Poetry Breakfast: A poem on ‘CORONAVIRUS’ “नमस्ते तू उसे कहना” !

(कविता) “नमस्ते तू उसे कहना” ! कोरोना का कहर जब तक है सबसे दूर ही रहना । मिलाना हाथ कोई चाहे नमस्ते तू उसे कहना ।। तू रहना बन्द कमरे…

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Independence Day Special: “विजय ध्वजा” इस कविता की रचना ठीक 15 अगस्त 1947 के दिन हुई थी…

कवि परिचय : बिहार के गोपालगंज एवं सारण क्षेत्र के इस प्रसिद्ध व्यक्तित्व एवं ख्याति-प्राप्त वकील का जन्म सिवान जिले के जीरादेई के निकट भटकन ग्राम में 20 जून 1903…

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Poetry Breakfast: “जज़्बात लौटा दो”

बचपन की छोटी-छोटी यादें कैसे हमारे साथ-साथ चलती हैं न ! अकेलेपन में कभी जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है मानों ये अभी की तो बात थी....इतने बरस…

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“हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी की हर ख़्वाहिश पर दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले”: ग़ालिब

Poetry Breakfast:- इश्क की अगर बात की जाए तो मिर्जा ग़ालिब का नाम सबसे पहले ज़ुबां पर आता है। कहते हैं कि इश्क ग़ालिब से ही शुरु होता है। ग़ालिब…

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International Women’s Day: जिनकी कविताओं ने महिलाओं की आवाज़ को बुलंद किया, जानिए

महिला दिवस के शुभ अवसर पर आइए उन सुप्रसिद्ध कवयित्रियों का रचनाएं पढ़ें जिन्होंने साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान तो दिया ही लेकिन साथ ही अपनी रचनाओं के द्वारा महिलाओं…

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Poetry breakfast: “ये पगला है समझाने से समझे ना”…पहले प्यार को ज़ुबां देने वाले गीतकार असद भोपाली

असद भोपाली का नाम उन गिने-चुने गीतकारों में शुमार है जिन्होंने हिंदी सिनेमा को ऐसे यादगार गीत दिए जो आज भी जवां हैं। 1990 में फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के लिए…

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Poetry Breakfast: “कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए”: गज़लकार दुष्यंत कुमार

1. हुज़ूर आरिज़-ओ-रुख़्सार क्या तमाम बदन मिरी सुनो तो मुजस्सम गुलाब हो जाए उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तियाब हो जाए वो बात कितनी…

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Poetry Breakfast: जिनकी कविताओं का सुरूर जब चढ़ता है तो दिल से सिर्फ एक ही आवाज़ आती है “कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है”: कुमार विश्वास

हिंदी काव्य मंचों से अपनी पहचान बनाने वाले लोकप्रिय कवि डॉ. कुमार विश्वास जिनकी कविताएं हर युवा के दिल में बसती है। उनका कविताओं और शायरी में संवाद पेश करने…

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Poetry Breakfast: हमारे हाथों में इक शक्ल चांद जैसी थीः बशीर बद्र

गज़लः- एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा…

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अटल बिहारी वाजपेयीः उस रोज़ दिवाली होती है

दिवाली के इस मौके पर ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ जी कविता को याद किए बिना कैसे रहा जा सकता है। पेश है दिवाली पर लिखी उनकी ये खूबसूरत कविताः -उस रोज़…

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