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धर्म एवं आस्थाः “अश्वत्थामा” 5000 वर्षों से इस शिवलिंग पर चढ़ाने आते हैं फूल, जानिए कहां हैं ये शिव मंदिर !

डैस्कः महाभारत में कई चर्चित पात्र हुए उनमें से एक चर्चित पात्र थे अश्वत्थामा। कहते हैं दुनियां में वे आज भी मौजूद हैं। श्री कृष्ण द्वारा मिले श्राप की वजह से पिछले पांच हज़ार सालों से अश्वत्थामा की आत्मा भटक रही है। जिनके बारे में कहा जाता है कि ये कई लोगों को दिखाई भी देते हैं और अपने माथे पर रिसते घाव पर लगाने के लिए हल्दी व तेल मांगते हैं, लेकिन कई लोगों का कहना है कि आजतक जिस किसी ने भी अश्वत्थामा को देखा वो पागल हो गया। इसी कड़ी में एक और घटना है जिसके बारे में कहा जाता है कि अश्वत्थामा एक शिव मंदिर में हर रोज़ पूजा करने आता हैं। हर रोज़ शिवलिंग पर चढ़े फूल और लाल रंग इस बात की गवाही देते हैं कि पूजा तो रोज़ होती है पर ये आज तक किसी ने नहीं देखा कि यहां आकर पूजा कौन करता है?

इस बारे में कई तरह के मिथक चलते आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ किले के शिवमंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले पूजा करने आते है। शिवलिंग पर प्रतिदिन सुबह ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा मिलना अपने आप में एक बड़ा रहस्य है।

अश्वत्थामा के बारे में जानिए…

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अश्वत्थामा महाभारतकाल में जन्मे थे। उनकी गिनती उस समय के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या में पारंगत बनाया था।

महाभारत के युद्ध में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

महाभारत के युद्ध के समय गुरु द्रोण ने हस्तिनापुर राज्य के प्रति निष्ठा को निभाते हुए कौरवों का साथ देना उचित समझा।

पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था। पांडव सेना को हतोत्साहित देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्धभूमि में यह बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया है।

श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को क्यों दिया था श्राप ?

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जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि ‘अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा’ (अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी)।

यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए और उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था।

 कहते हैं आज भी इस शिव मंदिर में करते है पूजा-अर्चना !

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असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं।

आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से खाइयों से घिरा है। किवदंती के अनुसार, इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है। कहते हैं इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं। इस मंदिर में रोशनी व किसी भी तरह की आधुनिक व्यवस्था नहीं है, एकांत, खाली सुनसान, हैरतअंगेज़ लेकिन पूजा लगातार जारी है। यहां बने प्राचीन शिवलिंग पर प्रतिदिन ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा रहता है।