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नीम करौली बाबा के बारे में जितना जानो श्रद्धा उतनी ही बढ़ती जाएगी, जानिए उनके ‘बुलेटप्रूफ कम्बल’ के रहस्य के बारे में !

नीम करौली बाबा जिनके भक्त देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। कहते हैं उनकी सादगी ही उन्हें सबसे अलग करती थी। उनके माथे पर न ही कोई तिलक लगा होता था, न ही गले में जनेऊ और न ही वे भगवाधारी थे, फिर भी वो एक गुरू, संत, ज्ञानी, योगी, दिव्य पुरूष व प्रवचनकर्ता थे, जिनके ढ़ेरों भक्त थे। उनका तेज इतना प्रबल कि उनके दर्शन मात्र के लिए लोग दूर-दूर से आते थे, और बाबा थे कि उनके दिल की बात पहले ही जान लेते थे और खुद उनसे ही उनका प्रश्न पूछ लेते थे।

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उनके एक भक्त रामदास जिनका असली नाम रिचर्ड एलपर्ट था उन्होंने बाबा के कई चमत्कारों को अपनी एक पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ लव’ लिखी जिसमें ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का ज़िक्र है। यह बात 1943 की है जब बाबा अपने एक भक्त के घर अचानक पहुंच गए, वे दोनों बुजुर्ग दंपत्ति थे जो कि फतेहगढ़ में रहते थे। बाबा उनके घर तो पहुंच गए और कहने लगे कि वे रात को उन्हीं के घर रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को ये सुनकर बेहद खुशी हुई कि बाबा आज उनके घर रुकने वाले हैं, लेकिन दुख इस बात का था कि घर में बाबा की सेवा करने के लिए उनके पास कुछ न था, लेकिन जो थोड़ा बहुत था वे उन्होंने बाबा के सामने पेश किया। बाबा वह खाकर एक चारपाई में कंबल ओढ़कर सो गए, लेकिन रातभर बाबा कराहते रहे कि जैसे उन्हें कोई मार रहा है। दोनों बुजुर्ग दंपत्ति ये देख सारी रात उनकी चारपाई के पास ही बैठे रहे। जैसे-तैसे रात कटी और सुबह होते ही बाबा उठे और कंबल लपेटकर बुजुर्ग दंपत्ति को दे दिया और कहा कि इसे गंगा में प्रवाहित कर दो, इसे खोलकर देखना नहीं, नहीं तो फंस जाओगे। जाते हुए उनसे कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा घर लौट आएगा।
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जब वे दोनो दंपत्ति चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे उन्होंने उसमें कुछ लोहे का सामान महसूस किया लेकिन बाबा की आज्ञानुसार वे उसे खोलकर नहीं देख सकते थे और उन्होंने उसे वैसे ही नदी में प्रवाहित कर दिया। लगभग एक माह बाद उस दंपत्ति का इकलौता बेटा बर्मा फ्रंट से लौट आया। दरअसल, वो ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के समय बर्मा फ्रंट में तैनात था। उसने घर आकर युद्ध के दौरान की सारी घटना बताई के कैसे वो दुश्मनों से घिर गया था। रातभर गोलाबारी होती रही और उस दौरान उसके सारे साथी मारे गए। इतनी गोलाबारी में वो कैसे बच गया ये वो भी नहीं जानता था। जब सुबह ब्रिटिश टुकड़ी वहां पहुंची तो उसकी जान में जान आई। असल में यह वही रात थी जब नीम करौली बाबा उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुकने आये थे।
उनके चमत्कार सिर्फ यही नहीं है, ऐसे बहुत से किस्से हैं जो आज भी रहस्य बने हुए हैं। बाबा श्री हनुमान के परम भक्त थे वे उन्हें ही अपना गुरु मानते थे। कहते हैं बाबा एक चमत्कारी पुरुष थे। वो अचानक से गायब हो जाते थे। कई लोगों का तो कहना था कि वो एक ही समय में दो अलग स्थानों में भी दिखाई देते थे। भक्तों की कठिनाई को भांपकर समय से पहले ही उसे ठीक कर दिया करते थे। इच्छानुसार शरीर को मोटा या पतला करना उनके चमत्कारों में शामिल था। उन्होंने कुल 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण करवाया था।

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कहते हैं कि जब बाबा को लगा कि उन्हें अब अपने शरीर का त्याग कर देना चाहिए तो उन्होंने इसके संकेत पहले ही अपने भक्तों को दे दिए थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी समाधि के लिए स्थल भी चयन कर लिया था। 9 सितंबर 1973 को वे आगरा के लिए चले थे, कहते हैं कि वे एक कॉपी में रोज़ाना रामनाम लिखा करते थे, अपनी देह का त्याग करने से पहले उन्होंने वह कॉपी आश्रम की प्रमुख श्रीमां को सौंप दी और कहा अब तुम ही इसमें लिखना। उन्होंने अपना थर्मस भी रेल से बाहर फेंक दिया था और गंगाजली यह कहकर रिक्शा वाले को दे दी कि किसी वस्तु से मोह नहीं करना चाहिए।
आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे। मथुरा उतरते ही वे अचेत हो गये। लोगों ने शीघ्रता से उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल, वृंदावन में पहुंचाया, जहां 11 सितंबर, 1973 की रात्रि उन्होंने देह त्याग दी।
नीम करौली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पतंगनगर में है। उनके भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम शामिल है। नीम करौली बाबा के कई स्थानों में आश्रम हैं जैसे वृन्दावन, ऋषिकेश, शिमला, कैंची आदि।
ऊपर बताई गई घटना तो उनके चमत्कारों का सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण हैं, असल में उनके चमत्कारों की कहानियां अनेकों हैं जिनका ज़िक्र एक साथ या थोड़े शब्दों में ब्यान करना संभव नहीं है। उनके अदभुत चमत्कारों की वजह से ही भक्त उन्हें श्री हनुमान का अवतार तक मानते हैं। अगले लेख में उनके फिर किसी और किस्से पर बात करेंगे तब तक आप जुड़े रहिए theworldofspiritual.com के साथ।

धन्यवाद
मनुस्मृति लखोत्रा