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Way to Spirituality: अध्यात्म को उम्र की किस अवस्था में अपनाना चाहिए ! जानिए

वैसे तो कर्तव्यनिष्ठा, परोपकार, सकारात्मकता व पवित्र जीवन मुल्यों की राह पर चलना ही सच्चा अध्यात्म कहलाता है लेकिन इस बारे में सबका सोचने का नज़रिया अलग-अलग हैं। कई लोग धर्म को मानना ही अध्यात्म कहते हैं और कई अध्यात्म को बुढ़ापे के साथ जोड़कर देखते हैं। खैर, हर कोई अपने विचार, भावनाएं, मान्यताएं, धारणाएं रखने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं कि मनुष्य को अध्यात्म की शुरुआत कौन सी अवस्था में करनी चाहिए ? अधिकतर लोग यही समझते हैं कि बुढ़ापे में अध्यात्म की ओर रुख करना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है इसकी शुरुआत युवावस्था से हो जानी चाहिए। उदाहरण के लिए जैसे हम कोई भी भाषा सीखने के लिए या विज्ञान, कला, गणित आदि की समझ व जानकारी प्राप्त करने के लिए बचपन से ही इन सब विषयों का ज्ञान हासिल करना शुरु कर देते हैं। यहां तक कि जब बच्चा महज 2 वर्ष का होता है तभी से उसे प्ले स्कूल में दाखिल करवा देते हैं, ताकि वो दूसरे बच्चों की ओर देखकर उठना बैठना, आपस में सामजस्य बनाना सीख ले ताकि बड़ी कक्षा में जाकर उसका दूसरों के साथ व पढ़ाई के साथ ठीक से तालमेल बैठ जाए।

ठीक वैसे ही अध्यात्म सूक्ष्म चेतना और ऊर्जा से सरोकार रखता है। इसे समझने व आत्मसात करने के लिए भी हमें अपनी उम्र के उस पड़ाव में अपनाना चाहिए जब हम अपने जीवन काल में चरम ऊर्जा धारण किए हुए हों, यानि हमारी ज़िंदगी में 25 से 40 वर्ष की आयुसीमा एक ऐसी स्टेज होती है जब हम बेहद ऊर्जावान व अपने जीवनकाल की चरम सीमा पर होते हैं। यदि अतीत में झांक कर देखें तो आत्मबोध की प्राप्ति के लिए कई महान विभूतियों ने अपनी ऊम्र की इसी अवधि में अध्यात्म को अपनाया। आत्मज्ञान की प्राप्ति किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन उस ओर बढ़ने की प्रक्रिया युवा अवस्था में ही होनी चाहिए जब हम ऊर्जावान होते हैं।

अध्यात्म का अर्थ दुनियांदारी से कटकर जीना नहीं हैं बल्कि जीवन के हर अहसास को महसूस करने की प्रक्रिया हैं व उन पहलुओं की ओर जाने की प्रक्रिया है जो सृष्टि का सार है, पारब्रह्म है। जिसमें लाभ ही लाभ छिपा है।

 

मनुस्मृति लखोत्रा

Image courtesy- Pixabay