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Religion & Faith “जब बहन सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर देखने की इच्छा व्यक्त की”, जानिए जगन्नाथ पुरी रथयात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें ?

धर्म डैस्कः ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा उत्सव पूरे हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ शुरू हो चुकी है जो कि अगले 10 दिन तक चलेगी। जिसे देखने के लिए भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है और क्यास ये लगाए जा रहें है कि इस बार दो लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की उम्मीद है।

आइए सबसे पहले ये जान लेते हैं कि यहां रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है ?

मान्यता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनके सामने नगर देखने की इच्छा व्यक्त की थी। इस पर भगवान जगन्नाथ ने बहन को रथ में बैठाकर पूरे नगर का भ्रमण कराया था। इसी उपलक्ष्य में पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाल पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है। इस रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इसके बाद रथ यात्रा के जरिए पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है। रथ यात्रा को इतना महत्व इसलिए भी दिया जाता है, क्योंकि इसका जिक्र स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण में भी किया गया है। माना जाता है कि रथ खींचने वाले को 100 यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। यात्रा में प्रयोग होने वाले तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं, जिन्हें श्रद्धालुओं द्वारा रस्से से खींचकर पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16, उनके भाई बलराम के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 विशालकाय पहिये लगे होते हैं। रथ यात्रा को भगवान जगन्नाथ मंदिर से निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर ले जाया जाता है। बताया जाता है कि माता गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की मौसी है। वहां भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा यहां एक सप्ताह आराम करते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम, उसके पीछे माता सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘ नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है। भगवान जगन्नाथ को विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, जो श्रीकृष्ण को समर्पित है।

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आइए अब जान ली जाएं इस महोत्सव से जुड़ी कुछ खास बातें ?

  • पुरी को पुराणों में धरती के बैकुंठ का दर्जा दिया गया है और यह विष्णु भगवान के चार धाम में से एक है।
  • स्कंद पुराण में बताया गया है कि पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है, जो 16 किलोमीटर में फैली हुई है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा बंगाल की खाड़ी में समा चुका है। माना जाता है कि इसकी सभी दिशाओं में देवताओं का वास है।
  • इस महोत्सव के दौरान भगवान जगन्नाथ को रथ पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाया जाता है।
  • ब्रह्म और स्कंद पुराण में मान्यता है कि पुरी में भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के देवता बने।
  • श्री जगन्नाथ पुरी को श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरी के नाम से भी जाना जाता है।
  • पहले कबीलाई लोग अपने देवताओं की मूर्ति लकड़ी से बनाते थे। सबर जनजाति का देवता होने की वजह से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को भी कबीलाई देवताओं का रूप दिया गया है।
  • ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जनजाति के लोग भगवान जगन्नाथ की पूजा बड़े धूमधाम से करते हैं। इसीलिए रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर दशमी तिथि तक चलती है।
  • भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को मुख्य माना जाता है, लेकिन आप पुरी के अलावा गुजरात में भी भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा में भाग ले सकते हैं। गुजरात में भगवान जगन्नाथ की 142वीं वार्षिक रथ यात्रा आयोजित की जा रही है।
  • रथ यात्रा की तैयारी हर साल बसंतपंचमी से शुरू हो जाती है। रथ के लिए नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें किसी तरह की धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथ की लकड़ी के लिए स्वस्थ और शुभ पेड़ को चुना जाता है।
  • मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से चिपक गया था और पुरी में ही गिरा था। तब से यहां पर महादेव की ब्रह्म रूप में पूजा होती है।
  • आषाढ़ मास के दसवें दिन सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।