जब कोई भी चीज़ आपके मन की भी हो और आराम से मिल भी जाए तो फिर क्या कहने ? लेकिन जब चीज़ें आपके मन के अनुरूप नहीं जा रही होती और आपको अनमने मन से उन्हीं चीज़ों के साथ चलना भी होता है और आप कुछ कर भी नहीं सकते….ऐसे में हमारे लिए अपने आप को संतुलित कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी तो हम बहुत सी चीज़ों के बारे में इतना सोच लेते हैं कि हमें अपने चारों ओर वैसी ही दुनियां नज़र आने लगती हैं, अपनी बनाई गई दुनियां के अनुसार हम वैसा ही व्यवहार करने लग जाते हैं, निर्णय भी उसी के अनुसार लेने लग जाते हैं, लेकिन वास्तव में वैसा होता नहीं है….।

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बस, यही वक्त है जब हमें समझना होता है कि हम भले ही उम्र के किसी भी पड़ाव में हों या किसी भी दौर से गुज़र रहे हों, ऐसे में अगर हमारे साथ अगर कुछ ऐसा हो रहा है जो मन का नहीं है, यानि आपके आसपास के लोग, आपके हालात, आपका वक्त अच्छा न चल रहा हो …तब खुद को अधजले विचारों के खंडहरों में विरान न होने दें….बल्कि अपने आप को संभाले रखें, और इस बात पर कायम रहें कि जब मन का नहीं हो रहा होता, तब असल में हम किसी नईं चीज़ की तैयारी में होते हैं। सही कह रही हूं….अपने आप को एक तैयारी के रूप में देखना चाहिए….ऐसे में अपने ऊपर रखा गया भरोसा ही वास्तव में आपकी जीत है….क्योंकि ऐसे समय में आपके भीतर जितना धैर्य, साहस व भरोसा होगा उतना ही आप कुछ न होने से कुछ पाने के लिए अग्रसर हो रहे होते हैं…।
या शायद समय आपको ऐसे दिन इसलिए दिखा रहा हैं ताकि आप और भी परिपक्व हों, क्योंकि जब सब मन का मिलता रहेगा तो आपको अपनी ज़िंदगी में आए अभावों, दुखों, कमियों का अहसास कैसे होगा ?….और अपनी भीतरी क्षमताओं का अंदाज़ा भी तो आप तभी लगा पाएंगे कि आपमें चीज़ों को हासिल करने का साहस, कौशल, हौसला और जुझारूपन कितना है…?
धन्यवाद…।