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Happiness is Free: सोशल मीडिया या सोसाइटी ! किसे चुनेंगे आप ?

हमारी ज़िंदगी में सोशल मीडिया की घुसपैठ इस कदर हो जाएगी ये शायद किसी ने भी न सोचा होगा। देखते ही देखते ये दौर कितना बदल गया जहां दोस्तों के साथ गप-शप मारने की बजाए हमारा कीमती वक्त सोशल मीडिया में गुज़रने लगा। सोशल मीडिया ने अपनी जड़े पूरी दुनियां में कुछ इस कद़र फैलायी कि हम इसके कब आदि हो गए पता ही नहीं चला। जिसका असर ये हुआ कि हर कोई अपने मोबाइल के साथ व्यस्त हैं, या यो कह लीजिए मोबाइल के साथ एक ऐसी सौतन घर आ जाती है जो हमें अपनों से भी दूर कर रही है। आज हम उठते-बैठते, सोने से पहले और सुबह उठते ही अपनी सोशल साइट्स की नोटीफिकेशन्स चैक करते हैं। फेसबुक, ट्वीटर या किसी अन्य साइट पर दोस्त बनाना कोई गलत बात नहीं, ये माना इन साइट्स के जरिए देश और दुनियां की हरेक खबर से हम रूबरू रहते हैं। हमारे देश में या हमारे आस-पास क्या हो रहा है हमें सोशल मीडिया के जरिए हरेक गतिविधि में अपने विचार एक-दूसरे के साथ सांझा करने को मिल जाते हैं। कोई छोटी सी खबर भी सोशल मीडिया पर धूंए की तरह फैलते कुछ ही सैकिंड लगते हैं।

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लेकिन वहीं जब किसी भी मुद्दे पर बातें घर-परिवार, दोस्तों के साथ बैठकर एक चाय की प्याली के साथ सांझा किया करते थे तो एक दूसरे के विचारों की गंभीरता समझने में आसानी भी होती थी और साथ ही वक्त भी अच्छा गुज़रता था, लेकिन आज जैसे सोशल मीडिया समाज के साथ बड़ी प्रतिस्पर्धा के रूप में उभरा है उसने जो सबसे कीमती चीज़ है “वक्त” और “अपनापन”  उसे हमसे चुरा लिया है। हर किसी की मानों अपनी ही एक अलग दुनियां है, जिसे उसी में रहना अच्छा लगता है, जिससे अकेलापन बढ़ रहा है, अकेले कमरे में बैठे चैटिंग करते-करते घर-परिवार में इनवोल्वमेंट को कम कर रहा है। घर परिवार में क्या हो रहा है उसे इन सब बातों से कुछ लेना-देना नहीं है। टीवी देखने से भी ज्यादा दिलचस्पी हमें सोशल मीडिया में है क्योंकि अपनी मनपसंद के विडियोज, खबरें, दोस्त, चैटिंग आदि सब कुछ तो अवेलेबल है इंटरनैट पर ऐसे में अकेले होते हुए भी आपके साथ हज़ारों लोग जुड़े हुए हैं, लेकिन सिर्फ इंटरनेट पर असल में आपके आस-पास कोई नहीं है।

अगर देखा जाए तो कितना खतरनाक है सोशल-मीडिया का जादू, जो हमें अकेला कर रहा है, सिर्फ अपने इर्द-गिर्द ही घूमने को मजबूर कर रहा है। मैनें कई लोगों को घंटों सोशल साइट्स पर वक्त बिताते, अकेले ही मुस्कुराते देखा है, जहां आपको किसी अन्य से बातचीत तक करने की भी ज़रूरत नहीं है। यहां तक कि सोशल साइट्स के प्रति बढ़ता जुनून इतना खतरनाक हो गया है कि जहां आप घंटो एक तो अपनी आंखों, दीमाग व दिल पर ज़ोर डालते हैं तो दूसरा समय पर खाना खाने, सोने, जागने जैसी ज़िंदगी की जरूरी प्रक्रियाओं को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन अब हमें इस गंभीर मसले को समझना होगा जो हमारी आंतरिक शक्तियों को खोखला बना रहा है। हमारी सोचने-समझने की शक्तियों पर असर डाल रहा है। दीमक की तरह हमें खत्म कर रहा है।

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ऐसे में हमें जरूरत है कि सोशल मीडिया के जादू को अपने सिर पर न चढ़ने दें। उसके कंट्रोल से अपने आप को निकालें। अपना कीमती वक्त घर पर अपने परिवार के साथ बिताएं। उनके साथ घूमने जाएं, दोस्तों के साथ फिल्म देखने और शॉपिंग करने जाएं। पेड़-पौधों के साथ वक्त बिताएं। प्रकृति में समय बितायें, यक़ीन मानिए प्रकृति के पास आपको देने के लिए इतना कुछ है कि वो आपको सच में सोशल मीडिया की जकड़न से बाहर निकाल लेगी। अच्छी किताबें पढ़ें, साहित्य को अपनायें, अपनी मन-पसंद का संगीत सुनें। इंटरनेट या सोशल साइट्स पर जुड़ना कोई गलत बात नहीं, लेकिन ये हमेशा याद रखें कि अपनी सेहत और अपने कीमती समय को दांव पर लगाकर नहीं, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिए बने दोस्त सिर्फ इंटरनेट की दुनियां तक ही सीमित है असल में आपकी मुश्किल की घड़ी में इनमें से कोई भी आपके पास आकर मदद करने वाला नहीं है और इन साइट्स पर गवाया कीमती वक्त भी कभी लौटने वाला नहीं है, इससे बेहतर तो कई ऐसी साइट्स हैं जो आपके ज्ञान में इज़ाफा करती हैं। आपको कुछ सीखने को मिलता है, उनसे जुड़ें, अच्छे आर्टिक्लस पढ़ें जिनसे आपको प्रेरणा मिले। परिवार, अच्छे दोस्त व समाज से जुड़े रहें, अपना प्यार, स्नेह व कीमती वक्त उन्हें भी दें क्योंकि ऐसे संबंध ही आपके हर सुख-दुख, परेशानी, बुरे वक्त में आपके काम आयेंगे।

मनुस्मृति लखोत्रा