कवि परिचय : बिहार के गोपालगंज एवं सारण क्षेत्र के इस प्रसिद्ध व्यक्तित्व एवं ख्याति-प्राप्त वकील का जन्म सिवान जिले के जीरादेई के निकट भटकन ग्राम में 20 जून 1903 ई. में हुआ था. पुण्यतिथि- 24 जनवरी 1994.काव्य-संकलन ‘प्रेम-पयाम’, राजकमल प्रकाशन, 1978, से उद्धृत.
इस कविता की रचना ठीक 15 अगस्त 1947 के दिन हुई थी। लेखक ‘राय यशेन्द्र प्रसाद’ द्वारा स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर कवि ‘योगेन्द्र प्रसाद ‘योगी’ द्वारा रचित कविता आपके लिए पेश है।
“विजय ध्वजा”
कवि- योगेन्द्र प्रसाद ‘योगी’
स्वतंत्र गंगधार पर,
स्वतंत्र सिन्धु -ज्वार पर !
अभीक श्रृंग पर अजर,
विजय ध्वजा फहर फहर !
स्वतंत्रता की जीत पर, व दासता की हार पर !
अजेय हिम-किरीट पर, अनूप हिन्द द्वार पर !!
दिशा प’ औ दिगंत पर, असीम पर, अनन्त पर !!
पुनीत जय निनाद पर, कुरीतियों के अंत पर !
अभीरु लोक- लोक में लहर-लहर आतंक पर !!
प्रभंजनों के भाल पर,
चरण अड़ा फहर फहर !
निशांत को प्रदीप्त कर स्वतंत्रता -उषा खड़ी !
तिमिर का जाल काट कर, प्रभानिकर उड़ेलती !!
प्रदान मुक्त पंख का अधीर पंछियों को दे !
तिमिर की कैद तोड़ती प्रकाश के प्रहार से !!
निहार क्रूर बेड़ियाँ पिघल रही है किस तरह !
स्वदेश में विजय -ध्वजा मचल रही है किस तरह !!
नगर -नगर यह दीपिका,
जला -जला फहर फहर !!
तूफ़ान पर सवार हो, बवंडरों को साथ ले !
निशंक हो बढ़े चलो, विजय प्रतीक हाथ ले !!
घटा को तोड़ते हुए, व’ बिजलियों को मोड़ते !
चले चलो निडर अकड़, विजय ध्वजा फहर चले !!
वसुंधरा हो डोलती, गगन अरे हो डोलता !
स्वदेश-विश्व केन्द्र पर, अडोल यह विजय-ध्वजा !!
जमीन आसमान को,
हिला-हिला फहर फहर !!
गगन झुका, धरा झुकी, झुके हुए हैं देवता !
प्रताप की भुजा झुकी, नमन अहो विजय ध्वजा !!
शिवा का खड्ग चमचमा, निकल पड़ा मयान से !
नमन-नमन विजय ध्वजा, झुका हुआ है सामने !!
मज़ार में शहीद की उछल रही हैं हड्डियाँ !
दिए हुयें हैं लाख-लाख प्राण की आहुतियाँ !!
विजय ध्वजा शहीद को,
गले लगा फहर फहर !!
गगन के दीप दे बुझा, चमक रही वसुंधरा !
शहीद के प्रकाश की नई है ज्योति -श्रृंखला !!
नई प्रदीप्ति में बसा, नया गगन, नई धरा !
निशा नई, नया दिशा, नई रचा परम्परा !!
अरे ! तू छीन शक्ति को, उतार शारदा को ला !
नई विभूतियों को ले, स्वदेश को सजा-सजा !!
सगर्व जीत-घोषणा
सुना -सुना फहर फहर !!
मचल चली जवानियाँ, शिला में स्वप्न ढालती !
प्रचण्ड अग्नि दाह में, गुलामियों को बालती !!
नवीन चित्र विश्व का, बना रही है तूलिका !
अजस्र अन्तरिक्ष पर नई भरी है कल्पना !!
प्रदीप देवलोक से उतर रहे हैं देवता !
तुझे सहस्र वन्दना, विहर -विहर अमर ध्वजा !!
अमोघ चक्र भाल पर,
सजा-सजा, फहर फहर !!