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Way to spirituality: क्या हम ये निर्धारित कर सकते हैं कि हमें अपने जीवन के बहीखाते में कौन से कर्म जोड़ने हैं ?

आध्यात्मिक का संसारः – आपके ख्याल में बुरा कौन है ? शायद वही, जो बुरे कर्म करता हो…हर समय दूसरों की निंदा करता हो….दुसरों का बुरा करता हो….ऐसे लोगों को ही हम बुरा कहते हैं, है ना ?……खैर, ऐसे लोग होते तो बुरे ही हैं लेकिन हमें उन्हें अच्छे या बुरे की श्रेणी में विभाजित नहीं करना चाहिए. क्योंकि जो जैसा है वो वैसा ही रहेगा…लेकिन ऐसे लोगों के बारे में सोचने से उसका असर हमारी मानसिकता पर पड़ता है……दरअसल, हमारी चेतना के कई पायदान है….जहां से होकर हमारी सोच भी गुज़रती है और हम निर्णय भी लेते हैं…यानि ऐसे कई स्तर हैं, जैसे चेतन मन, अवचेतन मन व अचेतन मन, जिन पर खडे होकर हमें ये स्वयं तय करना होता है कि हम सामने वाले की बातों को कैसे लें ? यदि अपनी चेतना के निचले स्तर से हम सोचते हैं तो हमें दूसरों के अवगुण और भी अधिक दुख देंगे…लेकिन वहीं यदि हम अपनी चेतना के ऊपरी स्तर से सामने वाले की मानसिकता को जज करते हैं तो हमें उसके अवगुण व छोटी मानसिकता पर अफसोस नहीं बल्कि तरस आयेगा….और मन में ये विचार आएगा कि फलां व्यक्ति अपने जीवन में बुरे कर्मों को क्यों जोड़ रहा है….उसके पास अपने अंतिम समय में साथ ले जाने के लिए कुछ भी नहीं है…..।

कहते हैं कि ‘हम जो कुछ भी इस जन्म में करते हैं उसका कर्ज़ हमें अगले जन्मों तक चुकाना पड़ता है….और यदि हमारे बहीखाते में अच्छे कर्म जुड़े हुए होते हैं तो मृत्यु व मृत्यु के बाद अगले पड़ाव तय कर पाना आसान हो जाता है’…और वहीं से स्वर्ग या नर्क का सफर तय हो जाता है……ख़ैर, स्वर्ग या नर्क होते हैं या नहीं, यहां इस बारे में कुछ भी कहना सही नहीं होगा….स्वर्ग, नर्क, मृत्यु के बाद क्या होगा ?  ये सवाल आज भी रहस्य हैं….हम चाहे जो भी परिभाषा दे लें…लेकिन सत्य तो यही है कि कुछ रहस्य आज भी गुप्त हैं…पर इतना ज़रूर है अंत समय में मन में कोई संशय नहीं रह जाना चाहिए….मृत्यु से डर नहीं लगना चाहिए….इसलिए जितना हो सके दूसरों का बुरा करने से बचें…अपनी तरफ से सबका अच्छा सोचें….सबके लिए अच्छा करें….ताकि अपने भीतर कोई पश्चाताप न रहे.. फिर अपनी वही बात दोहराती हूं कि सामने वाला आपके साथ कैसा व्यवहार करता है या वह कैसे कर्म करता है उसके नकारात्मक पहलू को अपने भीतर प्रवेश न करने दें। अपने लिए स्वयं निर्धारित करें कि आपको आपके जीवन के बहीखाते में कौन से कर्म जमा करने हैं ?

श्रीमद्भागवत हमें हर परिस्थिति में शांत रहने, धैर्य रखने और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देती है….इस बारे में एक जगह मैने एक उदाहरण पढ़ा था..उसमें लिखा था कि “एक शिष्य ने अपने गुरू से पूछा कि आप हमेशा खुश किस तरह रहते हैं ?  इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, कि मैं हर सुबह उठकर यह सोचता हूं कि मुझे स्वर्ग में जाना है या नर्क में…? फिर मैं ये निर्णय लेता हूं कि मुझे स्वर्ग में ही जाना है। जिस क्षण मैं निर्णय लेता हूं उसी क्षण मैं यह भी निर्धारित करता हूं कि मुझे अपने जीवन के हर क्षण को स्वर्ग बनाना है”। ठीक वैसे ही अगर हमें अपने जीवन के हर क्षण को सुंदर बनाना है तो हमें ये निर्धारित करना होगा कि हमें सामने वाले की सकारात्मक सोच को ही ग्रहण करना है ? और हमें ये भी निश्चित करना होगा कि हमें हर हाल में खुश रहना है चाहे जीवन में कैसा भी समय आ जाए। अपने भीतर सकारात्मक विचारों व कर्मों को संचित करना है। सच मानें तो जिस क्षण हम ये निर्णय ले लेते हैं उसी क्षण हमारा जीवन बदलने लगता है।

धन्यवाद, संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा