कोई दोस्त ऐसा हैं तो सबसे पहले उनके प्रभाव से अपने आप को मुक्ति दिलाएं ताकि आपकी चिंतन प्रक्रिया पर कोई सीधा असर न पड़े।

मनुस्मृति लखोत्रा