संपूर्ण ब्रहामांड का प्रतीक ‘ॐ’ बेहद अदभुत एवं अद्वितीय है, ये अनादि एवं अनंत हैं, आत्मा का संगीत है। ओम तीन अक्षरों से मिलकर बना है – अ , ऊ और म, इन अक्षरों को ईश्वर के तीन स्वरूपों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। जिस तरह ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृजनकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता माना जाता है इसी तरह सिर्फ ओम में ही ये तीनों संमाहित हैं इसलिए ओम ही ईश्वर है। ‘ॐ’ को ओम कहा जाता है।
ये माना जाता है, यदि इस शब्द का सही उच्चारण किया जाय तो जीवन की हर समस्या को दूर किया जा सकता है। इस शब्द का सही उच्चारण करने से ईश्वर की प्रप्ति की जा सकती है। ये ब्रहमांड की अनाहत ध्वनि है, संपूर्ण ब्रहमांड में ये ध्वनि अनवरत रूप से जारी है। एक बात जो सबके ज़हन में होती कि आखिर ‘ओम ‘शब्द आया कहां से ? इसके बारे में भी कई तरह की विचारधाराएं है लेकिन ज्यादातर ऐसा माना जाता है कि जब तपस्वियों व महापुरूषों ने ध्यान एवं तप करना शुरु किया तो ध्यान की ऊंची अवस्था में पहुंचकर उन्हें एक ही तरह की ध्वनि अपने आसपास, अपने भीतर, प्रकृति व ब्राह्मांड में सुनाई देने लगी। उस ध्वनि के लगातार नाद से उन्हें आत्मिक शांति महसूस होने लगी, वो ध्वनि सुनने में ऐसी लगती थी जैसे ‘ॐ’ कह रही हों तभी से उस ध्वनि को उन्होंने ओम का नाम दिया। यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी ध्यान से सुनने पर ये पाया कि ब्रह्मांड में इसी तरह कि ध्वनि सुनाई देती रहती है। ये भी माना जाता है कि ध्यान से सुना जाए तो कैलाश पर्वत से भी ओम की ध्वनि ही सुनाई देती है। वहां जाने वाले कई श्रद्धालुओं को भी वहां ऐसी ही आवाज़ आती है जैसे लगातार कोई हैलीकॉप्टर उड़ रहा हो, ठीक वैसी ही ध्वनि ब्रह्मांड से भी सुनाई देती प्रतीत होती है।
ओम की ध्वनि के उच्चारण मात्र से शरीर में कई तरह के सकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं। तंत्र शास्त्र में एकाक्षर मंत्रों का विशेष महत्व माना गया है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है जैसे कं, खं, गं, घं आदि। इन मंत्रों के उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दांत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इन मंत्रों के उच्चारण से जो ध्वनि हमारे मुख से निकलती है वह हमारे शरीर के सभी चक्रों और हारमोन ग्रंथियों से जाकर टकराती हैं। जिससे ग्रंथियों के असंतुलित स्त्राव को नियंत्रण किया जा सकता है।
“ॐ” शब्द का उच्चारण कैसे करना चाहिए ?
ॐ शब्द का उच्चारण करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त या साध्य काल का चुनाव करना चाहिए। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन व वज्रआसन में बैठकर किया जा सकता है।
उच्चारण करने के पूर्व इसकी तकनीक सीख लें अन्यथा पूर्ण लाभ नहीं हो पाएगा। ओम के उच्चारण से शरीर और मन एकाग्र होता है, सकारात्मकता आती है, चेहरे पर दिव्यता बढ़ती है। साथ ही दिल की धड़कन व रक्त संचार व्यवस्थित होता है। मानसिक बिमारिया दूर होती हैं। नियमित उच्चारण करने से दैविक गुण बढ़ने लगते हैं। नियमित रूप से उच्चारण करते रहने से दैवीयता का अनुभव होने लगेगा.
संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा
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