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Religion & Faith: लोहड़ी, मकर-संक्रांति, पोंगल, भोगली-बिहू, उत्रायण व पौष पर्व भारतीय विविधता में एकता का रस घोलते त्योहार, आखिर क्यों आते हैं एक साथ ? जानिए

Religion & Faith : भारतवर्ष…विविधताओं का देश….महान विरासत व अदभुत संस्कृति का देश…छः ऋतुओं व इन ऋतुओं की आमद में पलकें बिछाए नवचेतना व नवजीवन देते त्योहारों का देश…भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास, गौरव व महिमा की बात हम आपको कहां तक सुनाएं…जहां पग-पग पर बोली और वेषभुषा अपनी विविधता, विभिन्नता, पारंपरिक त्योहारों की गाथाएं सुनाती है….जहां गांव की गौरियां और बांके छैल-छबीले नौजवान हरेक त्योहार को रंग, रोशनी, मिष्ठान, लोक गीतों, पारंपरिक वेशभुषाओं से इस क़दर लबरेज़ कर देतें हों कि जिसकी छठा व गरिमा देखते ही बनती है। ऐसे में सफेद चादर ओढ़े शरद ऋतु की गुलाबी ठंड को कैसे भुलाया जा सकता है….और इन खुशनुमा दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाए जाने वाले त्यौहार जैसे लोहड़ी, मकर-संक्रांति, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष पर्व की छटा देखते ही बनती है क्योंकि ये त्यौहार हमारे प्रकृति और कृषि के साथ प्रिय व अभिन्न संबंधों को दर्शातें हैं। लोहड़ी मकर संक्रांति, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष पर्व को त्योहार फसलों की कटाई के मौसम को चिह्नित करते हैं क्योंकि इन दिनों सर्द मौसम की समाप्ति होती है और वसंत ऋतु का आगमन होता है। ये त्योहार केवल भारतीय विविधता के ही उदाहरण नहीं है बल्कि अनेकता में एकता के उदाहरण है।

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Manusmriti Lakhotra,
Editor: theworldofspiritual.com

इन दिनों प्रकृति अपनी अनोखी आभा तो बिखेरती ही है साथ ही अच्छी फसल के लिए भी वरदान साबित होती है। जहां एक तरफ उत्तर भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम भारत में लोहड़ी तो वहीं पूर्वोत्तर भारत में बिहू पर्व की धूम रहती है। उत्तरप्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी या माघी पर्व के नाम से मनाया जाता है, अगर झारखंड की बात करें तो इसी पर्व को टुसू पर्व के रूप में मनाया जाता है। इन त्यौहारों की सबसे खास बात ये है कि ये चारों त्योहार मकर संक्रांति के आसपास ही आते हैं। इन त्योहारों को मनाये जाने के पीछे श्रद्धा, भाव, समर्पण भले एक ही हो लेकिन पौराणिक कथाएं, देवी-देवता उपासना, पकवान व मनाए जाने का ढंग में थोड़ी-बहुत विविधता है।

नववर्ष का शुभारंभ – उत्तर भारत में नए वर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल मनाया जाता है और इसी दिन से नववर्ष का आरंभ माना जाता है। पोंगल नववर्ष की शुरुआत का त्योहार है जबकि लोहड़ी ऋतु परिवर्तन का त्योहार है।

उत्तरायण – सूर्य के उत्तरायण होने से यह दिन पर्व के रूप में मनाया जाता है। चारों तरफ सूर्य उपासना, पूजा, जप-तप का बड़ा महत्व होता है। मकर सक्रांति के दिन स्नान, दान सूर्य और विष्णु पूजा की जाती है।

पूजा-उपासना – जहां एक तरफ उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है तो वहीं लोहड़ी पर्व में माता सती के साथ अग्नि देव की पूजा की जाती है जबकि पोंगल के दिन नंदी, गाय, सूर्य और मां लक्ष्मी की पूजा का बड़ा महत्व है। दूसरी ओर बिहू पर्व में मवेशी, स्थानीय देवी और तुलसी की पूजा की जाती है।

प्रसाद व मिष्ठान – लोहड़ी में तिल, गजक, रेवड़ी, गुड़ व मुगफली खायी भी जाती है और पूजी भी जाती है, सरसों का साग और मक्की की रोटी खासतौर पर बनायी जाती है जो कि हरियाली और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी, दिल गुड़ के लड्डू खासतौर पर बनाए जाते हैं। पोंगल में खिचड़ी, नारियल के लड्डू, चावल का हलवा, पोंगलो पोंगल, मीठा पोंगल और वेन पोंगल बनाया जाता है। बिहू में नारियल के लड्डू, तिल पूठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा और भी पकवान बनाए जाते हैं।

पौराणिक कथाएं – पौराणिक कथाओं के अनुसार लोहड़ी की कथा माता सती, दुल्ला भट्टी व फसल के साथ जुड़ी हुई है। मकर संक्रांति की कथा सूर्य के उत्तरायण होने, भागीरथ के गंगा लाने और भीष्म पितामह के द्वारा शरीर त्यागने से जुड़ी हैं। पोंगल की कथा भगवान शिव के नंदी और फसल के साथ जुडी है। बिहू की कथा सूर्य के उत्तरायण होने व फसल से जुड़ी है।

धन्यवाद,

मनुस्मृति लखोत्रा