Poetry Breakfast: हमारे हाथों में इक शक्ल चांद जैसी थीः बशीर बद्र

गज़लः- एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा…

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