धर्म एवं आस्था डैस्कः कहते हैं जो भी व्यक्ति भगवान शिव का ध्यान करता है, उनकी पूजा-आराधना करता है भगवान शिव बहुत ही जल्द उसकी मनोकामना पूरी करते हैं। उनकी अदभुत छवि एक वैरागी पुरुष की है लेकिन उनके माथे पर चांद, सिर पर गंगा शोभाएमान है। उनके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में डमरू, गले में सर्प की माला, और माथे पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं शिवजी के पास त्रिशूल, डमरू, चंद्रमा और नाग कैसे आया, आइए इस रहस्य को जानने की कोशिश करते हैं।
भगवान शिव के त्रिशूल का क्या रहस्य हैः-
भगवान शिव देवों के देव हैं सर्वशक्तिमान हैं। अस्त्र-शस्त्र व सिद्धियों के ज्ञाता हैं लेकिन उनके दो प्रमुख अस्त्र हैं जिनका जिक्र पौराणिक कथाओं में आपने कई बार सुना होगा, एक धनुष व दूसरा त्रिशूल। धनुष के बारे में कहा जाता है कि इसका आविष्कार स्वयं भगवान शिव ने किया था, लेकिन त्रिशूल के बारे में कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से शिव जी प्रकट हुए तब उनके साथ ही सत, रज व तम तीनों तरह के गुण भी प्रकट हुए। कहते हैं कि यही तीनों गुण तीन शूल यानि त्रिशूल बनें, लेकिन शिवजी के पास ये कैसे पहुंचा इसके बारे में कहना कठिन है। लेकिन जैसे सत, रज व तम के सामजस्य के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती यहां तक कि मनुष्य के शरीर में भी सत, रज एवं तम के सामजस्य यदि कम या ज्यादा हो जाएं तो शरीर को बहुत सी व्याधियां या बीमारियां लग जाती हैं ठीक वैसे ही इन तीनों गुणों के सामजस्य के बिना सृष्टि का चलना भी कठिन है इसलिए शायद यही कारण हो सकता है कि शिव जी ने इन तीनों गुणों का सामजस्य बनाए रखने के लिए त्रिशूल के रूप में इन्हें अपने हाथों में धारण किया। शिव तीनों अवस्थाओं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति से परे हैं लेकिन फिर भी तीनों लोकों को धारण किए हुए हैं। शूल का अर्थ है समस्याएं, दुख और त्रिशूल का अर्थ है- जो पीड़ाओं का अंत कर दे। कहते हैं जीवन में तीन स्तर पर ताप मिलते हैः-
- आदिभौतिक (शारीरिक), 2. आध्यात्मिक (मानसिक), 3. आदिदैविक (अदृश्य)
शिव जी का डमरू कहां से आयाः-
भगवान शिव का डमरू इस ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड सदैव फैलता है फिर पुनः विलीन हो जाता है और फिर से उसका विस्तार होता है, यही सृष्टि का भी नियम है। जैसे डमरू का आकार है पहले फैला हुआ फिर सिकुड़ता हुआ फिर चौड़े आकार का। डमरू को ध्वनि का प्रतीक भी माना जाता है। ध्वनि लय भी है और ऊर्जा भी। ये माना जाता है कि यह पूरा ब्रह्मांड सिर्फ तरंगों का पुंज हैं। उसमें कंपन अलग-अलग है। वह केवल एक ही तरंग है जिसे अद्वैत कहा जाता है, या यों कहें कि भगवान शिव का डमरू- ब्रह्मांड की अद्वैत प्रकृति का प्रतीक है।
शिव के गले में नागः
भगवान शिव के गले में हमेशा नाग होता है। जिसका नाम है वासुकी। पुराणों में इस नाग के बारे में जिक्र आता है कि वासुकी नाग नागों का राजा है। सागर मंथन के समय वासुकी नाग ने रस्सी का काम किया था। वासुकी नाग के बारे में कहा गया है कि ये शिव के परम भक्त हैं। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्हें नागलोक का राजा बना दिया था और साथ ही आभूषण की भांति अपने गले में लिपटे रहने का वरदान दिया था।
शिव के सिर पर चंद्र क्यों हैः-
शिव पुराण के अनुसार चन्द्रमा का विवाह राजा दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्याएं 27 नक्षत्र हैं। इनमें से चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र से विशेष स्नेह था। इस बात की शिकायत जब दक्ष कन्याओं ने अपने पिता से की तो दक्ष ने चंद्रमा को क्षय होने का शाप दे डाला। इस शाप से बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की तपस्या की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए व उन्हें अपने शीश पर स्थान दिया। इसलिए जिस जगह पर चंद्रमा ने शिवजी की तपस्या की थी वह स्थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता ये भी है कि दक्ष के शाप की वजह से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।