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Religion & Faith: जानिए क्या है पितृ पक्ष और श्राद्ध करना क्यों है ज़रूरी ?

धर्म एवं आस्था डैस्क:  ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भी पितृ पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध करता है उसे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है  मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती व उसकी ऐसे ही भटकता रहता है।

पितृपक्ष 15 दिन का होता है, जिसमें पितरों की संतुष्टी और प्रसन्नता के लिए विशेष पूजन किया जाता है। जो भाद्रपद की पूर्णिमा को शुरू होता है और अश्विन की अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या को खत्म होता है। हमारे शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण बताएं गए हैं, जिनमें देव ऋण, ऋषि और पितृ ऋण हैं। शास्त्रों के मुताबिक, हमारे पितर पितृ पक्ष में धरती पर आकर हमारे साथ निवास करते हैं। पितृ ऋण उतारने के लिए ही पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। मान्यता है कि इस अवधि में उन्हें जो कुछ भी श्रद्धा से अर्पित किया जाता है वो उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं। पितृपक्ष को महालय या कनागत भी कहा जाता है। इन 15 दिनों में अगर आप पूरी श्रद्धा व पूरे विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं तो उनकी कृपा सदैव आप पर बनी रहती है।

पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध

ऐसा माना जाता है कि यदि किसी मनुष्य की मृत्यु से समय या बाद में विधिपूर्वक श्राद्ध व तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती वो भूत बनकर इसी लोक में भटकता रहता है। जिससे पीछे रह गए उसके परिवार को भी कष्टों का सामना करना पड़ता है।

श्राद्ध कैसे किया जाता है ?

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी भोजन एवं वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध द्वारा ही पितरों की तृप्ति के लिए उन्हें भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

कितना ज़रूरी है श्राद्ध करना ?

मान्यता है कि पितर नाराज़ नहीं होने चाहिए अथवा कुंडली में पितृ दोष नहीं होना चाहिए। यदि कुंडली में पितृ दोष हो तो मनुष्य को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन-हानि, विवाह न होना, घर में कलह कलेश रहना और संतान पक्ष से समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। संतान हीनता के मामलों में ज्योतषी पितृदोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

क्या करना चाहिए श्राद्ध में ?

सबसे पहले इस बात पर अवश्य ध्यान दें कि स्वयं को पूरी तरह शुद्ध रखें और श्राद्ध के स्थान को भी पवित्र रखें। श्राद्ध सदैव दक्षिण मुख बैठ कर करें। श्राद्ध में आठ चीजें जैसे दूध, गंगाजल, शहद, टसर के कपड़े, कुतप, काले तिल, दोहित्र और कुश का बहुत ही महत्व होता है। श्राद्ध में ब्राह्म्ण को पूरी श्रद्धाभाव से साफ आसन पर बिठाकर भोजन कराएं व भोजन कराते समय मौन रहें। श्राद्ध में तिल, चावल, जौं आदि को अधिक महत्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

कुंडली दोषों में सबसे बड़ा है पितृदोष

पुराणों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि देवता भी तभी प्रसन्न होते हैं यदि पितृ प्रसन्न हों इसलिए पहले पितरों की मुक्ति एवं प्रसन्नता के लिए उपाय अवश्य करने चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष सबसे बड़ा कुंडली दोष माना जाता है कई बार तो कितने ही उपाय करने के पश्चात भी इस दोष से मुक्ति नहीं मिलता। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आज़ाद कर देते हैं ताकि वो अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

श्राद्ध में कौऔं को इतना महत्व क्यों ?

ऐसा माना जाता है कि कौए पितरों का रूप हैं। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर तय की गई तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार श्राद्ध का प्रथम अंश कौओ को दिया जाता है।

किस तारीख को करना चाहिए श्राद्ध

सरल शब्दों में कहा जाए तो श्राद्ध के माध्यम से दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है। जिन परिजनों का अकाल मृत्यु हुई हो यानि वे किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्थी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्वपितृ श्राद्ध कहा जाता है।

यदि उक्त दी गई जानकारी के अनुसार पालन किया जाए तो पितृ प्रसन्न होकर आपके जीवन में आ रही या आने वाली सभी मुश्किलों से मुक्ति दिलाकर सदैव अपना आशीर्वाद आपके ऊपर बनाए रखते हैं।