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कितना प्राचीन है पवित्र स्वास्तिक चिह्न, क्या भारत के अलावा अन्य देशों में भी इसे पूजा जाता है ? जानिए इसका संक्षिप्त इतिहास !

अध्यात्म डैस्कः-  स्वास्तिक शब्द संस्कृत शब्द स्वास्तिका से बना है जिसका अर्थ होता है– शुभ या मांगलिक वस्तु। भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक चिह्न को मंगल का प्रतीक माना जाता है। किसी भी कार्य का शुभारंभ स्वास्तिक से ही शुरू किया जाता है। स्वास्तिक सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि  बौद्ध और जैन धर्म में भी पवित्रता व प्राचीन धर्म का प्रतीक है।

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ऋग्वेद की ऋचा में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है व उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है।

इसमें समबाहु कटान होता है जिसमें चार भुजाएं 90 डिग्री पर मुड़े होते हैं। सदियों से स्वास्तिक को सिर्फ भारत में ही नहीं पूजा जाता बल्कि इसे पूजे जाने के प्रमाण अन्य देशों में भी खुदाई के दौरान मिले हैं। इसका इतिहास काफी पुराना है और काफी वर्षों से इस पर शोध भी चलते आ रहे हैं।

भारत की एक मशहूर अखबार में छपे लेख के अनुसारः-

“शोधकर्ताओं की मानें तो स्वास्तिक का चिह्न आर्य व सिंधु घाटी की सभ्यता से भी पुराना है। खोज के दौरान शोधकर्ताओं को स्वास्तिक के बारे में जानकारी मिली कि आर्य सभ्यता के साथ संबंधित ऋग्वेद से भी यह पुराना है। हो सकता है कि शायद ये पूर्व– हड़प्पा युग से भी पुराना हो, जब श्रुति परंपरा में यह मौजूद था और मौखिक रूप से इसे सिंधु घाटी सभ्यता को सौंपा गया था।

 

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पूर्व– हड़प्पा काल में स्वास्तिक सबसे अधिक परिपक्व पाया गया। साथ ही यह ज्यामीति (Geometrically) के अनुसार अधिक व्यवस्थित और मोहर के रूप में मिला।पूर्व– हड़प्पा युग के आस–पास, वेदों में भी स्वास्तिक के निशान मिले हैं। इन सभी तथ्यों के आधार पर अनुसंधानकर्ताओँ ने यह निष्कर्ष दिया की भारतीय सभ्यता इतिहास की किताबों में लिखी कालावधि के मुकाबले बहुत प्राचीन है। शोधकर्ताओं की टीम ने यह भी बताया कि स्वास्तिक को कमचाटका (Kamchatka) के माध्यम से टैटार (Tartar) मंगोल मार्ग से होकर भारत से बाहर ले जाया गया और अमेरिका पहुंचाया गया ( एज्टेक (Aztec) और मायान (Mayan) सभ्यता में स्वास्तिक का निशान बहुतायत में मिला है) और पश्चिमी भू– मार्ग से फिनलैंड, स्कैंडिनेविया, ब्रिटिश हाइलैंड्स और यूरोप पहुंचाया गया था जहां यह प्रतीक क्रॉस के अलग– अलग आकार (क्रुसिफोर्म) में मौजूद है।“

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कहते हैं कि हिटलर ने अपने वर्चस्व के लिए स्वास्तिक के चिह्न को चुना था। लेकिन उसने स्वास्तिक को थेड़ा टेढ़ा कर दिया था। जिसे बाद में विनाश का कारण माना जाने लगा। इसे प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से पहले नाजी जर्मनी की नाजी पार्टी ने अपनाया था।

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स्वास्तिक की प्राचीनता को लेकर भी शोधकर्ताओं की भिन्न-भिन्न राय है। उन्होंने प्राचीन मोहरों, शिलालेखों व छापों आदि के माध्यम से पता लगाया कि स्वास्तिक 11,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है और पश्चिमी एवं मध्य– पूर्वी सभ्यताओं तक इसके प्रसार का पता चलता है। जबकि आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यूक्रेन का स्वास्तिक पाषाण काल के समय यानि 12,000 वर्ष पुराना माना जाता है। एशिया में सबसे पहले स्वास्तिक का प्रतीक सिंधु घाटी सभ्यता में 3000 ईसा पूर्व में मिलता है।

 

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अन्य देशों व धर्मों में स्वास्तिक को किस नज़रिए से समझा जाता था ?

शोधकर्ताओं के अनुसार स्वास्तिक का प्रतीक पारसी घर्म (Zoroastrian religion of Persia) में घूमते हुए सूरज, अनंत या निरंतर सृजन का प्रतीक था

– मौर्य साम्राज्य के दौरान स्वास्तिक का महत्व बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के साथ बढ़ा लेकिन गुप्त साम्राज्य के दौरान बौद्ध धर्म के पतन के साथ इसका महत्व भी कम हो गया।

जैन धर्म में स्वास्तिक सातवें तीर्थंकर का प्रतीक और अधिक महत्वपूर्ण है।

– ये जानकर आपको हैरानी होगी कि फिनिश वायुसेना ने स्वास्तिक का प्रयोग राज्य– चिन्ह के तौर पर किया जिसकी शुरुआत 1918 में हुई थी।

-चीन, जापान और कोरिया में स्वास्तिक संख्या– 10,000 का हमनाम (homonym) है और आम तौर पर इसका प्रयोग संपूर्ण सृजन के लिए किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग सूर्य के वैकल्पिक प्रतीक के तौर पर भी होता है।

-दिलचस्प बात यह है कि थाईलैंड में “स्वाद्दी” शब्द जिसका अर्थ होता है नमस्ते (Hello)” और जिसका इस्तेमाल लोगों के अभिवादन के लिए किया जाता है, संस्कृत शब्द स्वास्ति” से बना है, जिसका अर्थ है शब्दों का संयोजन यानि समृद्धि, भाग्य, सुरक्षा, महिमा और अच्छाई।

– स्वास्तिक का प्रयोग ईसाई धर्म में ईसाई क्रॉस के अंकुशाकार संस्करण (hooked version) के लिए किया जाता है जो प्रभु ईसा मसीह की मौत पर जीत का प्रतीक है।

-पश्चिमी अफ्रीका में स्वास्तिक का प्रतीक अशांति स्वर्ण वजन (Ashanti gold weights) पर और अदिंकरा प्रतीकों (adinkra symbols) पर पाए गए हैं।

 

( इस आलेख की जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है, जिसका उद्देश्य स्मान्य जानकारी उपल्ब्ध करवाना है)