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पौराणिक शास्त्रों अनुसार गंगा में ही अस्थि विसर्जन क्यों ज़रूरी ?

धर्म एवं आस्था डैस्कः  हमारे पौराणिक शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी सबसे पवित्र नदी है जिसके द्वारा मृत व्यक्ति की आत्मा को तृप्ति मिलती है। हिन्दू धर्म के कुछ महान ग्रंथों में भी अस्थि विसर्जन के आख्यान पाए गए हैं जैसे शंख स्मृति व कर्म पुराण में गंगा नदीं में ही क्यों अस्थि विसर्जन करना इतना शुभ व फलदायी है, इसके तथ्य पाए गए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म में गंगा का स्थान इसलिए भी सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि देवी गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकल कर भगवान शिव की जटाओं में वास करते हुए धरती पर अवतरित हई थी। मरने के बाद शरीर को अग्नि के हवाले किया जाता है। जिसके बाद शरीर राख हो जाता है। अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से आत्मा को शांति मिलता है और व्यक्ति की आत्मा नए शरीर को आसानी से ग्रहण कर लेती है।

ऐसा माना जाता है कि इस नदी की पवित्रता को दर्शाते हुए ही वर्षों से अस्थियों को इसमें विसर्जित करने की महत्ता ज्यों की त्यों बनी हुई है। ऐसा भी माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति के मरने के बाद अस्थि विसर्जन नहीं किया जाता तो उसकी आत्मा ऐसा ही भटकती रहती है उसे कभी मुक्ति नहीं मिलती। किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार का सबसे आखिरी पड़ाव अस्थि विसर्जन ही होता है व जिससे मृत व्यक्ति के सारे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार व प्रयाग सबसे उचित स्थान हैं जहां पूरे विधि विधान के साथ अस्थि विसर्जन आसानी से किया जा सकता है। लोगों का ऐसा भी मानना है कि इन स्थानों में अस्थि विसर्जन के बाद अस्थियां इसी स्थान पर रहती हैं और धीरे-धीरे उससे जुड़ी आत्मा के अगले द्वार खोलती हैं जिससे वह सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ धाम जाती हैं।

महाभागवत में यमराज ने अपने दूतों को बताया है कि जो भी व्यक्ति गंगा में प्राणों का त्याग करता है उसका मैं दास हूं। पदमपुराण में भी कहा गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु गंगा में होती है या किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके मुंह में गंगा जल डल जाए या गंगा मैया का स्मरण कर लेने भर से उसके सभी पापों का नाश होकर वह विष्णु लोक में स्थान पाता है।