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हनुमानधारा मंदिर, चित्रकूट

Religion: वनवास काल में श्री राम ने चित्रकूट में बिताए थे 11 साल, आज भी मौजूद है साक्ष्य !

धर्म डैस्कः भारत की नियागरा फॉल के बारे में अगर आप जानते हैं तो ये भी जान लें कि इस स्थान पर भगवान श्री राम ने अपने वनवास काल के 11 वर्ष बिताए थे। हम बात मध्यप्रदेश के चित्रकूट स्थान की कर रहे हैं। यहां नदी की धारा का मुख्य जलप्रताप लगभग 95 फीट की ऊंचाई से गिरता है। मान्यता है कि मध्यप्रदेश के सतना जिले में मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा चित्रकूट एक ऐसा अद्वितीय स्थान है, जहां भगवान श्री राम ने अपने वनवास का शुरुआती समय बिताया था और यहीं पर राम-भरत मिलाप का प्रसंग हुआ था, जहां भरत ने श्री राम की चरणपादुकाएं ली थीं। जनश्रुतियों के मुताबिक यह स्थान बेहद खूबसूरत होने की वजह से महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम को वनवास के दौरान इस स्थान पर रहने की सलाह दी थी।

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मंदाकिनी मुख्य धारा, चित्रकूट

चित्रकूट जैसे दिव्य स्थान पर केवल भगवान राम ने ही समय नहीं बिताया बल्कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कई ऋषि मुनि भी इस स्थान से जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि बहुत से ऋषि-मुनियों ने भगवान शिव के साथ चित्रकूट में तपस्या की थी। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने क्रमशः चंद्रमा, मुनि दत्तात्रेय और ऋष दुर्वासा के रूप में जन्म लिया था। चित्रकूट में ही युधिष्ठिर ने तपस्या की थी और यहीं से पांडव परीक्षित को अपना राज्य देकर हिमालय चले गए थे।चित्रकूट की महिमा का रामायण, पद्मपुराण, स्कंदपुराण, महाभारत जैसे कई महान ग्रंथों में पाया जाता हैं।

चित्रकूट में दर्शन करने के लिए कई सुंदर तीर्थ स्थान है, इन सभी तीर्थों के दर्शन पांच दिन में पूरे करने का विधान माना जाता है। पहले दिन सीतापुर से राघव प्रयाग में स्नान, कामदगिरी की परिक्रमा और अन्य तीर्थों तक पहुंचने के लिए 11 कि.मी. का मार्ग तय किया जाता है। दूसरे दिन राघवपुर को कोटि तीर्थ, सीता रसोई, हनुमान धारा होकर 20 कि.मी. का रास्ता तय करके वापस सीतापुर जाया जाता है। तीसरे दिन राघव प्रयाग से केशवगढ़, प्रमोद वन, जानकी कुंड, सिरसा वन, स्फटिक शिला और अनुयूया आश्रम होते हुए बाबूपुर पहुंचा जाता है। चौथे दिन बाबूपुर से गुप्त-गोदावरी में स्नान के बाद कैलाश दर्शन होते हुए चौबेपुर रुकना चाहिए। आखरी दिन चौबेपुर से भरत कूप में स्नान करके राम शैय्या होते हुए सीतापुर लौटते हैं

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सीता रसोई, चित्रकूट

सीतारसोई व हनुमानधारा मंदिर 

सीतापुर से पूर्व में संकर्षण पर्वत है, जिस पर कोटि तीर्थ है। यहीं पर हनुमान धारा मंदिर है, जिसकी धारा हनुमान कुंड में गिरती है। इस जगह से लगभग सौ सिढ़ी चढ़ने पर सीता रसोई नाम की जगह आती है। इसके आस-पास बांके सिद्ध, पंपासर, सरस्वती झरना, यमतीर्थ, सिद्धाश्रम, जटायु तपोभूमि है।

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लक्ष्मण पहाड़ी

लक्ष्मण पहाड़ी, जहां से लक्ष्मण पहरा देते थे…

चरण-पादुका नाम की जगह के पास एक पहाड़ी है, जिसे लक्ष्मण पहाड़ी कहते है। कहा जाता है कि यह जगह लक्ष्मण जी की सबसे प्रिय जगहों में से एक थी। यहीं बैठ कर वे रात को पहरा दिया करते थे

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गुप्त गोदावरी गुफा

प्राचीन गुप्त गोदावरी गुफा

यहां पर्वत पर दो बड़ी गुफाएं हैं। गुफा में जमीन के नीचे से गोदावरी नदी का जल निकलता है, जो कुछ दूरी तक बहने के बाद खुद ही गायब हो जाता है। इसलिए इसे गुप्त-गोदावरी गुफा कहा जाता है

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भरतकूप

 भरत कूप, जहां से भरत ने राज्याभिषेक के लिए जल लिया था

चित्रकूट से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर भरत कूप नाम का पुराना कुआं है। कहते है श्रीराम के छोटे भाई भरत ने उनके राज्याभिषेक के लिए जल यहीं ये लेकर गए थे। यहां भरत का मंदिर भी है। भरत कूप और सीतामार्ग के बीच राम-शैय्या नाम की जगह है। कहा जाता हैं कि श्रीराम और सीता ने यहां एक रात विश्राम किया था और श्रीराम ने बीच में धनुष रख कर पृथ्क रहने की मर्यादा निभाई थी।

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स्फटिक शिला

स्फटिक शिला,जहां मौजूद हैं श्री राम के चरण चिह्न

चित्रकूट की कई जगहों पर श्रीराम के चरण-चिन्ह आज भी मिलते हैं. जिनमें स्फटिक शिला प्रमुख है। कहा जाता है कि यहां श्रीराम अपने भाई भरत से मिले थे, उसी समय पत्थर पर उनके पैरों के निशान अंकित हो गए थे।