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DIVINE DESTINATIONS: क्या ‘पाताल भुवनेश्वर गुफा’ मंदिर में छिपा है कलयुग के अंत का राज़ !

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के गंगोलीहाट कस्बे में स्थित प्राचीन गुफा मंदिर ‘पाताल भुवनेश्वर’ प्रकृति का एक अदभुत नमूना है। ये दिव्य पाताल भुवनेश्वर मंदिर पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटन केन्द्र है। ये मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमांत कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। ये गुफा प्रवेश द्वार से 160 माटर लंबी और 90 फीट गहरी है। मान्यता ये है कि इस गुफा की खोज आदि जगत गुरू शंकराचार्य ने की थी।

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पुराणों के मुताबिक सबसे पहले इस गुफा को राजा ऋतूपूर्ण ने देखा था, द्वापर युग में पांडवों ने यहां शिवजी के साथ चौपड़ खेला था और कलयुग में जगत गुरू शंकराचार्य ने 722 ई. के आसपास इस गुफा को देखा था तब उन्होंने यहां एक तांबे का शिवलिंग स्थापित किया था। उनके बाद कुछ राजाओं ने इस गुफा को खोजा। आज के समय में ये गुफा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक दर्शन के लिए आते हैं।

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आश्चर्यजनक बात ये है कि इस गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। यहां पर आप चारों युग, तमाम देवी-देवता और पूरे ब्रह्मांड का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश और गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी नज़र आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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स्कंद पुराण के 103वें अध्याय में भी पाताल भुवनेश्वर का वर्णन किया गया है और इसे भूतल का सबसे पावन स्थान बताया गया है। इसी अध्याय में कहा गया है कि पाताल भुवनेश्वर में पूजन करने से हज़ार गुणा फल प्राप्त होता है।

इस मंदिर के बारे में कई तरह की किवदंतियां भी मशहूर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस गुफा में कई प्राचीन आकृतियां हैं जिन्हें श्रद्धालु पौराणिक घटनाओं के साथ जोड़ते हैं। कहा जाता है कि यहां पर पांडवों ने तपस्या की थी। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां निवास करते हैं व देवी-देवता उनके दर्शन-पूजन के लिए यहां पर आते हैं। गुफा में चित्रित हंस को ब्रह्मा जी के हंस से जोड़ा जाता है।

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जनमेजय के नागयज्ञ के हवन कुंड को भी यहीं बताया जाता है। कहा जाता है अपने पिता परीक्षित को श्रापमुक्त करने के लिए जनमेजय ने सारे नाग मार डाले लेकिन तक्षक नामक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतारा। नागयज्ञ के कुंड के ऊपर इसी नाग का चित्र है।

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पुराणों के अनुसार पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एक साथ चारों धाम के दर्शन होते हों। मान्यता यह भी है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है।

गुफा के अंदर भगवान गणेश का मस्तक पड़ा है

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गणेश जी के बारे में भी कई तरह की कथाएं हैं। एस प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव में क्रोध में कर गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखा था। इसी गुफा में भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख पर गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।

कलयुग के अंत की राजदार है यह गुफा

यह भी कहा जाता है कि इस गुफा में कलयुग के अंत का राज छिपा है। दरअसल यहां चार प्रस्तर खंड हैं जो चार युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें तीन एक समान हैं जबकि अंतिम बड़ा है जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है। इसी के ऊपर एक पिंड लटक रहा है। कहा जाता है कि हर 7 करोड़ वर्ष में इस पिंड के आकार में एक इंच की वृद्धि होती है जिस दिन यह पिंड इस प्रस्तर को छू लेगा उसी दिन प्रलय आ जाएगी और कलयुग का अंत हो जाएगा।

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