You are currently viewing श्री कृष्ण राधारानी संग कैसे खेलते थे होली, जानिए !

श्री कृष्ण राधारानी संग कैसे खेलते थे होली, जानिए !

धर्म एवं आस्थाः रंगो का त्यौहार होली पूरे भारत में बडें ही हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाता है। ये माना जाता है कि होली खेलने की परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में श्रीकृष्ण के समय में हुई थी, इस बारे में कई तरह की किवदंतियां हैं। एक किवदंती के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण सांवले थे, लेकिन राधारानी गौरवर्ण की थी, इसलिए बालकृष्ण को प्रकृति के इस अन्याय से शिकायत थी कि “राधा क्यों गौरी और मैं क्यों काला” इसपर ये चर्चित गीत भी कई बार आपने सुना होगा, जिसकी शिकायत वो यशोधा मईया से किया करते थे और उनसे इस फर्क का कारण पूछते, इसपर एक दिन यशोधा मईया ने श्री कृष्ण को ये सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो, अब श्री कृष्ण नटखट तो थे ही, सो वे राधा को रंग लगाने चल पड़े। उन्होंने राधा और गोपियों पर रंग डाला, उनकी यही प्रेममयी शरारत लोगों में प्रचलित हो गई और होली की परंपरा के रूप में स्थापित हो गई। इसी ऋतु में लोग राधा व कृष्ण के चित्रों के सजाकर सड़कों पर घूमते हैं। मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था इसलिए मथुरा की होली का विशेष महत्व है।

लट्ठमार होली को लेकर मान्यता है कि उस दौरान कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधारानी और उनकी सखियों के साथ होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ हंसी-ठिठोली करते थे, उन्हें सताते थे, जिस कारण राधारानी और उनकी सखियां ग्वाल-बालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ग्वाले लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ढाल का प्रयोग करते थे। तब से यह परंपरा आज तक चली आ रही है, इसी वजह से बरसाने की लट्ठमार होली सभी के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है। इस दोरान बांस की लाठियों से औरतें हुरियारों को मारती हैं और पुरुष मार से बचने की कोशिश करते हैं जिस वजह से वो महिलाओं पर पानी और रंग फेंकते हैं, लेकिन इस प्यारभरी होली में न ही कोई जीतता है और न ही हारता है।

164444930 _001

इस होली की एक और खास बात ये है कि जो भी पुरुष अपने आप को बचाने में नाकाम हो जाते हैं तो उन्हें महिलाओं की तरह साड़ी पहन कर उन्हीं की तरह नाचकर दिखाना होता है।

इस रंग-बिरंगी होली का आनंद उठाने के लिए लोग देश-विदेशों से आते हैं। यहां होली खेलते हुए एक-दूसरे को रंगों से भिगोते हुए लोकगीत गाना भी बहुत ज़रूरी समझा जाता है, खास बात ये है कि यहां होली खेलने वाली हर जोड़ी अपने आप को राधा-कृष्ण की तरह समझ कर उन्हीं की तरह बातें करते हैं। बरसाने के बाद, नंदगांव, गोकुलव वृंदावन आदि जगहों पर एक बार फिर से राधा-कृष्ण को याद करते हुए होली का त्यौहार अपनी अदभुत छटा बिखेरता हुआ उन्हीं के रंग में रंग जाता है।

 

(इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है, जिसका उद्देश्य सिर्फ सामान्य जानकारी देना है)