हमारा मन कल्पनाओं का एक ऐसा समंदर है जिसमे आप जितनी बार गोते लगाओगे उतनी बार आपको कुछ नया, अद्भुत, अविश्वस्निय और रहस्यमयी ही देखने मिलेगा। आपका मन यदि चाहे तो आप अपने आप को राजा देख सकते हैं, आसमान में उड़ते देख सकते हैं…किसी दूसरे स्थान पर भ्रमण कर सकते हैं, वहां जहां आप कभी गए ही नहीं वहां जा सकते हैं…जो स्वादिष्ट व्यंजन आप खाना चाहते हैं उसका स्वाद महसूस कर लकते हैं, लेकिन केवल मन के द्वारा कल्पना करके।

ठीक उसी प्रकार आप अपने मन से कितने ही संसार भी देख सकते हैं, क्योंकि जैसा आपका मन सोचता है आप उतने ही प्रकार के संसार की कल्पना कर बैठते हैं, वैसे यदि देखा जाए तो ये संसार जड़ प्रकृति है जहां हम निवास करते हैं व पंचतत्वों से मिलकर बना है, लेकिन दूसरी तरफ हरेक व्यक्ति का अपना एक अलग संसार होता है, जैसा उसके मन की कल्पना उसे दिखाती है। वास्तव में किसी के भी प्रति कल्पना भी विभिन्न कारणों से निर्मित होती है, जैसे कोई भी व्यक्ति जैसे माहौल या वातावरण में रहता है, जिस तरह के लोगों में विचरण करता है, उसके मन के विचार भी वैसे ही होंगे।
अब यहीं से आप सांसारिक और भौतिकवादी व्यक्ति में भी फर्क समझ सकते हैं। यदि आप कहीं भी रह रहे हैं लेकिन आपकी दृष्टि में ये जीवन नश्वर है और आप धरती पर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आए हैं, आपकी सोच व प्रवृति त्यागी और तपस्वियों जैसी है तो आपकी सोच, आचरण, चिंतन भी वैसा ही होगा और आपका संसार भी वैसा ही होगा। आप जैसी सोच रखते हैं वैसा पाने की भी कोशिश करते हैं, लेकिन यदि आपकी सोच एक सामान्य आदमी की तरह भौतिकवादी है तो बाहरी लोभ, मोह व आकर्षण में ही आपका पूरा जीवन फंसा रहेगा। यहीं पर दो फर्क साफ नज़र आते हैं एक ज्ञानी व्यक्ति या सच्चा बैरागी और दूसरा सामान्य भौतिकतावाद में घिरा व्यक्ति। किसी भी व्यक्ति के देखने के नज़रिए पर निर्भर करता है। ज्ञानी अपने ईष्ट को अपने मन में देख लेता है तो वहीं सामान्य व्यक्ति मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर व गुरद्वारे में अपना भगवान ढूंढता है लेकिन फिर भी उसे शांति नहीं मिलती, फिर भी उसे ईश्वर की तलाश है। तो जनाब अपने भीतर पहले शांति लाएं…अपने आप से साक्षात्कार करें। हमारा शरीर भी पंचतत्वों से मिलकर बना है…ईश्वर का छोटा प्रारूप इंसान ही है। अपने आप में ईश्वर के दर्शन कीजिए। सारा संसार आपको आपके भीतर ही नज़र आएगा। कल्पनाओं के संसार केवल दुख ही देते हैं, जो आप कल्पना करते हैं असल में वैसा होता नहीं है। इसलिए अपनी कल्पनाओं में केवल वही देखने की कोशिश करें जिसे आप पूरे कर पायें और कुछ भी पाने के लिए संघर्ष करना अत्यंत आवश्यक है।
धन्यवाद, आपकी शुभचिन्तकः मनुस्मृति लखोत्रा