You are currently viewing गरुड़ पुराणः शरीर से कैसे निकलती है आत्मा, क्या होता है मरने के बाद ?

गरुड़ पुराणः शरीर से कैसे निकलती है आत्मा, क्या होता है मरने के बाद ?

धर्म एवं आस्थाः हिंदू धर्म में जब कोई व्यक्ति इस दुनियां से चला जाता है तो घर-परिवार के लोग घर में ब्राह्मण द्वारा गरुड़ पुराण की कथा रखवाते हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा कहां जाती है, यमलोक किस प्रकार पहुंचती है व मरने के बाद क्या होता है आदि रहस्यों के बारे में विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में बताया गया है। कहते हैं मृत्यु के रहस्यों के बारे में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अनेक गुप्त बातें बताई थी। जिनका वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है। गरुड़ पुराण में जीवन, मृत्यु और कर्मफल के बारे में बहुत कुछ जानने और सीखने के लिए मिलता है। मरने के बाद उक्त व्यक्ति का क्या हुआ होगा व जन्म मृत्यु से जुड़े सत्य के बारे में जाना जा सके इसलिए भी गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है।

18 पुराणों में गरुड़ महापुराण का अपना एक विशेष महत्व है। इसके देव विष्णु माने जाते हैं, इसलिए इसे वैष्णव पुराण भी कहा जाता है।

गरुड़ पुराणः– भगवान विष्णु की भक्ति व उनके चौबीस अवतारों का विस्तार से वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है। इसके अलावा सभी देवी-देवताओं व शक्तियों का उल्लेख मिलता है। इस पुराण को दो भागों में बांटा जा सकता है- पहले भाग में विष्णु भक्ति, उपासना की विधियों का वर्णन तथा दूसरे भाग में नरक के बारे में पूरा वृतान्त है। वैसे गरुड़ पुराण में उन्नीस हज़ार श्लोक कहे जाते हैं, लेकिन वर्तमान समय में कुल सात हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं।

garuda-bhakti

गरुड़ पुराण के अनुसार मरते समय शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं ?

गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलना चाहता है, लेकिन बोल नहीं पाता। अंत समय में उसकी सभी इंद्रियां (बोलने, सुनने आदि की शक्ति) नष्ट हो जाती हैं और वह जड़ अवस्था में हो जाता है, यानी हिल-डुल भी नहीं पाता। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगती है और लार टपकने लगती है। उस समय दो यमदूत आते हैं। उनका चेहरा बहुत भयानक होता है, नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। उनकी आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। उनके हाथ में दंड रहता है। यमराज के दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मल-मूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं। यमराज के दूत उस शरीर को पकड़कर उसी समय यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते।

आत्मा को क्या-क्या कष्ट सहने पड़ते हैं?

इसके बाद जीवात्मा यमदूतों से डरती और कांपती हुई, कुत्तों के काटने से दु:खी हो, अपने पापों को याद करते हुए चलती है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाती है और वह भूख-प्यास से तड़पती है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरती है और बेहोश हो जाती है। फिर उठ कर चलने लगती है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं।

Garuda

गरुड़ पुराण के अनुसार कितनी दूर है यमलोक ?

गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी) है। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे सजा देते हैं। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ फिर से अपने घर आती है।

घर दोबारा लौटती है आत्मा !

घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है परंतु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी को तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी लोग को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाती है।

इसलिए पिंडदान करना होता है ज़रूरी

इसके बाद पापात्मा के पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत रूप हो जाती है और लंबे समय तक सुनसान जंगल में रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत (आत्मा) खाती है। नौवें दिन पिंडदान करने से प्रेत (आत्मा) का शरीर बनता है, दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

ऐसे बनता है आत्मा का शरीर !

शव को जलाने के बाद पिंड से अंगूठे के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही, यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है। ऐसे पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेत ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।

“Discover How To Generate A Regular Income Direct From YouTube Without Creating Any Of Your Own Videos!” click on the below link

https://66880dpbwewmcu4q0twojaktic.hop.clickbank.net/

कितने दिन बाद आत्मा पहुचंती है यमलोक ?

यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत (आत्मा) को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। 47 दिन लगातार चलकर आत्मा यमलोक पहुंचती है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।

16 पुरियों के नाम ये हैं-

इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार हैं- सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद आगे यमराज पुरी आती है। पापी प्राणी यम, पाश में बंधे हुए मार्ग में हाहाकार करते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी जाते हैं।

 

 

नोट- इस लेख में दी गई जानकारी प्राचीन ग्रंथ गरुड़ पुराण के आधार पर दी गई है जो कि विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है। हम यहां बताई गई बातों का समर्थन नहीं करते। ये लेख सिर्फ पाठकों के शास्त्र संबंधी ज्ञान बढ़ाने के लिए है।