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Religion & Faith: श्राद्ध परंपरा पितरों के प्रति हमारा दायित्व है जिससे मिलती है पितरों को तृप्ति !

धर्म एवं आस्था डैस्कः कहते हैं जीवन जीना भी एक कला है लेकिन इसी जीवन के अंदर बहुत कुछ समाया हुआ है, बहुत सी आशाएं है, सपने हैं, लक्ष्य हैं, फर्ज़ हैं..ऐसे में कुछ ऋण भी हैं….कई हम चुका देते हैं…और कई ऋण जीवन भर हमारे साथ चलते रहते हैं और मृत्यु के बाद भी हमारे साथ चलते रहते हैं…और वो हैं मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण…मातृ ऋण ममता का प्रतीक है और पितृ ऋण वात्सल्य का…जिन्होंने हमें धरती पर जन्म दिया उनका ऋण भला उतारा भी कैसे जा सकता है ? इसीलिए ही पितरों को देवतुल्य कहा गया है….इसलिए पितृ पक्ष में श्राद्ध परंपरा अपने पितरों के प्रति श्रद्धा का भाव है….जिसमें तर्पण करना एक परंपरा है, जो शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार पितरों को तृप्त करती हैं….।

श्राद्ध कर्म तीन तरीके से हो सकता है मानसिक, आध्यात्मिक, एवं कर्मकांडीय। हिंदू उत्सव परंपरा में रक्षाबंधन से ही उत्सवों की श्रृंखला शुरु हो जाती है, फिर गणपति जी तो आमंत्रित करते हैं, गणेश उत्सव मनाते हैं, फिर पितरों का उत्सव यानी श्राद्धों में उन्हें आमंत्रित किया जाता है, खीर-पूरी बनाकर अपनी श्रद्धा प्रदर्शित की जाती है, इन पंद्रह दिनों के श्राद्ध में घर आए मेहमान की तरह उनका आदर सम्मान किया जाता है, लेकिन श्राद्धों में भी शास्त्रीय आधार पर कई तरह की राहत हमें मिली हुई है जैसे यदि कोई व्यक्ति नियमित तौर पर श्राद्ध नहीं कर पाते तो वह अमावस्या को सर्वपितृ तर्पण कर सकते हैं। इस परंपरा के अंतर्गत तीन का विशेष महत्व है, जैसे तीन लोक ही माने गए हैं, तीन ही महाशक्तियां मानी गई हैं, संसार को चलान वाले ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी तीन ही हैं….तीन ही लोक माने गए हैं….मनुष्य शरीर भी तीन हिस्सों में बटा माना जाता है…इसलिए श्राद्ध परंपरा की सीमा भी तीन ही पीढ़ियों तक मानी गई है….जैसे मां के पक्ष और पिता के पक्ष से तीन पीढ़ियां…इसके पीछे भी एक कारण ये माना गया है कि हमारे वंश की जानकारी, स्मरण, पूजा, श्रद्धा और सामाजिक दायित्वों की सीमा भी तीन चरणों तक ही है…इसके पीछे भी एक कारण माना जाता है कि तीन पीढ़ियों से पहले जो हमारे पूर्वज रहे हैं उनका दैहिक एवं दैविक मोक्ष हो चुका है। पितरों को देवतुल्य भी इसीलिए कहते हैं क्योंकि पिता को वसु, दादा को रुद्र और परदादा को आदित्य माना गया है और तिल देवान्न है इसीलिए तर्पण भी इसी से किया जाता है। श्राद्ध परंपरा की पवित्रता इसी में संमाहित है…जिन पितरों के बारे में हमें ज्ञात नहीं हैं उनकी मुक्ति के लिए भी हम उनके लिए अमावस्या पर तर्पण करते हैं…इसलिए श्राद्ध के आखरी दिन ज्ञात व अज्ञात के लिए तर्पण किया जाता है। श्राद्ध ही एक ऐसा पर्व है जिसपर हम यमराज यम के प्रतीक गऊ, कौआ और कुत्ते को याद करते हैं और खीर-पूरी आदि भोजन समर्पित करते हैं। श्राद्ध कर्म हमारा अपने पूर्वजों के प्रति समर्पण, स्नेह, आभार व दायित्व है, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए जिसका पालन हमें करना चाहिए ताकि जिससे पितृ तृप्त हों और पितरों से हमें आर्शीवाद मिलें।