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धर्म एवं आस्थाः काल सर्प दोष क्या होता है ? कालसर्प दोष के निवारण का संबंध उज्जैन नगरी से क्यों हैं, जानिए ?

धर्म एवं आस्था डैस्कः अपनी कुंडली में कालसर्प दोष का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय व आशंकाएं घर कर जाती है, कई लोग इसे मानते हैं और कई लोग नहीं, लेकिन कई शोधों द्वारा यह देखा गया है कि जिस किसी की भी कुंडली में यह दोष पाया गया उसका जीवन काफी कठिन रहा, या तो वह जातक राजा जैसा जीवन व्यतीत करता है या फिर रंक जैसा। आधुनिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली में यदि राहू और केतू इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो कालसर्प दोष कहलाता है, क्योंकि राहु का अधिदेवता काल है तो केतु का अधिदेवता सर्प है इसलिए भी कुंडली में इस दोष का नाम कालसर्प दोष रखा गया है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कालसर्प दोष 12 प्रकार का माना जाता है।

1. अनंत
2. कुलिक
3. वासुकि
4. शंखपाल
5. पद्म
6. महापद्म
7. तक्षक
8. कर्कोटक
9. शंखनाद
10. घातक
11. विषाक्त
12. शेषनाग

जातक की कुंडली में इन 12 तरह के कालसर्प दोष होने के साथ राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह जो वक्री हों, उनकी वजह से जातक को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है। कई बार देखा गया है कि इस तरह के योग से असाधारण उन्नती भी मिलती है। इसलिए कालसर्प दोष के पता लगने पर अपनी कुंडली किसी विद्वान ज्योतिष को दिखाकर साधारण से उपायों से भी इस दोष का निवारण किया जा सकता है।

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इसके बाद तीर्थ नगरी उज्जैन जिसे पौराणिक कथाओं में नागाओं की नगरी कहा जाता है यहां कालसर्प दोष के निवारण का अदभुत स्थान माना जाता है। हम बात कर रहे हैं महाकालेश्वर मंदिर की। इसी मंदिर से उज्जैन को नागस्थली होने का गौरव प्राप्त हुआ। यहां भक्तजन महामृत्युंजय जाप, पितृ पूजन, ग्रह शांति, कालसर्प दोष निवारण पूजा व अन्य धार्मिक अनुष्ठान करवाने आते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार अवंतिका खंड में भैरव तीर्थ का तथा नागतीर्थ का भी उल्लेख है कहा जाता है “कि राजा जन्मेजय ने नागों के महाविनाश के लिए नाग महा यज्ञ का आयोजन रखा व उसके बाद जरकतारू पुत्र आस्तिक मुनि के द्वारा नाग सत्र महाविनाशी यज्ञ को रोका गया था और उनका स्थान परिवर्तित किया गया था। उसमें महाकाल वन यानि उज्जैन में स्थान दिया गया यह भी एक कारण है कि यहां की गई काल सर्प की पूजा कभी खाली नहीं जाती और सदैव सफल व फल दायी साबित होती है।“ वैसे देखा जाय कालसर्प दोष अशुभ ही नहीं शुभफल दायी भी साबित होता है। यदि वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से राहू व केतू का स्थान देखा जाए तो वह इसी स्थान पर दिखाई देता है इसलिए भी महाकाल की नगरी उज्जैन में की गई कालसर्प निवारण पूजा व अन्य अनुष्ठान सफल हो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, साथ ही शिव परिवार व सभी देवी-देवताओं की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है व जातक की कुंडली के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं, खासतौर पर कालसर्प दोष।