जय श्री राम

जब भी लिखने बैठती हूं….सोचती हूं कि आज ऐसा कौन सा विषय हो जिसकी चर्चा करके पहले मुझे आत्मिक शांति मिले फिर उस आत्मिक शांति के आनंद के भाव मैं आप तक व्यक्त कर सकूं ! उस विषय में ऐसे भाव भी हों जिससे मेरे अंतर्मन में सकारात्मकता, प्रेरणा और ऊर्जा का संचार हो ताकि दूसरों में भी ऊर्जावान विचारों का तानाबाना बुना जा सके। फिर मन में विचार आया कि क्यों न आज मैं अपने आराध्य यानि प्रभू श्रीराम की महिमा के बारे में आपसे कुछ बातें सांझा कर लूं । इससे खूबसूरत कोई और विषय आज मुझे सूझ ही नहीं रहा था क्योंकि पिछले कुछ दिनों से रामायण पढ़ने की ओर मोह बढ़ता जा रहा है….इस मोह का असर ऐसा है कि श्री राम के स्वरूप, चरित्र और महिमा के बारे में जितना पढ़ने और खोज करने की कोशिश करती हूं मेरी प्रभू श्रीराम के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा बढ़ती चली जाती है जो कि मेरे लिए प्रेरणा भी है, लेकिन प्रभू श्रीराम जैसे दया व करूणा के अथाह सागर, पारब्रह्म, परमेश्वर को पूरी तरह से जानने और समझने के लिए करोड़ों जन्म भी शायद कम हैं, पर उनके स्वरूप और महिमा के बारे में छोटी-छोटी बातें और जानकारियां जब कहीं-कहीं से खंगालती हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मेरे अंदर नई उर्जा, सकारात्मकता, और नई रोशनी का संचार हो रहा हो। प्रभू श्रीराम का स्वरूप ही ऐसा है कि उनकी महिमा के बारे में जितनी भी बात की जाए उतनी ही कम लगती है….जितना उनके नाम सुमिरन का रस पिया जाए उतना ही कम है…..यक़ीन मानिए जिसपर स्वयं प्रभू श्री राम की कृपा हो जाए उसे फिर कुछ और अच्छा नहीं लगता….उनकी भक्ति का आनंद ऐसा है कि उसके आगे सारे आनंद फीके लगते हैं। लेकिन इस आनंद को केवल वही ह्दय महसूस कर सकता है जिसके भीतर श्रीराम नाम के प्रेम की गंगा बह रही हो…लेकिन राम तो सबके दिल में बसते हैं…..और अपने ईष्ट के प्रति सबकी अपनी-अपनी श्रद्धा अपने-अपने तरीके से व्यक्त होती है। जिसे केवल महसूस किया जा सकता है..उसके अमृत रस का पान किया जा सकता है….और ये एहसास ही काफी है..।
एक जगह मैने पढ़ा था कि “श्री रामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया है”। करुणानिधान श्रीराम के जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जो हमें प्रेरणा न देता हो…ऐसा कोई दिल नहीं जहां श्रीराम न बसते हों….भारत के आदर्शों में राम हैं…भारत की आस्था और दर्शन में राम हैं…हर कण-कण में राम हैं।

उनके चरित्र की सबसे बड़ी खासियत ही उनका सत्य पर अडिग रहना है। उनका जन्म ही मानव को जीवन जीने की प्रेरणा देने के लिए हुआ था उनके जन्म का प्रयोजन ही यही था…।
इस ब्रह्माण्ड के महानायक श्रीराम इस संसाररूपी नाटक में अपूर्व नायक बनकर आए जिन्होंने सारे धर्म को अपने आप में समेट लिया…इसलिए प्रचीन काल से अब तक सत्य, धर्म और नीति की हरेक बात श्रीराम से ही शुरू होती है और रामराज्य के उदाहरण आज भी चर्चा के विषय बने रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं राम राज्य कैसा था ? इस बारे में एक वेबसाइट पर दिए गए एक शोधपत्र में कुछ ऐसे बताया गया है,
“श्रीराम का रामराज्य कैसा था इस पर महर्षि म्ब ने लिखा है,
“वहाँ खेतों में हल जोतने पर सोना निकल पड़ता है, भूमि को समतल बनाने पर रत्न बिखर जाते हैं| बड़ी बड़ी नावें विदेशों से अनंत निधियां लाती हैं और धान की कटी बालियों का ढेर आसमान छूता पड़ा हुआ है| वहां कहीं भी कोई पाप-कृत्य नहीं होता, इसलिए किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती| लोगों के चित्त विशुद्ध रहते हैं अतः किसी के मन में बैर या द्वेषभाव नहीं रहता| वहाँ के निवासी धर्मकृत्यों को छोड़ अन्य कोई कार्य नहीं करते अतः सदा प्रजा की उन्नति ही होती है| उस देश में दान का महत्व नहीं है क्योंकि वहाँ कोई याचक नहीं है| शूरता का महत्व नहीं है क्योंकि वहाँ युद्ध नहीं होते| सत्य का महत्व नहीं है क्योंकि वहाँ कोई असत्य भाषण करता ही नहीं| और पण्डितों का भी महत्व नहीं क्योंकि वहाँ सभी बहुश्रुत तथा ज्ञानी हैं| वहाँ लोग शीलवान हैं इसलिए उनका सौन्दर्य नित नवीन रहता है| वहाँ वर्षा समय पर होती है क्योंकि स्त्रियों का आचरण अत्यंत ही पवित्र है| वहाँ के निवासियों में चोरों का डर न होने से सम्पत्ति की रक्षा करने वाले रक्षक नहीं हैं| वहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो विद्यावान न हो, इसलिए वहाँ पृथक रूप से विद्याओं में पूर्ण पारंगत कहने योग्य व्यक्ति कोई नहीं है और सब विद्याओं में निपुण न होने वाला अपण्डित भी कोई नहीं है| वहाँ सब लोग सब प्रकार के ऐश्वर्यों से सम्पन्न हैं इसलिए पृथक रूप से धनिक कहने योग्य कोई व्यक्ति है ही नहीं, फिर निर्धन का तो प्रश्न ही नहीं….”।

प्रभू श्रीराम का जीवन, आदर्श राजधर्म, आदर्श भातृधर्म, आदर्श गृहस्थ जीवन, वचनबद्धता, ज्ञान, त्याग, वैराग्य, मर्यादा और सदाचार की शिक्षा देने वाला है। आज हज़ारों वर्षों बाद भी श्रीराम और आद्यशक्ति सीता हमारी प्रेरणा के स्त्रोत हैं। जिनकी महिमा के बारे में जितनी बात की जाए उतनी कम लगती है।
आज के लिए सिर्फ इतना ही फिर प्रभू श्रीराम की महिमा के अथाह सागर से एक बूंद चूराकर फिर कुछ और बाते होंगी…
तब तक के लिए धन्यवाद, आपकी मनुस्मृति लखोत्रा