धर्म एवं आस्था डैस्कः भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहां कि आत्मा तथा परमात्मा दो मित्र पक्षियों की भांति हैं। ये दोनों एक ही वृक्ष पर बैठे हैं। इनमें से अणु-आत्मा रूपी एक पक्षी वृक्ष के फल खा रहा है और दूसरा पक्षी परमात्मा रूपी अपने मित्र को देख रहा है।
यद्यपि दोनों पक्षी समान गुण वाले हैं, किन्तु इनमें से एक भौतिक वृक्ष के फलों पर मोहित है, दूसरा अपने मित्र के कार्यकलापों का साक्षी मात्र है। यानि भगवान साक्षी पक्षी हैं, और मनुष्य फल-भोक्ता पक्षी। यद्यपि दोनों मित्र हैं, किन्तु फिर भी एक स्वामी है, और दूसरा सेवक है।
यद्यपि दोनों पक्षी एक ही वृक्ष पर बैठे हैं, किन्तु फल खाने वाला पक्षी वृक्ष के फल के भोक्ता रूप में चिंता तथा विषाद में निमग्न है। यदि किसी तरह वह अपने मित्र यानि भगवान् की ओर उन्मुख होता है और उनकी महिमा को जान लेता है तो वह कष्ट भोगने वाला पक्षी तुरन्त समस्त चिंताओं से मुक्त हो जाता है।
जब अर्जुन ने अपने शाश्र्वत मित्र कृष्ण से उपदेश के रूप में परमात्मा की परम महिमा को समझा तो वह शोक मुक्त हो गया और उसने युद्ध लड़ने के लिए अपना गांडीव उठा लिया।
अणु-आत्मा द्वारा इस सम्बन्ध की विस्मृति ही उसके एक वृक्ष से दूसरे पर जाने या एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने का कारण है।
जीव आत्मा प्राकृत शरीर रूपी वृक्ष पर अत्याधिक संघर्षशील है, किन्तु ज्यों ही वह दूसरे पक्षी को परम गुरु के रूप में स्वीकार करता है- जिस प्रकार अर्जुन कृष्ण का उपदेश ग्रहण करने के लिए स्वेच्छा से उनकी शरण में जाते हैं – त्योंही परतन्त्र पक्षी तुरन्त सारे शोकों से विमुक्त हो जाता है।