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Religion & Faith : बुधवार व्रत कथा एवं पूजा विधि, जानिए

ज्योतिष शास्त्र में ये माना जाता है कि बुध ग्रह को बुद्धि के देवता माना जाता है और इनका नंबर है 5 यानि बैलेंस करने वाले, बुध ग्रह को चंद्रमा और बृहस्पति दोनों अपना पुत्र मानते हैं। इसलिये माना जाता है कि बुध ग्रह में चंद्रमा और बृहस्पति दोनों के गुण विद्यमान हैं। इस दिन भगवान श्री गणेश जी की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस बारे में बुधवार की कथा का भी पुराणों में जिक्र किया गया है।

बुधवार व्रत कथा

पौराणिक ग्रंथों में बुधवार के व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है कि एक साहूकार का नया-नया विवाह हुआ था। उसकी पत्नी मायके गयी हुई थी। नया-नया विवाह था, नई-नई उमंग थी साहूकार का परिवार भी कुछ खास बड़ा नहीं था, जो रिश्तेदार थे उनके घर बहुत दूर थे। अब साहूकार को अकेलापन खाये जा रहा था। उससे रहा न गया और साहूकार जा पंहुचा ससुराल। साहूकार की बड़ी आवभगत हुई लेकिन ससुराल में तो अपनी पत्नी से खुलकर बात करना दूर सूरत देखना तक मुश्किल हो रहा था। अगले ही दिन साहूकार ने कह दिया कि विदाई की तैयारी कर लीजिये हमें निकलना हैं। अब संयोगवश वह दिन था बुधवार का, सास-ससुर ने समझाने का प्रयास किया कि बेटा आज बुधवार का दिन है इस दिन बेटी की विदाई नहीं करने का रिवाज़ है। बिटाई की विदाई क्या किसी भी शुभ कार्य के लिये यात्रा पर जाना बुधवार के दिन शुभ नहीं माना जाता। लेकिन साहूकार नहीं माना और कहा मैं इन सब बातों को नहीं मानता आप हमें जाने का आशीर्वाद दीजिये। अब अपने दामाद के आगे सास-ससुर की कहां चलने वाली थी, मन मसोसकर तैयारी करनी पड़ी। बेटी की विदाई कर दी गई। अब चलते-चलते रस्ते में साहूकार की पत्नी को प्यास लग जाती है। साहूकार जैसे पानी लेने के लिये जाता है तो वापस आते ही उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहता। अपने ही हमशक्ल को गाड़ी में पत्नी की बगल में बैठे देखता है। उसकी पत्नी भी एक शक्ल के दो-दो व्यक्तियों को देखकर परेशानी में पड़ गई कि उसका पति कौनसा है। जैसे ही साहूकार ने पत्नी के पास बैठे व्यक्ति से पूछा कि वह कौन है तो पलट कर जवाब दिया कि भैया मैं तो फलां नगर का साहूकार हूं और फलां नगर से अपनी पत्नी को लेकर आ रहा हूं तुम बताओ तुम कौन हो जो मेरा वेश धर कर यहां आ कबाब में हड्डी बनने के लिये आ धमके हो। ऐसे बहस बाजी करते-करते दोनों में झगड़ा बढ़ गया। झगड़े को देखते हुए राज्य के सिपाही वहां आ पंहुचे और साहूकार को पकड़ लिया। अब सिपाही भी चक्कर में कि दोनों की शक्ल तो एक समान है। उन्होंने साहूकार की पत्नी से पूछा कि उसका पति इनमें से कौनसा है वह बेचारी क्या जवाब देती। तब साहूकार ने हाथ जोड़ लिये और भगवान से विनती करने लगा कि हे भगवन यह आपकी क्या माया है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख याद कर कुछ देर पहले ही तूने अपने सास-ससुर की आज्ञा न मानकर भगवान बुध का अपमान किया और बुधवार के दिन तू अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा जबकि तुझे इस दिन गमन नहीं करना चाहिये था। यह स्वयं बुध देव हैं जो तुम्हें सबक सिखाने के लिये तुम्हारे वेश में हैं। तब साहूकार ने कान पकड़ कर माफी मांगी और आगे से कभी भी ऐसा न करने का वचन किया और बुधवार को नियमपूर्वक व्रत पालन करने का संकल्प किया। तब जाकर साहूकार के रूप में प्रकट हुए बुध देवता अंतर्ध्यान हुए और साहूकार अपनी पत्नी को लेकर घर जा सका। इस घटना के पश्चात साहूकार और उसकी पत्नी दोनों नियमित रूप से बुधवार का व्रत पालन करने लगे।

मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस कथा को कहता है या सुनता है या फिर पढ़ता है उसे बुधवार के दिन यात्रा करने से किसी तरह का दोष नहीं लगता और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। बुध ग्रह की शांति और सर्व-सुख के इच्छुक स्त्री-पुरुष बुधवार के इस व्रत कर सकते हैं। ज्ञान, बुद्धि, कार्य, व्यापार आदि में उन्नति के लिये भी बुधवार का व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। बुधवार के दिन बुद्ध देवता के साथ-साथ भगवान गणेश जी की पूजा का विधान भी है।

बुधवार व्रत व पूजा विधि

पौराणिक मान्यता के अनुसार बुधवार के व्रत का आरंभ विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवार को करना चाहिये और इसके बाद लगातार सात बुधवार तक व्रत करना चाहिये। व्रत शुरु करने से पहले गणेश जी सहित नवग्रह पूजन करना भी जरूरी माना जाता है। व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ भी करवाया जा सकता है। इसके अलावा शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से भी बुधवार का व्रत करना शुभ माना जाता है। प्रात:काल उठें व नित्यक्रियाओं से निपटने के पश्चात स्नानादि से स्वच्छ होकर भगवान बुध की पूजा करनी चाहिये। व्रती हरे रंग की माला या वस्त्रों का प्रयोग करे तो उत्तम रहता है। यदि पूजा के लिये भगवान बुध की प्रतिमा न मिले तो भगवान शिव शंकर की प्रतिमा के निकट भी पूजा की जा सकती है। दिन भर के व्रत के पश्चात शाम को भी पूजा करनी चाहिये और केवल एक समय भोजन करना चाहिये। व्रत में हरे रंग के वस्त्र, फूल या सब्ज़ी आदि दान करने चाहिये। इस दिन एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या फिर हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिये। कहते हैं विधि-विधान से अगर इस व्रत को किया जाये तो जीवन में सुख शांति रहती है और घर धन-धान्य से भरे रहते हैं। माता लक्ष्मी भी व्रती की मनोकामनाए पूर्ण करती हैं।